AIN NEWS 1: हाल के दिनों में सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स पर एक दावा तेजी से वायरल हो रहा है। इस दावे में कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने भगवान परशुराम को लेकर कथित रूप से यह कहा कि वे ब्राह्मण पुत्र नहीं थे, बल्कि बढ़ई समाज के लकड़हार थे और हमेशा अपने पास फरसा या कुल्हाड़ी रखते थे।
यह दावा सुनने में जितना चौंकाने वाला लगता है, उतना ही जरूरी है इसकी सच्चाई को तथ्यों के आधार पर परखना। क्योंकि धार्मिक आस्थाओं और सामाजिक पहचान से जुड़े विषयों पर गलत जानकारी समाज में भ्रम और तनाव पैदा कर सकती है।
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वायरल दावे की पड़ताल
जब इस कथन की गहराई से जांच की गई, तो सामने आया कि इस तरह का कोई भी बयान मोहन भागवत द्वारा दिए जाने का कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है। न तो किसी प्रमुख समाचार एजेंसी में, न ही किसी आधिकारिक भाषण, लेख या साक्षात्कार में ऐसा कोई उद्धरण मिलता है जिसमें उन्होंने परशुराम को ब्राह्मण पुत्र न मानने या उन्हें बढ़ई समाज से जोड़ने की बात कही हो।
2023 से 2025 तक के समाचार अभिलेखों, रिपोर्ट्स और सार्वजनिक बयानों की खोज के बावजूद, ऐसा कोई भरोसेमंद स्रोत नहीं मिला जो इस दावे की पुष्टि करता हो। इसका सीधा अर्थ यह है कि यह कथन तथ्यों पर आधारित नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया पर फैलाया गया एक अप्रमाणित दावा है।
क्या मोहन भागवत ने जाति या वर्ण व्यवस्था पर कुछ कहा था?
यह सही है कि मोहन भागवत ने अलग-अलग मंचों से जाति और वर्ण व्यवस्था को लेकर अपने विचार रखे हैं। लेकिन उन बयानों का संदर्भ पूरी तरह सामाजिक और दार्शनिक था, न कि किसी देवी-देवता या पौराणिक चरित्र की जाति को लेकर।
उन्होंने अपने भाषणों में यह बात कही थी कि:
किसी व्यक्ति की पहचान उसके ज्ञान, आचरण और कर्म से होनी चाहिए, न कि उसकी जाति से।
समाज में जातिगत भेदभाव मानव द्वारा बनाया गया ढांचा है, इसे ईश्वर की देन नहीं कहा जा सकता।
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इन बातों का उद्देश्य समाज में समरसता और समानता की भावना को मजबूत करना था। इन बयानों को परशुराम से जोड़कर प्रस्तुत करना तथ्यों का गलत इस्तेमाल है।
बयान का गलत अर्थ कैसे निकाला गया?
अक्सर देखा गया है कि जब कोई सार्वजनिक व्यक्ति जाति व्यवस्था जैसे संवेदनशील विषय पर टिप्पणी करता है, तो उसके शब्दों को संदर्भ से काटकर पेश किया जाता है। यही इस मामले में भी हुआ।
मोहन भागवत के सामाजिक विचारों को कुछ लोगों ने गलत ढंग से जोड़ते हुए यह दावा फैला दिया कि उन्होंने परशुराम की जाति पर सवाल उठाए हैं, जबकि वास्तविकता में ऐसा कुछ भी नहीं कहा गया।
ब्राह्मण समाज की प्रतिक्रिया क्यों हुई?
मोहन भागवत के जाति-व्यवस्था पर दिए गए बयानों को लेकर देश के कुछ हिस्सों में ब्राह्मण संगठनों ने नाराज़गी भी जताई थी। हालांकि यह नाराज़गी भी वर्ण व्यवस्था की व्याख्या को लेकर थी, न कि परशुराम से जुड़े किसी कथन पर।
यह स्पष्ट करना जरूरी है कि उस समय भी किसी भी संगठन ने यह आरोप नहीं लगाया था कि मोहन भागवत ने परशुराम को ब्राह्मण न मानने की बात कही है।
धार्मिक ग्रंथों की स्थिति
हिंदू धर्मग्रंथों और पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम को ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका का पुत्र माना गया है। वे विष्णु के अवतार हैं और ब्राह्मण कुल में जन्म लेने के बावजूद क्षत्रिय गुणों से युक्त योद्धा माने जाते हैं।
इस धार्मिक मान्यता को लेकर आज तक कोई विवाद नहीं रहा है। इसलिए किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति द्वारा इसके विपरीत बयान देने की बात अत्यंत गंभीर होती — लेकिन ऐसा कोई बयान मौजूद ही नहीं है।
इस पूरी पड़ताल के बाद स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है:
मोहन भागवत द्वारा परशुराम को ब्राह्मण पुत्र न मानने या उन्हें बढ़ई समाज से जोड़ने का कोई प्रमाणित बयान नहीं मिला।
✔ सोशल मीडिया पर फैलाया गया दावा तथ्यहीन और भ्रामक है।
✔ मोहन भागवत के वास्तविक बयान समाज में जातिगत भेदभाव पर विचार व्यक्त करने तक सीमित थे।
✔ परशुराम की जन्म और पहचान को लेकर धार्मिक ग्रंथों की मान्यता आज भी स्पष्ट है।
पाठकों के लिए जरूरी संदेश
आज के डिजिटल दौर में किसी भी वायरल दावे पर विश्वास करने से पहले उसके स्रोत की जांच बेहद जरूरी है। अधूरी या गलत जानकारी न केवल भ्रम फैलाती है, बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी नुकसान पहुंचा सकती है।
अगर आप चाहें, तो मैं मोहन भागवत के वास्तविक जाति-वर्ण संबंधी बयान का शब्द-शः उद्धरण और उसका संदर्भ सहित विश्लेषण भी तैयार कर सकता हूँ।
This article presents a detailed fact check on the viral claim related to RSS chief Mohan Bhagwat and his alleged statement about Parshuram not being a Brahmin. Based on verified news reports and reliable sources, there is no evidence that Mohan Bhagwat made such a remark. The controversy appears to be a result of misinformation spread on social media, while his actual statements were focused on caste discrimination and social harmony, not Hindu mythology or Parshuram’s identity.






