AIN NEWS 1 | दिल्ली के लाल किले के पास हुए बम धमाके की जांच ने देश की सुरक्षा एजेंसियों को चौंका दिया है। फरीदाबाद-सहारनपुर के जिस टेरर मॉड्यूल को पहले केवल संदिग्ध माना जा रहा था, अब उसी से इस हमले का धागा जुड़ गया है। जांच में बड़ा खुलासा हुआ है कि इस हमले का मुख्य साजिशकर्ता जैश-ए-मोहम्मद का कमांडर अबू उकासा है — जो आतंकी संगठन के सरगना मसूद अजहर का करीबी रिश्तेदार बताया जा रहा है।
अबू उकासा — हमले के पीछे का दिमाग
सुरक्षा एजेंसियों की जांच के अनुसार, अबू उकासा इस पूरी आतंकी साजिश का ‘हैंडलर’ था। फरीदाबाद और सहारनपुर के दो युवकों — डॉक्टर मुजम्मिल गनई और मोहम्मद उमर — को इसी ने ट्रेन किया और ब्रेनवॉश किया।
मोहम्मद उमर, जो धमाके के वक्त हुंडई i20 कार चला रहा था, सीधे तुर्किए (अंकारा) में अबू उकासा के संपर्क में था। शुरू में दोनों की बातचीत व्हाट्सएप पर होती थी, लेकिन बाद में एजेंसियों से बचने के लिए उन्होंने एक एन्क्रिप्टेड ऐप ‘सेशन’ (Session App) का इस्तेमाल शुरू किया।
तुर्किए में रची गई साजिश
जांच में सामने आया है कि डॉ. मुजम्मिल ने कबूला कि वह साल 2022 में तुर्किए गया था ताकि अबू उकासा से सीधे मुलाकात कर सके। वहां उसे और मोहम्मद उमर दोनों को आतंक की राह पर ले जाने के लिए ब्रेनवॉश किया गया।
तुर्किए को इसलिए चुना गया ताकि सुरक्षा एजेंसियों को कोई शक न हो। दोनों को वहां धार्मिक प्रचार, जिहादी विचारधारा और आतंक की रणनीति सिखाई गई। यही नहीं, उन्हें बताया गया कि भारत लौटकर कैसे स्थानीय स्तर पर आतंकी मॉड्यूल खड़ा करना है और कैसे सोशल मीडिया के जरिए नए लोगों को जोड़ा जा सकता है।
तुर्किए की सफाई — “हम आतंक से जुड़े नहीं”
जब दिल्ली धमाके और फरीदाबाद टेरर मॉड्यूल की जांच में तुर्किए का नाम सामने आया, तो वहां की सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया।
तुर्किए के संचार निदेशालय (Directorate of Communications) ने एक बयान जारी कर कहा कि,
“हमारे देश पर लगाए जा रहे ये आरोप पूरी तरह निराधार हैं। तुर्किए किसी भी देश में आतंकी गतिविधियों को न तो वित्तीय सहायता देता है और न ही किसी आतंकी संगठन को लॉजिस्टिक या कूटनीतिक मदद।”
हालांकि, भारतीय एजेंसियां इस बयान से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि कई बार तुर्किए के अंदर जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिद्दीन जैसे संगठनों के सदस्यों की गुप्त मीटिंग्स होती रही हैं।
डॉक्टरों का हाइब्रिड टेरर नेटवर्क
जांच में यह भी सामने आया कि मुजम्मिल और उमर का मॉड्यूल कोई साधारण गिरोह नहीं था। ये दोनों डॉक्टर एक ‘हाइब्रिड टेरर नेटवर्क’ का हिस्सा थे — यानी ऐसा नेटवर्क जिसमें शिक्षित और प्रोफेशनल लोग आतंक के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
दोनों टेलीग्राम ग्रुपों – “उमर बिन खिताब” और “फर्जान दारुल उललूम” से जुड़े हुए थे। इन ग्रुप्स में जैश-ए-मोहम्मद के प्रचार संदेश, मौलाना मसूद अजहर के पुराने भाषण, और जिहाद के लिए उकसावे वाली पोस्टें शेयर की जाती थीं। एजेंसियों का मानना है कि ये ग्रुप जैश से ही संचालित होते थे।
तीन कारें जब्त – नेटवर्क की परतें खुलीं
इस हमले में तीन अलग-अलग कारों का इस्तेमाल किया गया था, जिन्हें अब सुरक्षा एजेंसियों ने जब्त कर लिया है।
पहली कार (हुंडई i20) – यही वह कार थी जिसमें धमाका हुआ। इसे मोहम्मद उमर चला रहा था।
दूसरी कार (लाल फोर्ड इकोस्पोर्ट) – 12 नवंबर को फरीदाबाद के खंडावली गांव से बरामद की गई। यह डॉ. उमर नबी के नाम पर रजिस्टर्ड थी।
तीसरी कार – आज अल-फलाह यूनिवर्सिटी के परिसर से मिली, जो डॉ. शाहीन सईद के नाम पर है।
तीनों वाहनों को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि किस कार में बम फिट किया गया था और विस्फोटक कहां से लाए गए।
जांच एजेंसियों की नजर अब वैश्विक कनेक्शन पर
एनआईए (NIA), दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और इंटेलिजेंस ब्यूरो मिलकर इस पूरे मामले की गहराई से जांच कर रहे हैं।
मुख्य फोकस यह है कि –
अबू उकासा ने किन-किन देशों में अपनी नेटवर्किंग की है,
किस तरह उसने भारतीय युवाओं को अपने जाल में फंसाया,
और भारत में कितने स्लीपर सेल सक्रिय हैं।
एजेंसियों को यह भी शक है कि तुर्किए, पाकिस्तान और सीरिया के बीच आतंक की एक नई कड़ी बन रही है, जिसमें भारतीय डॉक्टरों और प्रोफेशनल्स को “सॉफ्ट टारगेट” बनाकर आतंक में झोंका जा रहा है।
आतंक का नया चेहरा
इस पूरे केस ने सुरक्षा एजेंसियों के सामने एक नया खतरा उजागर किया है —
“हाइब्रिड आतंकवाद”, जहां हथियारों से ज्यादा ब्रेनवॉश और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल होता है।
व्हाट्सएप, टेलीग्राम और सेशन जैसे एन्क्रिप्टेड प्लेटफॉर्म आतंकियों को एक-दूसरे से जोड़ रहे हैं।
इससे वे एजेंसियों की निगरानी से बचकर आसानी से प्लान बना रहे हैं।
नतीजा — अबू उकासा की तलाश तेज़
इस समय सबसे बड़ा सवाल है — अबू उकासा कहां है?
खुफिया सूत्रों के अनुसार, वह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में छिपा हो सकता है और वहीं से अपने नेटवर्क को चला रहा है।
भारत ने इस केस की जानकारी इंटरपोल और तुर्किए की एजेंसियों से साझा की है ताकि उसकी लोकेशन ट्रेस की जा सके।
दिल्ली के इस धमाके ने यह साबित कर दिया है कि आतंकवाद अब पुराने तरीकों से नहीं, बल्कि नई रणनीतियों और तकनीकी उपकरणों के सहारे फैल रहा है।
अबू उकासा जैसा आतंकी अगर डॉक्टरों और शिक्षित युवाओं को अपने जाल में फंसा सकता है, तो यह देश की सुरक्षा व्यवस्था के लिए एक गंभीर संकेत है।
एजेंसियां अब केवल हमले के पीछे के चेहरों को नहीं, बल्कि उनके डिजिटल कनेक्शन, फंडिंग चैनल और अंतरराष्ट्रीय लिंक को भी उजागर करने पर काम कर रही हैं।



















