AIN NEWS 1 | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि “हिंदू होना केवल एक धर्म की पहचान नहीं, बल्कि भारत माता के प्रति जिम्मेदारी का भाव है।” उन्होंने बताया कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो, इस मिट्टी और संस्कृति से जुड़ा हुआ है। इसलिए किसी को “गैर-हिंदू” कहना गलत है।
भागवत शनिवार को “संघ यात्रा के 100 वर्ष: नया क्षितिज” नामक कार्यक्रम में बोल रहे थे। इस अवसर पर संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले सहित कई वरिष्ठ स्वयंसेवक भी मौजूद थे।
हिंदू होना — भारत माता के लिए जिम्मेदार होना
भागवत ने कहा कि जब लोग पूछते हैं कि संघ सिर्फ हिंदू समाज पर क्यों ध्यान देता है, तो इसका जवाब सीधा है — क्योंकि हिंदू समाज इस देश की आत्मा है। भारत की पहचान हजारों वर्षों पुरानी है और उसकी जड़ें इसी संस्कृति में हैं।
उन्होंने कहा, “हमारा राष्ट्र किसी विदेशी शासन की देन नहीं है। हम स्वयं से बने हुए हैं, हमारी सभ्यता और संस्कृति ही हमारी पहचान है।”
भागवत ने स्पष्ट किया कि “हिंदू” शब्द किसी सीमित धार्मिक पहचान का प्रतीक नहीं है। इसका अर्थ है वह व्यक्ति जो भारत की संस्कृति, परंपरा और मूल्य प्रणाली को स्वीकार करता है। उन्होंने कहा, “हिंदू का मतलब वही है जो सबको जोड़ने का काम करता है, किसी को तोड़ने का नहीं।”
भारत में कोई गैर-हिंदू नहीं
अपने संबोधन में भागवत ने कहा कि भारत के सभी लोग एक ही पूर्वजों की संतान हैं। उन्होंने कहा, “मुसलमान, ईसाई या कोई भी अन्य धर्म मानने वाले, सब इसी भूमि के पुत्र हैं। शायद कुछ लोग इसे भूल गए हैं या उन्हें भुला दिया गया है, लेकिन सच्चाई यही है कि हमारी जड़ें एक हैं।”
उन्होंने कहा कि “भारत में कोई भी व्यक्ति अहिंदू नहीं है, क्योंकि यहां की संस्कृति सबको जोड़ती है। हर वह व्यक्ति जो भारत माता की सेवा करता है, वही सच्चा हिंदू है — चाहे उसका धर्म कुछ भी हो।”
भागवत ने यह भी कहा कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि वह भारत माता के कल्याण के लिए काम करे और उसकी गरिमा बनाए रखे।
संघ का उद्देश्य — सत्ता नहीं, समाज संगठन
मोहन भागवत ने अपने भाषण में यह स्पष्ट किया कि आरएसएस का मकसद राजनीतिक शक्ति प्राप्त करना नहीं है। उन्होंने कहा, “हम सत्ता की राजनीति के लिए नहीं, बल्कि समाज को जोड़ने और मजबूत करने के लिए काम करते हैं।”
उन्होंने कहा कि संघ की सोच यह है कि भारत में रहने वाला हर व्यक्ति देश और समाज की भलाई के लिए सोचे, उसकी संस्कृति का सम्मान करे और राष्ट्रहित को सर्वोपरि माने।
भागवत ने कहा, “हमारा लक्ष्य सत्ता नहीं, संगठन है। जब समाज संगठित होगा, तब हर समस्या का समाधान अपने आप निकल आएगा।”
सनातन धर्म की प्रगति ही भारत की प्रगति
भागवत ने कहा कि हिंदू समाज को संगठित करना आज के समय की सबसे बड़ी जरूरत है, क्योंकि यही समाज दुनिया को जोड़ने की शक्ति रखता है। उन्होंने कहा, “सनातन धर्म हमारी आत्मा है। जब सनातन धर्म आगे बढ़ता है, तो भारत भी आगे बढ़ता है।”
उन्होंने बताया कि संघ का काम किसी दिन में नहीं हुआ — “हमने विरोध, आरोप और प्रतिबंधों का सामना किया है। दो बार संघ पर प्रतिबंध लगाया गया, हमारे स्वयंसेवकों को जेल जाना पड़ा। लेकिन हमने कभी हार नहीं मानी। आज संघ को समाज का विश्वास इसलिए मिला है क्योंकि हमने सेवा और समर्पण से काम किया है।”
संघ — समाज को जोड़ने की ताकत
भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक बिना किसी स्वार्थ के काम करते हैं। “हम किसी लाभ या पद की इच्छा से नहीं, बल्कि राष्ट्रसेवा की भावना से कार्य करते हैं। हमारा उद्देश्य है समाज को जोड़ना और देश को आत्मनिर्भर बनाना।”
उन्होंने कहा कि जब समाज एकजुट होगा, तो राष्ट्र की सभी समस्याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा। उन्होंने हर नागरिक से आह्वान किया कि वे अपने-अपने क्षेत्र में जिम्मेदारी निभाएं और भारत माता के विकास में योगदान दें।
भागवत के पूरे संबोधन का सार यही था कि हिंदू होना किसी धर्म विशेष का पालन नहीं, बल्कि भारत के प्रति प्रेम, कर्तव्य और जिम्मेदारी का प्रतीक है। उन्होंने कहा, “भारत की आत्मा उसकी संस्कृति में बसती है, और वही संस्कृति हमें जोड़ती है। हमें इस भावना को समझकर आगे बढ़ना होगा।”
भागवत ने यह संदेश दिया कि यदि हर भारतीय अपने अंदर इस जिम्मेदारी की भावना जागृत करे, तो भारत विश्व का पथप्रदर्शक बन सकता है।



















