AIN NEWS 1 | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत, चीन और अन्य देशों पर टैरिफ लगाए हैं, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर असर पड़ा है। अमेरिका के इस कदम से कई देशों की आर्थिक स्थिति प्रभावित हुई है और व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ गया है।
हालांकि अब भारत और चीन मिलकर इसका जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। इसमें रूस भी साथ दे सकता है। इसके पीछे उद्देश्य सिर्फ आर्थिक नुकसान की भरपाई नहीं बल्कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली में संतुलन बनाना है।
पीएम मोदी और शी जिनपिंग का सामरिक संवाद
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन दौरे पर गए और तिनजियान में आयोजित SCO (Shanghai Cooperation Organization) समिट में हिस्सा लिया। इस दौरान एक मजबूत और सामरिक तस्वीर सामने आई जिसमें पीएम मोदी, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन साथ दिखाई दिए।
समिट के दौरान देशों ने व्यापार और वित्तीय सहयोग पर चर्चा की। विशेष रूप से नए पेमेंट सिस्टम को लेकर कदम उठाने की बात हुई, जिससे व्यापार में डॉलर पर निर्भरता कम की जा सके।
अमेरिका को जवाब देने की तैयारी
भारत और चीन ने अतीत के सभी गिले-शिकवे भुलाकर अब अमेरिका को जवाब देने की रणनीति बनाई है। ये दोनों देश टैरिफ और आर्थिक दबाव का मुकाबला करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-चीन वैकल्पिक भुगतान प्रणाली तैयार कर रहे हैं। इसका मतलब यह है कि दोनों देश अब अमेरिकी डॉलर के बजाय नया ट्रेडिंग सिस्टम ला सकते हैं।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मत्तेओ माज्जियोरी ने बताया कि आज के समय में शक्तिशाली देश व्यापार और वित्तीय प्रणाली को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। उदाहरण के लिए:
चीन दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण रखता है।
अमेरिका वैश्विक वित्तीय प्रणाली का इस्तेमाल राजनीतिक दबाव के लिए करता है।
प्रोफेसर माज्जियोरी के अनुसार, अब भारत और चीन जैसे देश इस दबाव को कम करने के लिए वैकल्पिक वित्तीय और भुगतान प्रणालियां तैयार कर रहे हैं।
डॉलर पर पड़ सकता है असर
अमेरिका ने भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया है और चीन पर भी कई उच्च शुल्क लगाए गए हैं। अगर भारत और चीन अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नया पेमेंट सिस्टम लाते हैं तो यह अमेरिका के लिए एक भारी झटका साबित हो सकता है।
इस कदम से न केवल अमेरिकी व्यापार पर असर पड़ेगा बल्कि वैश्विक वित्तीय संतुलन भी बदल सकता है। इसके अलावा, कई बड़े देश जो अब तक डॉलर पर व्यापार करते थे, उन्हें नए सिस्टम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
भारत-चीन का रणनीतिक कदम
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम सिर्फ व्यापारिक विरोध नहीं बल्कि वैश्विक आर्थिक सुरक्षा और स्वायत्तता की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। भारत और चीन चाहते हैं कि उनका वित्तीय और व्यापारिक दबदबा अमेरिका के प्रभाव से प्रभावित न हो।
इसके लिए दोनों देश:
साझा व्यापार नीतियां बना रहे हैं।
नया पेमेंट सिस्टम तैयार कर रहे हैं।
वैश्विक बाजार में डॉलर की निर्भरता कम करने की योजना बना रहे हैं।
इस पहल से भारत और चीन के बीच व्यापारिक सहयोग भी मजबूत होगा और भविष्य में किसी भी आर्थिक दबाव का सामना आसानी से किया जा सकेगा।
वैश्विक परिदृश्य पर प्रभाव
यदि भारत और चीन वैकल्पिक भुगतान प्रणाली को लागू कर देते हैं, तो यह कदम वैश्विक आर्थिक ढांचे में बदलाव ला सकता है। डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती मिलने के साथ-साथ,
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विकल्प बढ़ेंगे।
आर्थिक दबाव के लिए राजनीतिक हथियार का उपयोग कम हो सकता है।
अन्य देश भी नई वित्तीय प्रणालियों को अपनाने के लिए प्रेरित होंगे।
भारत और चीन का यह कदम वैश्विक आर्थिक परिदृश्य बदल सकता है। अमेरिका पर टैरिफ और दबाव का असर कम करने के लिए दोनों देश मिलकर नए वित्तीय और व्यापारिक मॉडल विकसित कर रहे हैं। यदि यह सफल रहा, तो डॉलर का प्रभुत्व कम होगा और वैश्विक व्यापार में नई प्रणाली की शुरुआत होगी।



















