AIN NEWS 1 | उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुई एक दर्दनाक घटना ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है। यहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे 20 वर्षीय छात्र ने अपनी लिंग पहचान (Gender Identity) से जुड़ी मानसिक उलझनों के चलते इतना भयावह कदम उठा लिया, जिसकी कल्पना भी किसी ने नहीं की थी।
जानकारी के अनुसार, छात्र ने अपने कमरे में अकेले रहते हुए पहले खुद को एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया और फिर सर्जिकल ब्लेड से अपना प्राइवेट पार्ट काट लिया। खून की तेज बहाव और गंभीर हालत में उसे एसआरएन अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसकी जान बचाई।
छात्र की पृष्ठभूमि और संघर्ष
यह छात्र मूल रूप से अमेठी जिले का रहने वाला है। पढ़ाई और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए वह प्रयागराज में एक कोचिंग सेंटर से जुड़ा हुआ था।
पुलिस और डॉक्टरों को दिए बयान में छात्र ने बताया कि:
वह 14 साल की उम्र से खुद को लड़कियों जैसा महसूस करता था।
उसकी सोच, आदतें और भावनाएं हमेशा महिलाओं जैसी रही हैं।
परिवार और समाज के डर से उसने यह बात कभी खुलकर किसी को नहीं बताई।
उसने कहा कि वह लंबे समय से मानसिक संघर्ष झेल रहा था और उसकी यही चाहत उसे इस खतरनाक कदम तक ले आई।
गलत सलाह का शिकार
छात्र ने अपनी परेशानी एक परिचित के साथ साझा की। लेकिन मदद करने की बजाय उस व्यक्ति ने बेहद खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना सलाह दी। उसने छात्र से कहा –
“अगर तुम लड़की बनना चाहते हो, तो एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाकर अपना प्राइवेट पार्ट काट दो।”
इस लापरवाह सलाह पर भरोसा करते हुए छात्र ने आत्म-शल्य चिकित्सा (Self-Surgery) करने की कोशिश की और अपनी जान खतरे में डाल दी।
दर्दनाक सर्जरी और मौत के करीब
छात्र ने पहले एनेस्थीसिया का इंजेक्शन लगाया और फिर होश खोते ही सर्जिकल ब्लेड से जननांग काट दिया। शुरू में उसे दर्द महसूस नहीं हुआ, लेकिन जैसे ही इंजेक्शन का असर कम हुआ, तेज दर्द और खून बहना शुरू हो गया।
घबराए हुए छात्र ने किसी तरह अपने मकान मालिक को जानकारी दी। मकान मालिक ने तुरंत एंबुलेंस बुलवाई और उसे अस्पताल पहुंचाया।
डॉक्टरों की जद्दोजहद
एसआरएन अस्पताल के सीनियर डॉक्टर संतोष ने बताया –
“जब छात्र को लाया गया, उसकी हालत बहुत नाजुक थी। खून की भारी कमी और लगातार ब्लीडिंग की वजह से उसकी जान पर खतरा था। हमने तुरंत सर्जरी की और ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जरिए उसकी जान बचाई।”
फिलहाल छात्र खतरे से बाहर है लेकिन डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है। अस्पताल प्रशासन ने उसके लिए मनोचिकित्सक (Psychiatrist) और काउंसलिंग टीम भी नियुक्त की है, ताकि उसे मानसिक तौर पर सहारा मिल सके।
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी
विशेषज्ञों का कहना है कि –
किसी भी तरह की सेल्फ-सर्जरी बेहद खतरनाक और जानलेवा हो सकती है।
जेंडर आइडेंटिटी जैसी समस्याओं में पेशेवर काउंसलिंग और मेडिकल गाइडेंस ही सही रास्ता है।
समाज में अभी भी इस विषय पर जागरूकता की कमी है, जिसके चलते लोग शर्म या डर के कारण चुप रहते हैं और गलत कदम उठा लेते हैं।
एक मनोवैज्ञानिक ने कहा –
“जरूरत है कि परिवार और समाज ऐसे युवाओं को समझें, उनकी भावनाओं का सम्मान करें और सही दिशा दिखाएं।”
पुलिस की जांच
प्रयागराज पुलिस ने घटना की जानकारी मिलते ही जांच शुरू कर दी है। छात्र ने बयान दिया है कि एक परिचित ने उसे यह खतरनाक सलाह दी थी।
पुलिस अधिकारियों का कहना है –
“जिस व्यक्ति ने यह गैर-जिम्मेदाराना सलाह दी, उसकी तलाश की जा रही है। ऐसे लोग समाज के लिए खतरा हैं क्योंकि उनकी वजह से निर्दोष जानें जोखिम में पड़ती हैं।”
समाज और परिवार की जिम्मेदारी
यह घटना केवल एक छात्र की त्रासदी नहीं है, बल्कि पूरे समाज के सामने एक सवाल है –
👉 क्या हम अपने आसपास के युवाओं की भावनाओं और संघर्षों को समझ पा रहे हैं?
👉 क्या जेंडर आइडेंटिटी को लेकर परिवार और समाज पर्याप्त संवेदनशील हैं?
👉 क्या मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है?
अक्सर युवा अपनी परेशानियों को दबाकर जीते हैं और अंत में ऐसे खतरनाक कदम उठा लेते हैं। अगर परिवार और समाज सही समय पर उन्हें समझें, तो ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है।
प्रयागराज का यह मामला हमें चेतावनी देता है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य और जेंडर आइडेंटिटी जैसे संवेदनशील मुद्दों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
छात्र की जान तो डॉक्टरों ने बचा ली, लेकिन उसका दर्द हमें यह सिखाता है कि समाज को बदलने की जरूरत है।
जरूरत है कि –
स्कूल, कॉलेज और समाज में काउंसलिंग की व्यवस्था हो।
युवाओं को मनोवैज्ञानिक सहायता और मेडिकल गाइडेंस आसानी से मिले।
परिवार अपने बच्चों के संघर्ष को समझे और उन्हें अकेला न छोड़े।
तभी हम ऐसी दर्दनाक घटनाओं को रोक पाएंगे और युवाओं को जिंदगी की जंग जीतने में मदद कर सकेंगे।