AIN NEWS 1: भारत में अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह के लिए काफ़ी कुछ विवाद चलते रहते हैं. यूं तो हिंदुओं के लिए हिंदू मैरिज एक्ट और मुस्लिमों के लिए मुस्लिम मैरिज एक्ट का प्रावधान होता है. लेकिन इन एक्ट से विवाह करने वालो के लिए जरूर है कि विवाह करने वाले दोनों ही व्यक्ति उसी एक ही धर्म के हों नहीं तो उन दोनो मे से एक को धर्म परिवर्तन करना होगा. वहीं लव जेहाद को लेकर भी कई लोगों की काफ़ी ज्यादा आपत्ति है क्यूके बहुत से लोग एक सुनियोजित तरीके से लड़कियों को बहला फुसला कर केवल धर्म परिवर्तन कराने के लिए ही विवाह कराते हैं. लेकिन क्या हो अगर अलग अलग धर्म को मानने वाले दो शख्स अगर आपस में शादी तो करे , लेकिन उन्हे अपना धर्म केवल शादी की वजह से नहीं बदलना पड़े . जी हां ऐसे में आपके पास समाधान है वो है स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act). हाल ही में यह एक्ट एक बार फिर से काफ़ी ज्यादा सुर्खियों में है क्योंकि फिल्मी एक्ट्रेस स्वरा भास्कर जिनकी अभी हाल में फहाद अहमद से हुई है उन्होने इसी कानून के जरिए यह शादी की है.

जाने यह एक प्यार को मौका देने वाला कानून! 

स्वरा भास्कर ने फिलहाल ही फहाद जिरार अहमद से इस कानून के जरिए शादी करने के बाद इस कानून की काफ़ी तारीफ की जो धार्मिक कानूनों के बिना ही अलग अलग धर्मों के लोगों को बिना उनके धर्म बदले शादी करने का पूरा मौका देता है. उन्होंने कहा कि कम से कम एक ऐसा कानून तो है जो प्यार को पूरा मौका देता है. उन्होंने अपने ट्वीट में आगे कहा है कि प्रेम का अधिकार, जीवन साथी चुनने का अधिकार, विवाह का अधिकार यह किसी का विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए.

जाने तो क्या है इस कानून में स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 जिसे एसएमए भी कहते हैं 

सिविल मैरिज का कानून है जो धर्म की जगह राज्य को ही विवाह कराने का पूरा अधिकार देता है. विवाह, तलाक, बच्चे को गोद लेने जैसे काम धार्मिक नियमों के तहत ही निर्धारित होते हैं जिन्हे बिलकुल अलग से कानून का रूप दिया गया है. इन्हें पर्सनल लॉ भी कहा जाता है. मुस्लिम मैरिज एक्ट 1954 और हिंदू मैरिज एक्ट 1955 इसी कानून के तहत ही आते हैं.एक बड़ी समस्या पर्सनल लॉ के साथ यह है कि वर हो या वधु दोनों ही पक्षों का धर्म एक ही होना चाहिए और अगर एक नहीं हो तो उनमे से एक को धर्म परिवर्तन करना होगा. यानि अगर कोई हिंदू हो और वो मुस्लिम से शादी करना चाहते हैं, और अगर वे मुस्लिम मैरिज एक्ट के जरिए यह शादी करना चाहें तो जो हिंदू हो उसको मुस्लिम धर्म अपनाना होगा और वहीं अगर दोनों हिंदू मैरिज एक्ट के जरिए शादी करना चाहें तो जो मुस्लिम हो उसे हिंदू बनना ही होगा.यह सभी धर्मों के लिए लेकिन एसएमए में किसी के भी बिना धर्म परिवर्तन किए या अपनी धार्मिक पहचान गंवाए ही दो अलग धर्म  वो (केवल हिंदू या मुस्लिम ही नहीं) के व्यक्ति से शादी कर सकते है. भारत में सिविल और धार्मिक दोनो ही तरह के विवाह की पूरी स्वीकृति है. इसमें भारत के धर्मों के लोग जिसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, भी शामिल हैं. इस नियम में कुछ शर्तें जरूर हैं लेकिन वे किसी धर्म के आड़े आने वाली शर्तें बिलकुल भी नहीं लगती हैं.

जाने योग्यता का अहम पहलू 

इस कानून के मुताबिक एक शर्त यह भी है जिसके मुताबिक शादी के समय किसी भी पक्ष का पहले से ही जीवनसाथी बिलकुल भी नहीं होना चाहिए या कोई भी पक्ष मानसिक तौर पर शादी के लिए जायज सहमति देने की स्थिति में अक्षम नहीं होना चाहिए. और भले ही दोनों पक्ष सहमति देने की स्थिति में हों, लेकिन यह जरूरी है कि दोनों में से कोई भी बार बार पागलपन के मानसिक दौरे बिलकुल ना आते हों या वे किसी भी मानसिक विकार से पीड़ित ना हों जिससे वे विवाह के लिए अयोग्य हो जाएं.

जाने उन्हे एक नोटिस देना होगा

वैसे तो इस कानून में विवाह की उम्र लड़के के लिए 21 और लड़की 18 है लेकिन अब लड़कियों के लिए यह उम्र 21 करने पर बिल जरूर पास हुआ है लेकिन यह कानून अभी तक लागू नहीं हुआ है. विवाह की प्रक्रिया के लिए पहले कानून की धारा 5 के तहत शादी करने वाले पक्षों को एक लिखित नोटिस उस जिले के मैरिज ऑफिसर को देना होता है जिसमें कम से कम एक पक्ष एक महीने से वहां का निवासी हो.नोटिस मिलने के बाद ऑफिस उसे जारी करता है जिसके बाद 30 दिन का समय उन्हे मिलता है.इस दौरान अगर किसी को भी इस शादी पर आपत्ति  हो तो उसकी जांच हो सकती है. इसके बाद अगर आपत्ति की जांच में धारा 4 के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं पाया जाता है तो फिर इस शादी की प्रक्रिया शुरू होती है जिसमें दोनों पक्षों को वहा उपस्थित रहना होता है और साथ ही तीन गवाहों की जरूरत पड़ती है जो मैरिज ऑफिसर में दस्तखत करते हैं. और आधिकारिक तौर पर यह शादी मान्य हो जाती है.

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