AIN NEWS 1 | मोकामा विधानसभा सीट एक बार फिर सुर्खियों में है, और वजह है इलाके के प्रसिद्ध बाहुबली नेता अनंत सिंह की ऐतिहासिक जीत। कई विवादों, झगड़ों और जेल में रहने के बावजूद अनंत सिंह ने अपने राजनीतिक कद को एक बार फिर साबित किया और अपने प्रतिद्वंदी वीणा देवी को 29,710 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया। यह जीत इसलिए भी खास है क्योंकि जेल में रहते हुए किसी नेता का इस तरह से चुनाव जीतकर वापसी करना बिहार की राजनीति में कम ही देखने को मिलता है।
छठी बार मोकामा के विजेता बने अनंत सिंह
अनंत सिंह की यह जीत सिर्फ एक चुनावी नतीजा नहीं, बल्कि उनकी लगातार बनी जन-समर्थन की ताकत का प्रमाण है। 2005 से अब तक वे पांच बार विधायक बन चुके थे, और 2025 के इस चुनाव के साथ वे मोकामा से लगातार छठी बार विधानसभा पहुंचे हैं। इस चुनाव में उनका मुकाबला आरजेडी उम्मीदवार और बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी तथा जन सुराज पार्टी के युवा उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी से माना जा रहा था। कुछ समय तक यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले का केंद्र रही, लेकिन आखिरकार जनता ने फिर से अनंत सिंह पर अपना भरोसा दिखाया।
चुनाव प्रचार के दौरान बड़ा विवाद
इस बार का चुनाव शांतिपूर्ण नहीं रहा। चुनाव प्रचार के दिनों में अनंत सिंह और पीयूष प्रियदर्शी के काफिलों का आमना-सामना हो गया, जिसके बाद हालात बिगड़ गए। दोनों तरफ से तीखी झड़प हुई, पथराव हुआ और गोलीबारी भी हुई। इसी गोलीबारी में जन सुराज समर्थक दुलारचंद यादव की मौत हो गई। इस घटना के बाद माहौल गर्म हो गया और पुलिस ने मामले में एफआईआर दर्ज कर ली। इसी के बाद अनंत सिंह को न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया।
रोचक बात यह है कि जब चुनाव के नतीजे आए, उस समय भी अनंत सिंह जेल में ही थे—फिर भी जनता ने उन्हें भारी समर्थन दिया।
पीयूष प्रियदर्शी का जातीय समीकरण
जन सुराज पार्टी के उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी धानुक समुदाय से आते हैं, जो इस क्षेत्र की एक प्रभावशाली जाति है। उन्होंने जातीय आधार पर अपना वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश की और पूरे दम के साथ चुनाव में उतरे। माना जा रहा था कि वे मुकाबले को काफी कड़ा बना देंगे, लेकिन अंत में मतदाताओं ने पुन: एक बार अनंत सिंह के पक्ष में मतदान किया।
मोकामा सीट की दिलचस्प राजनीतिक कहानी
मोकामा सीट पिछले तीन दशक से बाहुबलियों का गढ़ रही है। इसकी राजनीतिक यात्रा बेहद दिलचस्प है:
● 1990 और 1995 — दिलीप सिंह का दौर
अनंत सिंह के बड़े भाई दिलीप सिंह 1990 और 1995 में जनता दल से चुनाव जीते और लालू प्रसाद यादव के करीबी होने के कारण मंत्री भी बने। तब से इस सीट पर बाहुबलियों का प्रभाव बढ़ने लगा।
● 2000 — सूरजभान सिंह की एंट्री
2000 के चुनाव में सूरजभान सिंह ने दिलीप सिंह को हराते हुए इस सीट पर अपनी पकड़ बना ली। यह चुनाव मोकामा की राजनीति का बड़ा मोड़ माना गया।
● 2005 — पहली बार विधायक बने अनंत सिंह
2005 में अनंत सिंह जेडीयू के टिकट पर मैदान में उतरे और सूरजभान सिंह को मात देकर पहली बार विधायक बने। उसी साल दोबारा चुनाव हुआ और वे दूसरी बार भी जीत गए।
● 2010 — तीसरी जीत
2010 में भी वे जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीते। इस समय तक वे मोकामा की राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बन चुके थे।
● 2015 — निर्दलीय के रूप में जीत
2015 में नीतीश कुमार की सरकार से टकराव के बाद उन्होंने जेडीयू छोड़ दिया और निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत हासिल की। यह जीत उनके व्यक्तिगत जनाधार को और मजबूत करने वाला क्षण था।
● 2020 — RJD के टिकट पर पांचवीं जीत
2020 के विधानसभा चुनाव में अनंत सिंह आरजेडी के टिकट पर मैदान में उतरे और जेडीयू के उम्मीदवार राजीव लोचन सिंह को 35,757 वोटों से हराया। उन्हें कुल 78,721 वोट मिले थे।
● 2022 — सजा और सदस्यता समाप्त
2022 में एक मामले में अदालत ने उन्हें दोषी ठहराया, जिसके बाद उनकी विधानसभा सदस्यता समाप्त कर दी गई।
● पत्नी नीलम देवी की उपचुनाव में जीत
उनकी अनुपस्थिति में आरजेडी ने उनकी पत्नी नीलम देवी को टिकट दिया, जिन्होंने उपचुनाव में जीत हासिल की। हालांकि बाद में 2025 के फ्लोर टेस्ट से पहले वे एनडीए में शामिल हो गईं।
● 2025 — फिर से वापसी, जेडीयू के टिकट पर जीत
2025 में अदालत से बरी होने के बाद अनंत सिंह ने एक बार फिर जेडीयू का दामन थामा और उसी पार्टी के टिकट पर छठी बार जीत हासिल की।
जेल में रहकर भी ‘जनता का भरोसा’ कायम
अनंत सिंह की जीत इस बात का संकेत है कि मोकामा की जनता आज भी उन्हें अपना नेता मानती है। विवाद, मुकदमे, सजा—इन सबके बावजूद उनका जनाधार कमजोर नहीं हुआ। इस चुनाव ने एक बार फिर साबित किया कि मोकामा की राजनीति अभी भी उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है।



















