AIN NEWS 1: महाराष्ट्र में 246 नगर परिषद और 42 नगर पंचायत सीटों पर हो रहे निकाय चुनावों के मद्देनज़र राजनीतिक दलों के बीच पहले से बनी धारणाएँ — मित्र या साथी कौन, और विपक्ष कौन — पूरी तरह बदल चुकी हैं। जो कभी एक खेमे में हुआ करते थे, अब कई जगहों पर सामने खड़े दिख रहे हैं। इस बदलाव ने मतदाताओं और राजनीतिक पर्यवेक्षकों दोनों में ही भारी उलझन पैदा कर दी है।
क्यों गठबंधन हुए “अस्थिर” और “पेचीदा”?
सबसे बड़े कारणों में से एक है कि पुराने बड़े गठबंधन — Mahayuti और Maha Vikas Aghadi (MVA) — जिस तरह चिन्हित थे, उनकी उम्मीदवारी तय नहीं हो सकी। अब कई स्थानों पर अलग-अलग गुटों द्वारा अलग-अलग पार्टियों के साथ हाथ मिलाया गया है।
Shiv Sena (Shinde faction) और Shiv Sena (UBT) — जो 2022 में अलग हुए थे — पारंपरिक रूप से एक-दूसरे के विरोधी थे। लेकिन निकाय चुनावों में कई जगहों पर दोनों गुटों ने मिलकर उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं, खासकर जहाँ मुकाबला Bharatiya Janata Party (BJP) से है।
कई सीटों पर ऐसा नज़र आ रहा है कि शिंदे-गुट ने Indian National Congress (Congress) या Nationalist Congress Party (NCP) से तालमेल साध लिया है। वहीं, दूसरी ओर कुछ सीटों पर वह BJP के खिलाफ हैं, और कुछ जगहों पर NCP व Congress के खिलाफ भी। इस तरह, चुनावी समीकरण जितना कटा हुआ था, उससे कहीं जटिल हो चुका है।
इसका मतलब साफ है: छाप-पूर्व प्रेम या दुश्मनी का आधार टूट चुका है। अब लोकल मांग, मतदाता की स्थिति, वोटबैंक, और क्षेत्रीय समीकरण ही तय कर रहे हैं कि कौन किसके साथ आएगा — न कि बड़े दलों का मज़बूत कहे जाने वाला गठबंधन।
कुछ अहम उदाहरण — “कौन किसके साथ”
पुणे जिले की चाकण नगर परिषद में, शिंदे-गुट की शिवसेना की उम्मीदवार के लिए मुकाबला सिर्फ BJP से है। वहां शिंदे-गुट की खोजबीन में, UBT-गुट के विधायक भी हाथ मिला चुके हैं।
सिंधुदुर्ग जिले की कंकावली नगर परिषद में, शिंदे-गुट और UBT-गुट ने साथ मिलकर उम्मीदवार खड़ा किया है, ताकि बीजेपी को टक्कर दी जा सके।
ओमेगा नगर परिषद में शिंदे-गुट ने कांग्रेस से दोस्ती की है। यानी, परंपरागत दुश्मन भी कभी-कभी साथ आ जाते हैं अगर उसी सीट पर बीजेपी है।
जबकि, नासिक के येल्ला नगर परिषद में शिंदे-गुट और NCP (SP) का मिलन हुआ है — चुनावी रणनीति के तहत।
इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि “दोस्त” या “दुश्मन” की परिभाषाएँ बदल चुकी हैं।
मतदाता और कर्मचारी — सब है Confusion में
चूंकि गठजोड़ बदलते जा रहे हैं, मतदाता — जो पारंपरिक आधार पर वोट देते थे — उनमें भारी भ्रम है। कई लोग पूछ रहे हैं: “अभी ये साथ हैं, दुनियाभर गुट है, कल बदल जाएंगे क्या?”
वहीं, चुनाव आयोग, दलों और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भी असमंजस बढ़ गया है। कौन किसके खिलाफ चला रहा है, कौन किसके साथ, किस सीट पर क्या रणनीति है — सब कुछ धुंधला हो चुका है।
क्या ये सिर्फ लोकल स्तर का बदलाव है — या भविष्य की राजनीति की दिशा
कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ये सिर्फ लोकल-स्तरीय रणनीतिक बदलाव हैं, न कि राज्य-स्तरीय गठबंधन में बड़ा मोड़। दूसरे सवाल यह है कि क्या ये गठबंधन चुनावों के बाद टिकेंगे या फिर मतों की संख्या के आधार पर फिर से बदल जाएंगे।
लेकिन एक बात स्पष्ट है: इस चुनाव में मतदाताओं को सिर्फ पार्टी के नाम से नहीं, बल्कि उम्मीदवार के वजूद, उनके काम और लोकल मांगों से वोट देना होगा — न कि पुराने वोटबैंक व हिमायती गठबंदियों पर भरोसा करके।
In Maharashtra’s 2025 municipal elections, traditional alliances like Mahayuti and Maha Vikas Aghadi have fragmented, forcing unexpected coalitions as local branches of Shiv Sena (Shinde), Shiv Sena (UBT), NCP, Congress, and BJP align differently across wards. This shifting political landscape reflects intense local strategies, making outcomes unpredictable and showcasing real voter-centric dynamics beyond old party loyalties.



















