AIN NEWS 1 मालदा: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, 104 वर्षीय रसिक चंद्र मंडल को 30 साल बाद मालदा जेल से रिहा कर दिया गया है। उन्होंने 1994 में अपने भाई सुरेश की हत्या करने के बाद आजीवन कारावास की सजा पाई थी। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति को देखते हुए उन्हें जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।
1994 में हुई थी सजा, 68 वर्ष की उम्र में हुई थी गिरफ्तारी
रसिक का अपने भाई सुरेश के साथ विवाद हुआ था, जो उनके उपजाऊ ज़मीन को लेकर था। नवंबर 1988 में इस विवाद ने हिंसक रूप लिया, और रसिक ने सुरेश की गोली मारकर हत्या कर दी। इस मामले में पुलिस ने रसिक और अन्य कुछ ग्रामीणों को गिरफ्तार किया। 1994 में, ट्रायल कोर्ट ने रसिक और जितेन मंडल को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई। रसिक की उम्र उस समय 68 वर्ष थी।
सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका, फिर मिली रिहाई
रसिक ने कुछ साल पहले अपनी पैरोल पर घर जाने का अवसर पाया, लेकिन इस दौरान जितेन की मृत्यु हो गई और रसिक को फिर से जेल भेज दिया गया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई, 2021 को पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें रसिक की शारीरिक स्थिति की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया। इसके बाद राज्य ने कोर्ट को सूचित किया कि रसिक मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं। 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया।
रिहाई के बाद जेल की यादें, बाहर की दुनिया से डर
रिहाई के बाद, जब रसिक चंद्र मंडल जेल से बाहर आए, तो उनके लिए यह एक अजीब अनुभव था। 30 साल बाद उन्होंने बाहर की दुनिया देखी थी, और वह थोड़ा झिझक रहे थे। उन्होंने कहा, “मैं घर जाकर खुश हूं, लेकिन मुझे जेल की याद आएगी।” रसिक ने बताया कि जेल में बिताए गए समय के दौरान, वह अन्य कैदियों के साथ शांतिपूर्वक जीवन जीते थे, जो उनके लिए एक विस्तारित परिवार की तरह थे। उन्हें जेल के रोजमर्रा के रूटीन की आदत हो गई थी, और अब बाहर की दुनिया में खुद को ढालना उनके लिए चुनौतीपूर्ण था।
नई शुरुआत की ओर बढ़ते हुए
रसिक चंद्र मंडल ने अपनी रिहाई के बाद अपने बेटे उत्तम का हाथ थामे हुए जेल से बाहर कदम रखा। हालांकि वह खुश हैं कि अब वे घर लौट रहे हैं, फिर भी उनके मन में जेल के दिनों की यादें ताजा हैं। अब देखना यह है कि वे इस नई शुरुआत में खुद को कैसे ढालते हैं।