AIN NEWS 1 | भारत और अमेरिका के बीच इन दिनों एक नया विवाद खड़ा हो गया है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आर्थिक सलाहकार पीटर नवारो ने हाल ही में भारत पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि रूस से तेल खरीदने का फायदा आम भारतीय जनता को नहीं बल्कि सिर्फ ब्राह्मण समुदाय को मिल रहा है। इस बयान ने भारत में तीखी प्रतिक्रिया पैदा की है।
जहां ज्यादातर लोग नवारो की आलोचना कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस के पूर्व सांसद उदित राज ने उनके बयान का समर्थन किया है। उदित राज का कहना है कि भारत में बड़े कॉर्पोरेट घराने मुख्य रूप से ऊंची जातियों के हाथों में हैं और ऐसे अंतरराष्ट्रीय सौदों से फायदा भी उन्हीं तक सीमित रहता है।
उदित राज ने क्या कहा?
उदित राज ने साफ शब्दों में कहा,
“पीटर नवारो ने जो कहा, वह तथ्यात्मक रूप से गलत नहीं है। सच्चाई यह है कि भारत के कॉर्पोरेट जगत में पिछड़ी जातियों और दलितों की हिस्सेदारी बेहद कम है। उन्हें बड़े कारोबारी घराने स्थापित करने में अभी लंबा समय लगेगा।”
उनका मानना है कि जब तक कॉर्पोरेट जगत पर कुछ खास जातियों का वर्चस्व बना रहेगा, तब तक रूस जैसे देशों से होने वाले तेल व्यापार का फायदा समाज के बाकी तबकों तक नहीं पहुंचेगा।
नवारो का विवादित बयान
पीटर नवारो ने भारत की व्यापार नीति और रूस से ऊर्जा खरीद को निशाना बनाते हुए कई गंभीर आरोप लगाए।
उन्होंने भारत को “टैरिफ का महाराजा” कहा।
उनका आरोप है कि रूस से तेल खरीदकर भारत यूक्रेन युद्ध को अप्रत्यक्ष रूप से फंड कर रहा है।
नवारो ने कहा कि इस सौदे का मुनाफा सिर्फ ब्राह्मण समुदाय तक सीमित है और आम भारतीय इससे वंचित है।
उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस और चीन के साथ हाल की कूटनीतिक पहलों पर सवाल उठाए और कहा कि भारत का “सत्तावादियों से घुलना-मिलना” लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
इस बयान ने भारतीय राजनीतिक और सामाजिक हलकों में बहस छेड़ दी है।
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने नवारो के इन आरोपों को पूरी तरह खारिज कर दिया। विदेश मंत्रालय का कहना है कि:
रूस से ऊर्जा खरीदना किसी एक वर्ग या समुदाय के लिए नहीं बल्कि पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद है।
भारत की ऊर्जा ज़रूरतें विशाल हैं और किफायती दाम पर तेल खरीदना जनता के हित में है।
रूस से खरीदा गया तेल सीधे तौर पर किसी युद्ध कोष में नहीं जाता, बल्कि यह वैश्विक बाजार की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है।
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका के दबाव और अतिरिक्त टैरिफ के बावजूद वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेगा।
क्यों उठ रहा है जाति आधारित सवाल?
भारत में कॉर्पोरेट जगत पर लंबे समय से ऊंची जातियों का दबदबा रहा है। बड़े-बड़े औद्योगिक घराने ज्यादातर उन्हीं के हाथों में हैं। ऐसे में जब भी कोई अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता है, तो सीधा लाभ इन घरानों तक जाता है।
उदित राज का कहना है कि जब तक दलित और पिछड़ी जातियां आर्थिक रूप से सशक्त नहीं होंगी और बड़े पैमाने पर उद्योग-धंधों में प्रवेश नहीं करेंगी, तब तक संसाधनों का लाभ समान रूप से नहीं बंटेगा।
हालांकि कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मुद्दा केवल जातिगत नहीं है, बल्कि आर्थिक असमानता और संसाधनों के केंद्रीकरण से जुड़ा हुआ है।
अमेरिका-भारत संबंधों पर असर
नवारो का बयान केवल जातिगत विवाद ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति से भी जुड़ा है। अमेरिका लंबे समय से चाहता है कि भारत रूस से तेल और गैस की खरीद कम करे और पश्चिमी देशों के साथ खड़ा हो।
लेकिन भारत ने हमेशा साफ किया है कि उसकी विदेश नीति स्वतंत्र और संतुलित है। भारत अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर फैसले करता है, न कि किसी बाहरी दबाव में।
इस मुद्दे ने एक बार फिर से यह दिखा दिया है कि अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी के बावजूद कई विषयों पर मतभेद बने हुए हैं।
पीटर नवारो का यह बयान कि रूस से तेल खरीद का फायदा सिर्फ ब्राह्मणों को हो रहा है, न केवल भारत-अमेरिका संबंधों में नई खटास पैदा करता है बल्कि भारतीय समाज के भीतर जातिगत असमानता के सवाल को भी सामने लाता है।
जहां भारत सरकार इस बयान को ग़लत और गैर-ज़रूरी मानती है, वहीं उदित राज जैसे नेता इसे सच्चाई की झलक बताते हैं।
आखिरकार, यह बहस भारत की आर्थिक संरचना, ऊर्जा नीति और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन पर केंद्रित है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत कैसे इन चुनौतियों का सामना करता है और अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच अपनी नीतियों को किस तरह आगे बढ़ाता है।