AIN NEWS 1: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शुक्रवार, 5 दिसंबर को मशहूर लोक गायिका नेहा सिंह राठौर की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया। नेहा सिंह राठौर पर आरोप है कि उन्होंने कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए उस दर्दनाक मामले को लेकर सोशल मीडिया पर कुछ बयान दिए, जिसमें 26 पर्यटकों की धर्म पूछकर हत्या कर दी गई थी। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था।
अधिकारियों के मुताबिक, नेहा सिंह राठौर ने इस हत्या कांड की आड़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ ऐसे बयान दिए, जिन्हें निराधार, भ्रामक, धर्म-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी बताया गया है। यही कारण है कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई और उन्होंने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत (anticipatory bail) की मांग की थी।
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हाईकोर्ट ने याचिका क्यों खारिज की?
कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष ने कहा कि सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी घटनाओं पर झूठे या उकसाने वाले बयान देना किसी भी नागरिक के लिए उचित नहीं है—खासकर तब जब ये बयान करोड़ों लोगों तक सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचते हों। सरकारी पक्ष का कहना था कि नेहा ने बेहद संवेदनशील विषय को गलत तरीके से पेश किया और इसे राजनीतिक हमले के तौर पर इस्तेमाल किया, जिससे समाज में तनाव फैलने की आशंका पैदा हो सकती थी।
कोर्ट ने मामले का रिकॉर्ड और सोशल मीडिया पोस्ट देखने के बाद कहा कि prima facie (प्राथमिक दृष्टि से) मामले की गंभीरता को कम करके नहीं देखा जा सकता। अदालत का मत था कि ऐसे मामलों में जांच एजेंसी को स्वतंत्र और बिना दबाव के जांच करने का पूरा अधिकार होना चाहिए। इसलिए अग्रिम जमानत देना उचित नहीं समझा गया।
नेहा सिंह राठौर का पक्ष क्या था?
नेहा सिंह राठौर देशभर में अपनी व्यंग्यात्मक गानों और सामाजिक मुद्दों पर जी-खास बोलने की शैली के लिए जानी जाती हैं। उनके वकीलों ने कोर्ट में दलील दी कि नेहा एक कलाकार हैं और उन्होंने जो भी कहा, वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है। उनका कहना था कि उन्होंने किसी को भड़काने की नीयत से कुछ नहीं कहा।
वकीलों का तर्क था कि सोशल मीडिया पोस्ट को गलत तरीके से पेश किया गया है और इसे राजनीतिक नजरिये से देखा जा रहा है। नेहा ने जानबूझकर किसी धर्म, समुदाय या सरकार को निशाना नहीं बनाया। उन्होंने सिर्फ एक सामाजिक मुद्दे पर अपनी राय जाहिर की।
हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया और कहा कि कलाकार होने का मतलब यह नहीं है कि कोई संवैधानिक सीमाओं से बाहर जाकर बयान दे सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है और इसका इस्तेमाल किसी भी तरह के नफरत फैलाने वाले कंटेंट के लिए नहीं किया जा सकता।
पहलगाम की घटना का संदर्भ
यह मामला तब सामने आया जब पहलगाम में 26 पर्यटकों पर हमला किया गया और आरोप है कि हमलावरों ने इनकी धर्म पूछकर हत्या की। यह घटना बेहद संवेदनशील थी और इससे देशभर में तनाव का माहौल बना। बाद में पुलिस जांच में कई महत्वपूर्ण तथ्य सामने आए, लेकिन सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें भी फैलती रहीं।
इसी माहौल में नेहा सिंह राठौर ने एक पोस्ट की, जिसमें उन्होंने सरकार की आलोचना की। इसी पोस्ट को लेकर विवाद बढ़ गया और उनपर गंभीर आरोप लगे। पुलिस ने पोस्ट को “उकसाने वाला” और “तथ्यों से परे” बताया।
सोशल मीडिया और कानून
हाल के वर्षों में सोशल मीडिया पर किसी भी घटना को लेकर बयान देने को लेकर कई लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होती रही है। अदालतें लगातार यह कहती रही हैं कि सोशल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ होना चाहिए, क्योंकि इसके माध्यम से गलत सूचना या भड़काऊ कंटेंट बहुत तेजी से फैलता है।
नेहा का मामला भी इसी श्रेणी का माना जा रहा है। अदालत का कहना है कि जब कोई व्यक्ति बड़ी संख्या में फॉलोअर्स रखता है, तब उसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। भ्रामक या आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित पोस्ट समाज में तनाव पैदा कर सकते हैं।
आगे क्या होगा?
अग्रिम जमानत खारिज हो जाने के बाद अब पुलिस आगे की कार्रवाई कर सकती है। हालांकि नेहा सिंह राठौर के वकील यह संकेत दे चुके हैं कि वे इस फैसले को चुनौती देने के लिए सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
इसके अलावा, कई सामाजिक संगठन और कलाकार समुदाय इस मामले पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बता रहे हैं, जबकि कुछ लोग कहते हैं कि संवेदनशील मुद्दों पर बोलते समय जिम्मेदारी सबसे महत्वपूर्ण होती है।
समाज पर प्रभाव
यह मामला केवल एक व्यक्ति की जमानत याचिका तक सीमित नहीं है। यह एक बड़ा सवाल उठाता है कि सोशल मीडिया की आज़ादी और कानून की सीमाएं कहां तक हैं?
आज का समय ऐसा है जब छोटी सी पोस्ट समाज में बड़ा असर डाल सकती है। इसलिए जरूरी है कि कलाकार, पत्रकार, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और आम लोग अपनी बात रखते समय तथ्यों का ध्यान रखें और संवेदनशील मुद्दों पर बिना प्रमाण कुछ भी ना कहें।
साथ ही, सरकार और जांच एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि वे किसी भी स्थिति में बिना कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने का प्रयास न करें। लोकतंत्र में दोनों के बीच संतुलन ही देश की मजबूती का आधार है।
The Allahabad High Court’s decision to reject Neha Singh Rathore’s anticipatory bail plea has intensified the debate on social media accountability in India. The case revolves around her alleged provocative and anti-national remarks following the Pahalgam incident, where 26 tourists were reportedly killed. This article provides a detailed overview of the court proceedings, political reactions, legal arguments, and the broader impact of social media on public sentiment—making it essential reading for those tracking Indian judiciary developments, social media laws, and political controversies.






