AIN NEWS 1 | सुप्रीम कोर्ट द्वारा वक्फ संशोधन अधिनियम पर दिए गए अंतरिम आदेश के बाद, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि यह केवल एक अंतरिम आदेश है और वे चाहते हैं कि इस मामले पर जल्द से जल्द अंतिम सुनवाई हो तथा सुप्रीम कोर्ट पूरा फैसला सुनाए।
ओवैसी ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार इस कानून के जरिए वक्फ की जमीनों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि यह अधिनियम मुस्लिम समाज के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।
सुप्रीम कोर्ट से जल्द अंतिम फैसला की मांग
ओवैसी ने कहा,
“बीजेपी सरकार वक्फ की संपत्तियों को अपने कब्जे में लेने के लिए यह एक्ट लेकर आई है। हम सुप्रीम कोर्ट से अपील करते हैं कि इस मामले में जल्द से जल्द अंतिम फैसला सुनाया जाए।”
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि केंद्र सरकार यह साबित करे कि अब तक कितनी ऐसी जमीनें हैं जिन्हें धर्म परिवर्तन के बाद वक्फ को दान में दी गई हैं।
साथ ही उन्होंने बताया कि हालांकि कलेक्टर द्वारा जांच के प्रावधान पर रोक लगा दी गई है, लेकिन सर्वेक्षण करने का अधिकार अभी भी कलेक्टर के पास है। यह स्थिति मुस्लिम समाज में चिंता का कारण बनी हुई है।
सीईओ की नियुक्ति पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के पद पर, जहां तक संभव हो, किसी मुस्लिम की ही नियुक्ति की जानी चाहिए। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ओवैसी ने कहा,
“सरकार दावा करेगी कि उन्हें कोई योग्य मुस्लिम नहीं मिला, लेकिन यह केवल बहाना है। एक ऐसी पार्टी जो मुस्लिम उम्मीदवार को सांसद का टिकट तक नहीं देती, जिसके पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है, वह क्या ईमानदारी से एक मुस्लिम अधिकारी को नियुक्त करेगी?”
इंटेलिजेंस ब्यूरो में मुस्लिम प्रतिनिधित्व पर सवाल
ओवैसी ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) में कितने मुस्लिम कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि जब आईबी जैसे संस्थानों में मुसलमानों की भागीदारी बेहद कम है, तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम अधिकारियों की नियुक्ति क्यों की जा रही है।
उन्होंने इसे संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन बताया। ओवैसी ने कहा,
“अगर किसी गैर-सिख को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) का सदस्य बनाया जाए तो सिख समुदाय को कैसा लगेगा? ठीक वैसे ही वक्फ में गैर-मुस्लिम अधिकारियों की नियुक्ति मुस्लिम समाज के लिए अस्वीकार्य है।”
सुप्रीम कोर्ट ने पूरी तरह से रोक नहीं लगाई
ओवैसी ने यह भी स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रावधान पर पूरी तरह से रोक नहीं लगाई है, जिसमें यह कहा गया था कि दान देने वाला व्यक्ति कम से कम 5 साल तक मुस्लिम होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म के अनुयायी को अपनी संपत्ति किसी भी धर्म या संस्था को दान देने का अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 300 के तहत हर नागरिक को यह स्वतंत्रता प्राप्त है।
“अगर कोई हिंदू या ईसाई अपनी संपत्ति मुस्लिम धर्मस्थल को दान करना चाहता है, तो उसे रोकने वाला कोई कानून नहीं है। लेकिन वक्फ संशोधन अधिनियम इस स्वतंत्रता को बाधित करता है।” – ओवैसी
भाजपा सरकार पर सीधा हमला
ओवैसी ने कहा कि भाजपा सरकार इस्लाम के अनुयायियों को कमजोर करना चाहती है और उनके धार्मिक अधिकारों में दखल दे रही है। उन्होंने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया और कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जल्द ही इस पर स्पष्ट और अंतिम फैसला सुनाना चाहिए।
असदुद्दीन ओवैसी का यह बयान साफ करता है कि वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर मुस्लिम समाज में गहरी चिंता और असंतोष है। जहां एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है, वहीं कई अधिकार अभी भी प्रशासन के पास बने हुए हैं। ऐसे में अंतिम फैसला आने तक यह विवाद और गहराता रहेगा।