AIN NEWS 1 | भारत में धर्मांतरण और उससे जुड़ी शादियों का मुद्दा लंबे समय से विवाद और बहस का विषय रहा है। हाल ही में राजस्थान विधानसभा ने एक नया धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किया है, जिसने राजनीतिक गलियारों से लेकर समाज के अलग-अलग वर्गों तक चर्चा को तेज कर दिया है। सरकार का कहना है कि इस कानून का मकसद जबरन, धोखे से या लालच देकर किए जाने वाले धर्म परिवर्तन को रोकना है, जबकि आलोचक इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सीधा हमला मान रहे हैं।
इस विधेयक का सबसे विवादित पहलू यह है कि यदि कोई व्यक्ति अंतरधार्मिक विवाह करना चाहता है और इसके लिए धर्म परिवर्तन करता है, तो उसे शादी से 90 दिन पहले जिला कलेक्टर को सूचना देनी होगी।
कानून का उद्देश्य
राजस्थान सरकार का तर्क है कि यह कानून किसी विशेष धर्म को लक्षित करने के लिए नहीं बनाया गया है। बल्कि इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी को भी उसकी इच्छा के खिलाफ धर्म परिवर्तन न कराया जाए। सरकार का दावा है कि यह कानून सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू होगा और यह केवल उन मामलों पर कार्रवाई करेगा, जहां दबाव, प्रलोभन या धोखाधड़ी के जरिए धर्म बदला जाता है।
विवादित प्रावधान
इस कानून में कुछ प्रावधान ऐसे हैं जो सबसे ज्यादा चर्चा और विरोध का कारण बने हैं:
90 दिन पूर्व सूचना – यदि कोई व्यक्ति विवाह के उद्देश्य से धर्म बदलना चाहता है, तो उसे कम से कम 90 दिन पहले जिला कलेक्टर को लिखित में इसकी सूचना देनी होगी।
जांच और सार्वजनिक नोटिस – कलेक्टर को सूचना मिलने के बाद प्रशासन जांच करेगा और संबंधित व्यक्ति का नाम, पता आदि सार्वजनिक नोटिस के जरिए घोषित करेगा। इससे निजी जीवन के उजागर होने और सामाजिक दबाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
सजा और जुर्माना –
जबरन या धोखे से धर्म परिवर्तन कराने पर 1 से 5 साल की कैद और भारी जुर्माना होगा।
यदि अपराध नाबालिग, महिला या अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति से जुड़ा है, तो सजा और कठोर होगी।
सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में सजा 10 साल से लेकर उम्रकैद तक हो सकती है।
संस्थाओं पर कार्रवाई – यदि कोई संस्था जबरन धर्म परिवर्तन कराने में दोषी पाई जाती है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई और भारी जुर्माना लगाया जाएगा।
“लव जिहाद” की बहस
हालांकि विधेयक में “लव जिहाद” शब्द का उल्लेख नहीं है, लेकिन राजनीतिक बहस में यह शब्द लगातार सामने आ रहा है। सत्ता पक्ष के कुछ नेताओं का कहना है कि यह कानून “लव जिहाद” जैसे मामलों को रोकने के लिए जरूरी है। वहीं, विपक्ष का आरोप है कि यह कानून लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
आलोचना और समर्थन
आलोचना
विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि 90 दिन पहले सूचना देने का प्रावधान सीधे-सीधे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता पर हमला है।
किसी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपनी पसंद का धर्म और जीवनसाथी चुने।
सार्वजनिक नोटिस से समाज में अनावश्यक दबाव और डर का माहौल पैदा होगा।
समर्थन
कानून समर्थकों का कहना है कि यह व्यवस्था समाज में फैल रहे जबरन धर्मांतरण और छल से होने वाली शादियों पर रोक लगाने में मदद करेगी।
उनका तर्क है कि यदि धर्म परिवर्तन स्वेच्छा से और ईमानदारी से हो रहा है, तो डरने की कोई आवश्यकता नहीं है।
विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह कानून अदालतों में चुनौती झेल सकता है। भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतंत्रता और अपनी पसंद से विवाह करने का अधिकार देता है। यदि इस कानून को अदालत में चुनौती दी जाती है, तो यह देखा जाएगा कि क्या यह संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप है या नहीं।
आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर असर
सामाजिक संगठनों का कहना है कि इस कानून का सबसे अधिक प्रभाव आदिवासी और अल्पसंख्यक समुदायों पर पड़ सकता है। इन क्षेत्रों में धर्मांतरण के आरोप अक्सर लगाए जाते हैं और ऐसे में यह कानून वहां के लोगों के लिए अतिरिक्त दबाव पैदा कर सकता है।
राजस्थान का धर्मांतरण विरोधी कानून समाज और राजनीति में एक नई बहस लेकर आया है। सरकार और समर्थक इसे समाज की सुरक्षा और धार्मिक संतुलन बनाए रखने का साधन मान रहे हैं। वहीं, विपक्ष और सामाजिक संगठन इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर सीधा हमला बता रहे हैं।
अब सवाल यह है कि अदालतें इस कानून को किस रूप में स्वीकार करती हैं और आने वाले समय में यह समाज और व्यक्तियों की स्वतंत्रता पर क्या प्रभाव डालता है।