AIN NEWS 1: बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती ने नौ साल बाद लखनऊ में अपनी शक्ति का ऐसा प्रदर्शन किया जिसने उत्तर प्रदेश की राजनीति में नई हलचल मचा दी। कांशीराम स्मारक स्थल पर आयोजित इस भव्य महारैली में लाखों की संख्या में समर्थक जुटे।
पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से लोग बसों और ट्रेनों से यहां पहुंचे। भीड़ का आकार देखकर मायावती ने मुस्कुराते हुए कहा – “यह दृश्य बताता है कि जनता अब फिर से बसपा की ओर लौट रही है।”
रैली के मंच पर मायावती अपने भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद के साथ पहुंचीं। दोनों ने बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और कांशीराम की मूर्ति पर माल्यार्पण किया और समर्थकों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया।
आकाश आनंद का दावा – “2027 में फिर बनेगी बसपा सरकार”
रैली की शुरुआत आकाश आनंद के जोशीले संबोधन से हुई। उन्होंने कहा,
“आज जो भीड़ यहां उमड़ी है, यह सिर्फ समर्थन नहीं बल्कि बदलाव का संदेश है। 2027 में उत्तर प्रदेश में पांचवीं बार बसपा की सरकार बनने जा रही है।”
आकाश ने विपक्षी दलों पर आरोप लगाया कि वे बसपा को कमजोर करने के लिए दलित समाज को भ्रमित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि “जो लोग बसपा के नाम पर राजनीति कर रहे हैं, असल में वही दलित हितों के सबसे बड़े दुश्मन हैं।”
मायावती का अप्रत्यक्ष हमला – “स्वार्थी और बिकाऊ लोगों से सावधान रहें”
अपने संबोधन में मायावती ने बिना नाम लिए नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद पर करारा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि कुछ ताकतें जानबूझकर बसपा को कमजोर करने की साजिश रच रही हैं।
उनके शब्दों में –
“आज पूरे देश में हमारे विरोधियों ने षड्यंत्र रचा है। उन्होंने हमारे वोट बैंक को तोड़ने के लिए स्वार्थी और बिकाऊ लोगों को आगे किया है। कई संगठन बनवाए जा रहे हैं, जिनका मकसद सिर्फ बसपा के वोट काटना है।”
मायावती ने कहा कि ये संगठन चुनावों में बसपा के खिलाफ उम्मीदवार खड़े करवा कर विरोधी दलों को फायदा पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने समर्थकों से अपील की कि “ऐसे बिकाऊ संगठनों को एक भी वोट न दें।”
भीड़ से भरा अंबेडकर मैदान – पांच राज्यों से पहुंचे समर्थक
रैली की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लखनऊ के कांशीराम स्मारक से लेकर आसपास के पांच किलोमीटर तक ट्रैफिक जाम लग गया था।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और बिहार से आए समर्थकों ने बसपा के झंडे, टोपी और बैनर के साथ “बहुजन समाज पार्टी जिंदाबाद” के नारे लगाए।
महिलाओं की बड़ी संख्या में मौजूदगी ने इस रैली को अलग पहचान दी। मंच के सामने खड़ी महिलाओं ने कहा –
“मायावती जी ही वो नेता हैं जिन्होंने हमें आवाज दी, हमें सम्मान दिलाया।”
‘आई लव मोहम्मद’ विवाद पर मायावती की दो टूक
रैली के दौरान मायावती ने हाल के दिनों में उठे “आई लव मोहम्मद” विवाद पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी को भी धर्म या देवी-देवताओं का अपमान नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा,
“भारत एक विविधता वाला देश है, जहां हर धर्म का सम्मान जरूरी है। किसी को भी किसी धर्म में दखल देने का अधिकार नहीं है। राजनीतिक फायदे के लिए धर्म का इस्तेमाल करना देशहित में नहीं है।”
मायावती ने यह भी कहा कि “ऐसे लोग जो धर्म के नाम पर नफरत फैलाते हैं, वे देश की एकता के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं।”
‘आई लव मोहम्मद’ विवाद की पृष्ठभूमि
इस विवाद की शुरुआत कानपुर से हुई थी, जब बारावफात के मौके पर मुस्लिम समुदाय ने “आई लव मोहम्मद” लिखे बैनर लगाए।
कुछ हिंदू संगठनों ने इन बैनरों का विरोध किया और कहा कि यह धार्मिक भावना को आहत करने वाला है।
बाद में मामला तूल पकड़ गया और कई जिलों में पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।
मायावती ने इस पूरे मामले को लेकर कहा कि
“धर्म के नाम पर राजनीति कर समाज को बांटना बंद होना चाहिए। बाबा साहेब अंबेडकर ने भी हमेशा कहा कि धर्म निजी आस्था का विषय है, न कि राजनीतिक हथियार।”
कांशीराम परिनिर्वाण दिवस – मिशन को आगे बढ़ाने की अपील
यह रैली कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर आयोजित की गई थी।
मायावती ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर और कांशीराम का सपना एक समतामूलक समाज का निर्माण था, लेकिन आज जाति और धर्म के नाम पर राजनीति करके उस मिशन को कमजोर किया जा रहा है।
उन्होंने कहा,
“हमारा मिशन सिर्फ चुनाव जीतना नहीं, बल्कि समाज के कमजोर वर्गों को सशक्त करना है। अगर हम एकजुट रहें तो कोई ताकत हमें रोक नहीं सकती।”
सपा और अन्य विपक्षी दलों पर निशाना
मायावती ने समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस दोनों पर तीखा हमला बोला।
उन्होंने कहा कि सपा सरकार के समय बाबा साहेब और कांशीराम का बार-बार अपमान किया गया।
“सपा की सरकारों ने दलित समाज के लिए बने कार्यक्रमों को खत्म किया और आरक्षण व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की।”
उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों ने दलित समाज को सिर्फ “वोट बैंक” की तरह इस्तेमाल किया, लेकिन बसपा ही एकमात्र पार्टी है जो “दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक की सच्ची आवाज” है।
ईवीएम पर उठाए सवाल
मायावती ने अपने भाषण में चुनावी प्रणाली पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर जनता का भरोसा लगातार कम होता जा रहा है।
“अगर ईवीएम की निष्पक्ष जांच हो जाए तो बहुत से राज खुल जाएंगे। कई बार हमें रिपोर्ट मिलती है कि हमारे वोट कहीं और चले जाते हैं। यह लोकतंत्र के लिए खतरा है।”
उन्होंने चुनाव आयोग से पारदर्शिता बढ़ाने और मतदाताओं के भरोसे को मजबूत करने की अपील की।
भीड़ के उत्साह से गूंजी राजधानी
जैसे-जैसे मायावती बोलती गईं, मैदान में मौजूद भीड़ “जय भीम, जय भारत” के नारों से गूंजती रही।
लोगों ने अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा किया।
ट्विटर और फेसबुक पर “#BSPRallyLucknow” और “#MayawatiReturns” ट्रेंड करने लगा।
लखनऊ पुलिस को सुरक्षा के लिए अतिरिक्त बल तैनात करना पड़ा। हर प्रवेश द्वार पर मेटल डिटेक्टर लगाए गए और महिला पुलिसकर्मियों की विशेष ड्यूटी लगाई गई।
दलित वोट बैंक को बचाने का संदेश
मायावती का पूरा भाषण दलित एकता और वोट बैंक की रक्षा पर केंद्रित रहा। उन्होंने कहा कि विपक्षी दल “दलित एकता” को तोड़ने के लिए पैसे और प्रचार का इस्तेमाल कर रहे हैं।
उन्होंने समर्थकों को चेताया –
“अगर आपने भावनाओं में बहकर किसी और को वोट दिया, तो फिर वही ताकतें हमारे हक छीन लेंगी।”
मायावती ने कहा कि 2027 का चुनाव सिर्फ सरकार बदलने का नहीं, बल्कि “सम्मान वापस लाने” का चुनाव है।
बीजेपी पर अप्रत्यक्ष हमला
हालांकि मायावती ने भाजपा का नाम सीधे तौर पर नहीं लिया, लेकिन उनके कई बयान भाजपा पर भी तंज की तरह लगे। उन्होंने कहा कि “धर्म और राष्ट्रवाद की आड़ में समाज को बांटने की कोशिशें हो रही हैं।”
उन्होंने जोड़ा कि “सच्चा राष्ट्रवाद वही है, जिसमें हर जाति और हर धर्म के लोगों को बराबरी का सम्मान मिले।”
मायावती की अपील – “धर्म से ऊपर उठकर एकता की राह चुनें”
अपने संबोधन के अंत में मायावती ने भावुक लहजे में कहा
“मेरे भाइयों और बहनों, हमें धर्म, जाति और भावनाओं के नाम पर नहीं बंटना है। हमें बाबा साहेब और कांशीराम के मिशन को आगे बढ़ाना है। बीएसपी की सरकार बनाना सिर्फ राजनीति नहीं, यह समाज परिवर्तन का आंदोलन है।”
उन्होंने कहा कि बसपा कार्यकर्ता आने वाले चुनावों में घर-घर जाकर लोगों को समझाएं कि “बीएसपी ही वह ताकत है जो सबको साथ लेकर चल सकती है।”
राजनीतिक विश्लेषण – मायावती की रैली का क्या मतलब है?
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, यह रैली मायावती की सक्रिय राजनीति में वापसी का संकेत है।
बीते कुछ सालों से बसपा का जनाधार घट रहा था और चंद्रशेखर आजाद जैसी नई दलित आवाज़ें उभर रही थीं। मायावती का यह अप्रत्यक्ष हमला साफ करता है कि वह अब इन नई चुनौतियों को सीधा जवाब देने के मूड में हैं।
राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अनिल कुमार कहते हैं –
“मायावती ने इस रैली के जरिए यह संदेश दिया कि दलित राजनीति की असली धुरी अब भी वही हैं। उनका यह भाषण 2027 के चुनावों की तैयारी की दिशा तय करता है।”
बसपा का नया संकल्प
लखनऊ की यह महारैली न सिर्फ बसपा की ताकत दिखाने का मंच थी, बल्कि यह मायावती के राजनीतिक पुनर्जागरण का प्रतीक भी बनी।
उन्होंने स्पष्ट किया कि बसपा अब किसी गठबंधन के भरोसे नहीं, बल्कि “स्वयं की शक्ति” के दम पर चुनाव लड़ेगी।
दलित, पिछड़े, मुस्लिम और सर्वसमाज को जोड़ने की यह नई कोशिश मायावती के राजनीतिक सफर का नया अध्याय लिख सकती है।
मायावती का यह शक्ति प्रदर्शन इस बात का संकेत है कि बहुजन समाज पार्टी फिर से अपने पुराने जनाधार को पुनर्जीवित करने में जुटी है।
धर्म, जाति और भावनाओं से ऊपर उठकर सामाजिक न्याय और समानता की बात करना अब उनके नए राजनीतिक अभियान का केंद्र बन गया है।
BSP supremo Mayawati held a grand power show in Lucknow after nine years, addressing a massive rally on Kanshi Ram’s death anniversary. Without taking names, she targeted Chandrashekhar Azad, calling him a selfish and saleable person allegedly helping to divide Dalit votes. Mayawati also spoke on the “I Love Mohammad” controversy, urging people not to politicize religion. Her speech highlighted issues like Dalit unity, EVM transparency, and upcoming 2027 elections, marking a strong political comeback for BSP in Uttar Pradesh.