AIN NEWS 1 मथुरा/वृंदावन — कहते हैं कि संतों के संकल्प और वचन काल की सीमाओं से परे होते हैं। कुछ ऐसा ही अद्भुत दृश्य हाल ही में वृंदावन में देखने को मिला, जब महाराष्ट्र के एक गृहस्थ संत 400 साल पुराने सपने की दक्षिणा पूरी करने के लिए संत श्री प्रेमानंद महाराज के दर्शन करने पहुंचे।
यह मुलाकात जितनी साधारण दिख रही थी, उतनी ही गहराई में अध्यात्म से भरी हुई थी। उस संत ने प्रेमानंद महाराज को एक “पाव घी” का पात्र अर्पित किया — लेकिन यह कोई सामान्य भेंट नहीं थी। इसके पीछे छिपी थी संत तुकाराम महाराज के जीवन से जुड़ी एक दिव्य कथा।
400 साल पुरानी कथा: तुकाराम जी का अधूरा वादा
सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध भक्त संत तुकाराम जी महाराज को एक बार अपने गुरु के दर्शन स्वप्न में हुए। उस स्वप्न में गुरु ने उनसे दक्षिणा के रूप में एक पाव घी मांगा। तुकाराम जी ने अत्यंत श्रद्धा से गुरु का स्वागत किया, लेकिन घी देने की बात उनके ध्यान से निकल गई।
जब वह स्वप्न से जागे, तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ। उन्होंने इस घटना का उल्लेख अपने अभंगों (भक्ति पदों) में भी किया था — यह दर्शाते हुए कि उन्हें इस अधूरी दक्षिणा का गहरा पश्चाताप था।
समय बीत गया, सदियाँ गुजर गईं, पर उस अधूरी दक्षिणा की बात लोककथाओं और भक्त समुदाय में जीवित रही।
तुकाराम जी की ओर से पूरी हुई दक्षिणा
अब, लगभग 400 साल बाद, महाराष्ट्र के एक गृहस्थ संत ने स्वयं को उस अधूरी दक्षिणा को पूरा करने का माध्यम बनाया। वह विट्ठल भगवान की एक छोटी मूर्ति और एक पाव घी लेकर वृंदावन पहुँचे, जहाँ प्रेमानंद महाराज विराजमान थे।
वहां पहुँचकर उन्होंने प्रेमानंद जी से विनम्रता से कहा —
“यह घी संत तुकाराम महाराज की ओर से आपके चरणों में दक्षिणा स्वरूप लाया हूँ। उनके गुरु ने स्वप्न में जो वचन मांगा था, वह आज पूरा हो रहा है।”
इस भावपूर्ण वचन को सुनते ही प्रेमानंद महाराज का चेहरा खिल उठा। उन्होंने उस घी के पात्र को अपने सिर से लगाया और बच्चे की तरह खिलखिलाकर हँस पड़े।
वृंदावन के आश्रम में उपस्थित भक्त इस दृश्य को देखकर भाव-विह्वल हो गए। सभी ने महसूस किया मानो इतिहास अपने आप को दोहरा रहा हो।
प्रेमानंद महाराज का भाव और विनम्रता
प्रेमानंद महाराज अपने सरल स्वभाव और बालसुलभ मुस्कान के लिए जाने जाते हैं। जब उन्हें यह बात बताई गई कि यह घी संत तुकाराम जी के अधूरे वादे की पूर्ति के लिए लाया गया है, तो वे अत्यंत भावुक हो उठे।
उन्होंने कहा, “गुरु का वचन कभी व्यर्थ नहीं जाता। सदियों बाद भी वह पूर्ण होता है, क्योंकि सत्य और श्रद्धा अमर होते हैं।”
इसके बाद उन्होंने घी को भगवान के चरणों में अर्पित किया और कहा — “यह सिर्फ घी नहीं, बल्कि 400 वर्षों की भक्ति और निष्ठा का प्रतीक है।”
भक्तों की चिंता और नई शुरुआत
हाल ही में प्रेमानंद महाराज के स्वास्थ्य को लेकर उनके भक्तों में चिंता थी। बताया जा रहा था कि पिछले 11 दिनों से उनकी पदयात्रा स्थगित कर दी गई थी। भक्त उनके शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे थे।
अब यह सुखद समाचार है कि उनकी यात्रा फिर से शुरू हो चुकी है। हालांकि, डॉक्टरों की सलाह पर उन्होंने यात्रा का मार्ग छोटा कर दिया है।
भक्तों का मानना है कि इस दिव्य प्रसंग ने महाराज जी को नई ऊर्जा और आध्यात्मिक प्रेरणा दी है।
भक्ति का संदेश
इस पूरी घटना ने यह सिखाया कि भक्ति का कोई काल नहीं होता। एक सच्चा वचन, भले ही सदियों पुराना क्यों न हो, ईश्वर की लीला में अपना समय पाकर पूर्ण होता ही है।
तुकाराम जी की अधूरी दक्षिणा, प्रेमानंद जी की करुणा और महाराष्ट्र के गृहस्थ संत की श्रद्धा — तीनों ने मिलकर भक्ति की उस अनंत परंपरा को फिर से जीवित कर दिया है, जो गुरु-शिष्य के रिश्ते को युगों से पवित्र बनाए हुए है।
वृंदावन के भक्तों ने इस दृश्य को “जीवंत चमत्कार” कहा। किसी ने कहा — “यह इतिहास नहीं, यह भक्ति का पुनर्जन्म है।”
In Vrindavan, a Maharashtra saint fulfilled a 400-year-old divine dream linked to Saint Tukaram by offering one-fourth kilo of ghee to Premanand Maharaj, symbolizing the completion of Tukaram’s guru dakshina. The touching spiritual moment has reignited discussions about India’s deep-rooted bhakti tradition, the bond between guru and disciple, and the timeless grace of Sant Premanand Ji. Devotees, who were concerned about Premanand Maharaj’s health, now celebrate the continuation of his Vrindavan yatra with renewed devotion.