अक्टूबर में सबसे ज्यादा ई-दोपहिया बिके

इलेक्ट्रिक स्कूटरों की बिक्री ने तोड़े रिकॉर्ड

30 पैसे में 1 किलोमीटर चलता है ई-दोपहिया

AIN NEWS 1: इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की बढ़ती मांग के बीच अब इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स का बाजार तेज रफ्तार से दौड़ रहा है। इसमें भी सबसे ज्यादा तेजी तो इलेक्ट्रिक स्कूटरों की बिक्री में देखने को मिल रही है। हालांकि पूरे इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स की मार्केट की बात करें तो अक्टूबर में इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स का रजिस्ट्रेशन अपने अबतक के ऑल टाइम हाई 68 हज़ार 324 यूनिट्स पर पहुंच गया। ये आंकड़ा सितंबर के करीब 51 हज़ार यूनिट्स से 29 फीसदी ज्यादा है। इसके बाद जनवरी-अक्टूबर में इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स की कुल दोपहिया की बिक्री में हिस्सेदारी बढ़कर 4 फीसदी हो गई है।

फुल स्पीड में ई-स्कूटर की बिक्री

इस बाजार में भी सबसे ज्यादा तेजी ई-स्कूटर की बिक्री बढ़ने से दर्ज की जा रही है। सितंबर तक के आंकड़ों की बात करें तो देश में बिकने वाला हर सातवां स्कूटर, ई-स्कूटर रहा है। वहीं अगले 3 साल में तो हर दूसरा स्कूटर, इलेक्ट्रिक होने का अनुमान जताया जा रहा है। अगले 8 से 10 महीनों में ही इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स की कुल दोपहिया बिक्री में 10 परसेंट हिस्सेदारी होने का अनुमान है। इससे स्कूटर मार्केट में ई-स्कूटर्स की हिस्सेदारी मौजूदा 15 फीसदी से बढ़कर 30 परसेंट हो सकती है।

नई कंपनियों के आने से बढ़े विकल्प

ई-स्कूटर्स मार्केट में नई नई कंपनियों के आने से वैसे ही लोगों के पास ज्यादा च्वाइस आ गई हैं और इससे मार्केट का साइज भी बढ़ा है। सितंबर में तो लंबे समय से कायम हीरो इलेक्ट्रिक के दबदबे को तोड़ते हुए ओला इलेक्ट्रिक ने ई-स्कूटर्स के सिंहासन पर ही कब्जा कर लिया था। सितंबर में ओला ने 9 हज़ार से ज्यादा स्कूटर्स बेचकर 18.63 फीसदी मार्केट पर कब्जा कर लिया। वहीं 15.99 परसेंट के साथ ओकिनावा दूसरे और हीरो 15.49 फीसदी हिस्सेदारी के साथ तीसरे स्थान पर है। वहीं Ampere 11.95 फीसदी के साथ चौथे और Ather 11.93 परसेंट हिस्सेदारी के साथ पांचवे नंबर पर है।

माइलेज के महाराज हैं ई-वाहन

ई-स्कूटर्स की बिक्री को बढ़ाने में सबसे बड़ी वजह तो इनका माइलेज है। अगर पेट्रोल स्कूटर से तुलना करें तो इनकी लागत सवा 2 रुपए प्रति किलोमीटर के करीब आती है। जबकि ई-स्कूटर चलाने का औसतन खर्च महज 30 पैसे प्रति किलोमीटर है। अभी समस्या इनकी महंगी कीमते हैं जिनका कुछ हद तक समाधान केंद्र और राज्य सरकार से ग्राहकों को मिलने वाली सब्सिडी कर रही है। जैसे ही इनकी बिक्री बढ़ेगी और कंपनियां उत्पादन बढ़ाएंगी तो इनके दाम भी कम होने शुरु हो जाएंगे और ये ग्राहकों के बजट में आने लगेंगे।

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