भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल अपने पहले विदेश दौरे के लिए तैयार हैं. मई में वह तीन यूरोपीय देशों की यात्रा कर सकते हैं.भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मई के पहले हफ्ते में यूरोप की यात्रा पर जाएंगे. अपने तीन दिवसीय दौरे में वह जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस की यात्रा करेंगे. इस साल भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला विदेश दौरा होगा जिसमें वह डेनमार्क में दूसरे भारत-नॉर्डिक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इस सम्मेलन में सभी पांच नॉर्डिक देशों – स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे, फिनलैंड और आइसलैंड के नेता शामिल होंगे. भारत-नॉर्डिक सम्मेलन भारत-नॉर्डिक सम्मेलन की शुरुआत 2018 में हुई थी. पहला सम्मेलन उस साल अप्रैल में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुआ था. यह अपने आप में एक अनूठा सम्मेलन था जहां उत्तरी यूरोप के पांच देशों को एक मंच पर लाकर भारत के साथ उनके रिश्तों को मजबूत करने का प्रयास हुआ.
हालांकि उससे पहले अमेरिका भी ऐसा ही सम्मेलन कर चुका था, जब मई 2016 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नॉर्डिक देशों के साथ बैठक की थी. कोविड महामारी के चलते पहले सम्मेलन के बाद यह प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई क्योंकि सम्मेलन स्थगित होते रहे. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डेनमार्क, स्वीडन और फिनलैंड के नेताओं के साथ वर्चुअल बैठकें की थीं. भारत नॉर्डिक देशों के साथ अपने रिश्तों को नए तरीके से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है. ये देश स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों के अगुआ माने जाते हैं जिसमें भारत की खासी दिलचस्पी है. इसके अलावा एक दूसरे के साथ व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए भी भारत-नॉर्डिक सम्मेलन ने मजबूती दिखाई है. परंपराओं में बदलाव ‘द डिप्लोमैट' पत्रिका में एक लेख में ‘येल जर्नल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स' की प्रबंध संपादक शरन्या राजीव ने 2018 में पहले नॉर्डिक सम्मेलन के वक्त एक लेख में लिखा था कि इस सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि उस परंपरा से मुक्ति है कि नॉर्डिक देशों के साथ भारत द्विपक्षीय स्तर पर ही बातचीत करता रहा है. बाइडेन ने मोदी से कहा, रूस के तेल से नहीं होगा भारत का भला राजीव ने लिखा, “यह एक नया प्रतीकात्मक तौर तरीका है जिसके जरिए दोनों पक्ष अपने संबंधों को नया स्वरूप दे रहे हैं.
नॉर्डिक देश अन्य पक्षों के साथ एक ईकाई के रूप में संवाद कर रहे हैं जिससे उनकी मोल-भाव करने की सामूहिक क्षमता मजबूत होती है” यह सम्मेलन डेनमार्क में होगा जहां भारतीय प्रधानमंत्री अपने दौरे का सबसे लंबा हिस्सा बिताएंगे. हाल के समय में भारत और डेनमार्क के संबंधों में पिछले कुछ समय में खासी गर्मजोशी देखी गई है. पिछले साल अक्टूबर में डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेटे फ्रेडेरिकसेन भारत के दौरे पर थे, जो कोविड महामारी के बाद किसी राष्ट्राध्यक्ष का पहला आधिकारिक दौरा था. इससे पहले सितंबर 2020 में दोनों देशों के बीच हुई वर्चुअल बैठक में एक ग्रीन स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप की शुरुआत हुई थी, जिसका मकसद अक्षय ऊर्जा तकनीकों की साझेदारी था. रूस पर क्या रूख रहेगा? इस दौरे पर नरेंद्र मोदी फ्रांस और जर्मनी के साथ अहम रणनीतिक बातचीत करेंगे. हालांकि सभी पक्षों की नजर इस बात पर होगी कि रूस को लेकर भारत के रूख का क्या असर होता है क्योंकि जर्मनी और फ्रांस दोनों ही रूस पर बेहद सख्त हैं जबकि भारत ने अब तक यूक्रेन के मुद्दे पर रूस का विरोध नहीं किया है. बर्लिन में नरेंद्र मोदी इंटर-गवर्नमेंटल कंसलटेशंस (आईजीसी) में हिस्सा लेंगे. इस दौरान उनकी जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स से मुलाकात भी होगी. अपनी पूर्ववर्ती अंगेला मैर्केल से पिछले साल पद संभालने के बाद शॉल्त्स की अब तक नरेंद्र मोदी से मुलाकात नहीं हुई है.
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भारत ऑस्ट्रेलिया 'एकता समझौता' क्या गुल खिलाएगा भारत और जर्मनी के बीच आईजीसी हर दो साल पर होती है. पिछली बार 2020 में यह बैठक हुई थी, जब तत्कालीन जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने दिल्ली की यात्रा की थी. इस साल यह छठा सम्मेलन होना है जो पिछली बार महामारी के कारण नहीं हो पाया था. 2019 में नरेंद्र मोदी ने अगस्त में फ्रांस की यात्रा की थी जब वह जी-7 सम्मेलन में हिस्सा लेने गए थे. लेकिन इस बार वह फ्रांस के राष्ट्रपति चुनावों के फौरन बाद पेरिस में होंगे. दोनों देशों के बीच रक्षा और आतंकवाद निरोधी क्षेत्रों में संबंधों में पिछले सालों में खासतौर पर प्रगति हुई है. लेकिन यहां भी रूस को लेकर भारत के संबंधों की छाया बातचीत पर छाई रह सकती है. रिपोर्टः विवेक कुमार (एपी).