AIN NEWS 1 | भारतीय राजनीति में चुनाव और लोकतंत्र को लेकर बहसें हमेशा से ही चर्चा का बड़ा मुद्दा रही हैं। Electronic Voting Machine (EVM) की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना विपक्षी दलों की पुरानी आदत रही है। लेकिन हाल ही में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के एक बयान ने राजनीतिक माहौल को और गर्मा दिया।
उन्होंने कहा – “70 साल तक वो EVM हैक करते रहे, तब किसी ने सवाल नहीं उठाया। लेकिन जब हमने कर लिया, तो सबको आपत्ति होने लगी।”
🚨Big Expose
दिल्ली की मुख्यमंत्री का चौंकाने वाला कबूलनामा, स्वीकार किया कि EVM हैक कराई है‼️ pic.twitter.com/mE6kius6ta
— Aam Aadmi Party Delhi (@AAPDelhi) September 21, 2025
यह बयान जैसे ही सामने आया, विपक्ष को एक बड़ा हथियार मिल गया और सोशल मीडिया से लेकर टीवी डिबेट्स तक इस पर गहन चर्चा शुरू हो गई।
बयान का संदर्भ
रेखा गुप्ता का यह बयान विपक्षी दलों के आरोपों के जवाब में आया। विपक्ष लगातार यह कहता रहा है कि चुनावों में EVM से छेड़छाड़ की जाती है और सत्ता पक्ष इसका फायदा उठाता है। मुख्यमंत्री ने व्यंग्यात्मक लहजे में विपक्ष को घेरते हुए कहा कि जब वही दल लंबे समय तक सत्ता में रहे, तब भी यही आरोप लगाए जाते थे। लेकिन तब इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। अब जब वही आरोप मौजूदा सरकार पर लगाए जा रहे हैं, तो इसे बड़ा मुद्दा बना दिया गया है।
इस टिप्पणी का मकसद व्यंग्य था, लेकिन राजनीतिक हलकों और मीडिया ने इसे अलग ही रूप में लेना शुरू कर दिया।
भारत में EVM विवाद का इतिहास
भारत में EVM का इस्तेमाल 1990 के दशक से शुरू हुआ। 2000 के बाद यह देशभर के चुनावों का अभिन्न हिस्सा बन गया।
हारने वाले कई दल लगातार आरोप लगाते रहे कि EVM में गड़बड़ी होती है।
चुनाव आयोग और तकनीकी विशेषज्ञ हमेशा यही कहते आए हैं कि EVM पूरी तरह सुरक्षित है और इसमें छेड़छाड़ संभव नहीं।
सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने भी कई बार अपने फैसलों में कहा कि EVM पारदर्शी और भरोसेमंद हैं।
फिर भी, हर चुनाव के नतीजों के बाद EVM पर आरोप लगाना मानो एक परंपरा बन चुकी है।
विपक्ष का आक्रामक रुख
रेखा गुप्ता का बयान विपक्षी दलों के लिए किसी तोहफे से कम नहीं रहा।
कांग्रेस ने कहा कि मुख्यमंत्री ने खुद मान लिया कि चुनाव निष्पक्ष नहीं हो रहे। पार्टी ने मांग की कि चुनाव आयोग को तुरंत संज्ञान लेना चाहिए।
समाजवादी पार्टी ने बयान को “लोकतंत्र की आत्मा पर हमला” बताया। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि यह सत्ताधारी दल की असलियत का खुलासा है।
आप (AAP) ने टिप्पणी की कि यह “चुनाव प्रक्रिया पर हमला” है और इससे साफ हो गया है कि सरकार खुद EVM पर भरोसा नहीं करती।
विपक्ष का मानना है कि यह केवल व्यंग्य नहीं, बल्कि जनता के भरोसे से खिलवाड़ है।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने बयान पर तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए साफ कहा कि EVM पूरी तरह सुरक्षित है।
EVM किसी भी इंटरनेट नेटवर्क या वाई-फाई से नहीं जुड़ी होती, इसलिए इसे रिमोटली हैक करना असंभव है।
हर चुनाव से पहले और बाद में राजनीतिक दलों की मौजूदगी में मशीनों की जांच और सीलिंग होती है।
आयोग ने नेताओं से अपील की कि वे चुनावी प्रक्रिया पर अविश्वास फैलाने वाले बयान देने से बचें।
सत्ता पक्ष की सफाई
सत्तारूढ़ दल ने कहा कि मुख्यमंत्री का बयान पूरी तरह व्यंग्यात्मक था। प्रवक्ताओं का कहना है कि विपक्ष लगातार हार का ठीकरा EVM पर फोड़ता है, जबकि चुनाव आयोग बार-बार मशीनों की पारदर्शिता साबित कर चुका है।
उनके अनुसार, मुख्यमंत्री ने केवल विपक्ष को आईना दिखाने के लिए यह टिप्पणी की थी।
सोशल मीडिया पर बहस
जैसे ही बयान का वीडियो सामने आया, सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई।
समर्थकों ने कहा कि गुप्ता ने विपक्ष की आदतों पर तंज कसा है।
आलोचकों ने इसे लोकतंत्र की साख को कमजोर करने वाला बयान बताया।
ट्विटर पर #EVM और #RekhaGupta ट्रेंड करने लगे।
मीम्स, पोस्ट्स और वीडियो क्लिप्स वायरल होने लगे।
जनता की राय
आम जनता में भी इस बयान को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ देखने को मिलीं।
कुछ लोग इसे केवल “राजनीतिक व्यंग्य” मानते हैं और कहते हैं कि इसे गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं।
वहीं, कई नागरिक मानते हैं कि जब कोई मुख्यमंत्री ऐसा बयान देता है, तो यह लोकतंत्र की नींव को हिला सकता है।
गाँव की चौपाल से लेकर शहर के कैफ़े तक, लोग इस पर चर्चा करते दिख रहे हैं।
लोकतंत्र और जिम्मेदारी
लोकतंत्र का आधार जनता का विश्वास है। अगर चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता पर बार-बार सवाल उठते रहेंगे, तो यह विश्वास कमजोर हो सकता है।
नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे अपने शब्दों का चयन सावधानी से करें। लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख और जनता का भरोसा बनाए रखना हर जनप्रतिनिधि की प्राथमिकता होनी चाहिए।
सीएम रेखा गुप्ता का बयान चाहे व्यंग्यात्मक हो, लेकिन उसने राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। विपक्ष इसे “लोकतंत्र पर हमला” बता रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इसे “व्यंग्य” करार दे रहा है।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि EVM सुरक्षित हैं। लेकिन इस पूरे विवाद ने एक बार फिर साबित किया है कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था तभी मजबूत रह सकती है, जब सभी दल मिलकर पारदर्शिता और भरोसे को प्राथमिकता देंगे।



















