बांग्लादेश में हाल ही में हुए हिंसक प्रदर्शनों के दौरान 328 लोगों की मौत हो गई, जिनमें 9 मासूम बच्चे और 41 छात्र शामिल थे। इस हिंसा की शुरुआत 18 जुलाई को हुई, जब कोटा सिस्टम के खिलाफ छात्रों का विरोध प्रदर्शन चल रहा था।
मीर मुग्धो की दुखद मौत
18 जुलाई को ढाका में छात्रों का एक समूह कोटा सिस्टम के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा था। मीर मुग्धो, एक छात्र जो प्रदर्शनकारियों तक खाना और पानी पहुंचा रहा था, पुलिस फायरिंग में मारा गया। इस घटना के बाद प्रदर्शनकारियों में आक्रोश फैल गया और हिंसा पूरे देश में फैल गई।
शफकत की दर्दनाक मौत
19 जुलाई की शाम ढाका के मीरपुर इलाके में 9 साल का शफकत, जो अपने घर में खेल रहा था, एक गोली का शिकार हो गया। पुलिस की फायरिंग के दौरान खिड़की से आई गोली शफकत की आंख में लगी और उसकी मौत हो गई। शफकत के माता-पिता इस घटना से गहरे सदमे में हैं। पिता शाकिब उर रहमान ने बताया कि उनकी दुनिया एक घंटे में ही बदल गई।
जाहिद हुसैन की मृत्यु
18 साल का जाहिद हुसैन, जो एक फूल की दुकान पर काम करता था, प्रोटेस्ट में शामिल हुआ और फ्लाईओवर से हुई पुलिस की फायरिंग में मारा गया। पुलिस ने जाहिद की लाश को लंबे समय तक घटनास्थल पर ही छोड़ दिया और उसके परिवार को धमकियां दीं।
हिंसा में इस्तेमाल हुए घातक हथियार
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर घातक हथियारों का इस्तेमाल किया, जिनमें असॉल्ट राइफल्स, शॉटगन और ग्रेनेड लॉन्चर्स शामिल थे। ढाका के कई इलाकों में पुलिस द्वारा की गई फायरिंग के वीडियो भी सामने आए हैं।
अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग
ब्रिटेन और कनाडा ने बांग्लादेश में हुई इस हिंसा की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र से अपील की है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के होम अफेयर्स एडवाइजर एम. सखावत हुसैन ने भी माना कि पुलिस ने लोगों पर अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया।
हाई कोर्ट की प्रतिक्रिया
ढाका हाई कोर्ट ने प्रदर्शनकारियों पर हुई फायरिंग की कड़ी निंदा की है। कोर्ट ने कहा कि फायरिंग करने वाले और इसके आदेश देने वाले सभी लोग अपराधी हैं।
बांग्लादेश में हुई इन घटनाओं ने न केवल सरकार और पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जांच की मांग को जन्म दिया है।