AIN NEWS 1: राजस्थान में परिवहन विभाग से जुड़ा एक ऐसा घोटाला सामने आया है, जिसने पूरे राज्य प्रशासन को हिला कर रख दिया है। ‘श्री डिजिट’ वीआईपी नंबरों के नाम पर हुआ यह फर्जीवाड़ा धीरे-धीरे इतना बड़ा रूप ले चुका है कि इसे विभाग का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला माना जा रहा है। शुरुआती जांच में ही 10 हजार से अधिक वीआईपी नंबरों में गड़बड़ी मिलने की पुष्टि हो गई है, जबकि 450 से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी इस पूरे खेल में शामिल पाए गए हैं। राज्य सरकार को इससे करीब 500 से 600 करोड़ रुपये तक का नुकसान हुआ है।
शुरुआत जयपुर से — परत दर परत खुलता गया घोटाला
इस पूरे मामले का खुलासा सबसे पहले जयपुर आरटीओ प्रथम कार्यालय में हुआ। यहां एक बाबू और सूचना सहायक पर शक हुआ और जब रिकॉर्ड खंगालने शुरू किए गए तो सामने आया कि 70 से अधिक ‘श्री डिजिट’ वीआईपी नंबरों को गलत तरीके से दूसरे वाहनों के नाम कर दिया गया था। मामला जैसे-जैसे आगे बढ़ा, वैसा ही फर्जीवाड़े का दायरा बढ़ता गया।
राजस्थान पत्रिका द्वारा किए गए एक्सपोज़ ने मामले को और बड़ा कर दिया। इसके बाद विभाग ने पूरे प्रदेश के सभी आरटीओ और डीटीओ कार्यालयों की जांच शुरू कराई। परिणाम चौंकाने वाले थे — हर तीसरे अधिकारी या कर्मचारी पर इस घोटाले में शामिल होने का संदेह पाया गया।
10 हजार वीआईपी नंबरों की हेराफेरी — राजस्व को 600 करोड़ का नुकसान
जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे प्रदेश में करीब 10,000 वीआईपी नंबरों को गलत तरीके से जारी किया गया। इनमें से कई नंबर बिना किसी नियम, बिना वास्तविक वाहन मालिक की जानकारी और बिना वैध दस्तावेजों के दूसरे लोगों के नाम दर्ज कर दिए गए।
यहां तक कि कई जगह आरसी, आधार और अन्य पहचान पत्र भी फर्जी तैयार किए गए। कई नंबर उन वाहनों के नाम कर दिए गए, जो अस्तित्व में ही नहीं थे या जिनका रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था।
सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, इन नंबरों की गलत बिक्री और अनियमित पंजीकरण के कारण राज्य सरकार को लगभग 500–600 करोड़ रुपये का राजस्व नहीं मिल पाया। यह नुकसान सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि प्रशासनिक और प्रक्रियागत स्तर पर एक बड़ी चूक साबित हुआ।
450 से अधिक अफसर-कर्मचारी चिन्हित — FIR के आदेश
परिवहन विभाग ने जांच के बाद 450 से अधिक अधिकारी और कर्मचारियों की सूची तैयार की है, जिन पर सीधे या परोक्ष रूप से इस फर्जीवाड़े में शामिल होने के प्रमाण मिले हैं।
इन सभी पर FIR दर्ज कराने के आदेश जारी कर दिए गए हैं।
जयपुर जिले में अकेले 32 एफआईआर दर्ज होने जा रही हैं।
अन्य जिलों में भी पुलिस ने नोटिस जारी करने और दस्तावेज जुटाने शुरू कर दिए हैं।
उच्च अधिकारियों का कहना है कि अब किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा और यदि आवश्यक हुआ तो निलंबन और विभागीय कार्रवाई भी की जाएगी।
दबाव, दलाली और लालच — घोटाले की असल वजहें
जांच में सामने आया कि यह फर्जीवाड़ा कई तरह के कारकों का मिश्रण था।
✔ दलाल और एजेंट सक्रिय
कई जगह निजी एजेंटों और दलालों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने नंबर खरीदने वालों से बड़े पैमाने पर रुपये लिए और विभाग के अंदर ‘अपना नेटवर्क’ खड़ा कर रखा था।
✔ पैसे का लालच
कुछ बाबुओं और कार्मिकों ने मोटी कमाई के लालच में नियमों को ताक पर रखकर नंबर बेच दिए।
✔ उच्च स्तर का दबाव
जांच में यह भी खुलासा हुआ कि कुछ नंबर नेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों के दबाव में जारी किए गए।
मामले को छुपाने के लिए रिकॉर्ड गायब किए गए या जला दिए गए।
✔ 25–30 साल पुराने नंबरों का गलत इस्तेमाल
1989 से पहले जारी हुए ‘श्री डिजिट’ नंबरों पर एजेंटों की खास नजर रही।
कई नंबर, जिनके मालिक आज भी अज्ञात हैं, उन्हें गुप्त रूप से बेच दिया गया और नई आरसी बना दी गई।
रिकॉर्ड गायब — कई जगह जला भी दिया गया
कई जिलों में जब जांच टीमें पहुंचीं तो पाया गया कि
पुराने रजिस्टर गायब थे
कुछ जगह डिजिटल डेटा मिटा दिया गया था
और कई कार्यालयों में फाइलें जला दी गई थीं
यह साफ संकेत देता है कि फर्जीवाड़े में शामिल लोग इसे छिपाने की कोशिश कर रहे थे।
ED और ACB भी हरकत में — बहु-एजेंसी जांच शुरू
मामले की गंभीरता को देखते हुए
ईडी (ED) ने परिवहन विभाग से विस्तृत रिकॉर्ड और लेनदेन की जानकारी मांगी है।
ACB (Anti-Corruption Bureau) भी अधिकारियों से पूछताछ कर रही है।
संभावना है कि मनी लॉन्ड्रिंग और भ्रष्टाचार के तहत भी केस दर्ज किए जाएंगे।
राज्य सरकार की सख्ती — कोई भी दोषी बचेगा नहीं
परिवहन विभाग के अपर आयुक्त ओपी बुनकर ने कहा है कि
“जिन-जिन कर्मचारियों और अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है, उन सभी पर कार्रवाई होगी। सभी जिलों को FIR दर्ज कराने के निर्देश दे दिए गए हैं।”
विभाग अब इस बात पर भी काम कर रहा है कि भविष्य में VIP नंबर अलॉटमेंट की प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए।
घोटाले का मौका कैसे मिला? — सिस्टम की बड़ी खामियां सामने आईं
1. पुराने नंबरों की लिस्ट अपडेट नहीं थी
2. आंतरिक मॉनिटरिंग बेहद कमजोर थी
3. डिजिटल रिकॉर्ड और ऑफलाइन रिकॉर्ड में भारी अंतर पाया गया
4. नियमों का पालन कराने वाला कोई सिस्टम मौजूद नहीं था
5. एजेंटों को विभाग में मनमानी का मौका मिल गया
क्या होगा अगले कदम?
सभी जिलों में FIR दर्ज होना जारी
ED और ACB की पूछताछ बढ़ेगी
दोषी अफसरों पर निलंबन और सेवा समाप्ति संभव
सरकार VIP नंबरों की नई गाइडलाइन ला सकती है
पुराने ‘श्री डिजिट’ नंबरों की पुनः जांच का आदेश भी संभव
राजस्थान परिवहन विभाग का यह घोटाला सिर्फ एक वित्तीय फर्जीवाड़ा नहीं, बल्कि सरकारी सिस्टम की कमजोरियों पर एक बड़ा सवाल है। जिस तरह व्यापक स्तर पर 10 हजार से ज्यादा नंबरों को गलत तरीके से पंजीकृत किया गया और अधिकारियों ने मिलीभगत से सरकार को बड़े पैमाने पर राजस्व नुकसान पहुंचाया, वह बेहद गंभीर है।
अब सरकार और जांच एजेंसियों की निगरानी में मामला तेजी से आगे बढ़ रहा है और उम्मीद है कि पूरे प्रकरण में सख्त कार्रवाई होगी ताकि भविष्य में ऐसे घोटालों को रोका जा सके।
The Rajasthan Transport Department VIP number scam has turned into one of the biggest corruption cases in the state, involving the illegal manipulation of over 10,000 VIP vehicle numbers, forged documents, and missing records. More than 450 officers and employees are now facing FIRs for their alleged involvement. This multi-layer fraud caused a revenue loss of nearly ₹600 crore to the government. Jaipur RTO emerged as the main center of the scandal, prompting agencies like the ED and ACB to begin parallel investigations. Keywords: Rajasthan transport scam, VIP number fraud, Shri Digit scam, Jaipur RTO, corruption, revenue loss.



















