AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश की कानून-व्यवस्था और पुलिस प्रशासन पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। इस बार मामला पूर्व आईपीएस अधिकारी और आज़ाद अधिकार सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमिताभ ठाकुर की वाराणसी कोर्ट में पेशी से जुड़ा है, जहां सुरक्षा और प्रशासनिक जिम्मेदारी में भारी चूक सामने आई है। आरोप है कि अधिकारियों ने आनन-फानन में नियमों को ताक पर रखकर अमिताभ ठाकुर को एक ऐसी प्रिजन वैन से 450 किलोमीटर का लंबा सफर कराया, जो न तो फिट थी और न ही बीमित।
बी-वारंट पर पेशी, लेकिन सुरक्षा मानकों की अनदेखी
पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर को बी-वारंट के तहत देवरिया जिला जेल से वाराणसी एसीजेएम कोर्ट में पेश किया जाना था। यह एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया है, लेकिन इस दौरान जो लापरवाही हुई, उसने पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया। जानकारी के अनुसार, देवरिया पुलिस ने अमिताभ ठाकुर को जिस प्रिजन वैन से भेजा, उसका न तो वैध बीमा था और न ही फिटनेस सर्टिफिकेट।
जिस वैन से सफर कराया गया, वह खुद ‘कानून के खिलाफ’ थी
सूत्रों के अनुसार, जिस प्रिजन वैन (नंबर: UP-52 AG 0273) से अमिताभ ठाकुर को ले जाया गया, उसका बीमा 31 मार्च 2018 को ही समाप्त हो चुका था। वहीं, वाहन की फिटनेस भी 12 नवंबर 2021 से एक्सपायर थी। यानी यह वाहन कई सालों से कानूनी रूप से सड़क पर चलने योग्य ही नहीं था।
परिवहन विभाग से जुड़े एक ऑनलाइन पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों से यह स्थिति साफ तौर पर सामने आई है। सवाल यह उठता है कि जब आम नागरिक के लिए बिना बीमा और फिटनेस के वाहन चलाना अपराध है, तो फिर एक पूर्व आईपीएस अधिकारी को ऐसे वाहन में कैसे ले जाया गया?
देवरिया से वाराणसी और फिर वापस—पूरा सफर खतरे से भरा
अमिताभ ठाकुर को इसी अनफिट और अन-इंश्योर्ड प्रिजन वैन में देवरिया जिला जेल से वाराणसी सेंट्रल जेल लाया गया। इसके बाद उन्हें वाराणसी एसीजेएम कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट की कार्यवाही के बाद देर रात फिर उसी वाहन से उन्हें देवरिया वापस भेज दिया गया।
करीब 450 किलोमीटर के इस लंबे सफर में किसी भी तरह की तकनीकी खराबी, दुर्घटना या आपात स्थिति जानलेवा साबित हो सकती थी। इसके बावजूद प्रशासन ने न तो वैकल्पिक व्यवस्था की और न ही सुरक्षा मानकों का पालन किया।
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पूर्व IPS की जान जोखिम में, जिम्मेदारी किसकी?
इस पूरे मामले ने सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा किया है कि आखिर एक पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की सुरक्षा को लेकर इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हो सकती है? अगर किसी आम कैदी के साथ ऐसा होता तो भी यह गंभीर मामला होता, लेकिन यहां तो बात एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने खुद पुलिस सेवा में रहते हुए कानून और व्यवस्था को संभाला है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की लापरवाही न सिर्फ प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती है, बल्कि यह मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है।
मामला खुलते ही अफसरों में जिम्मेदारी टालने की होड़
जब यह मामला सार्वजनिक हुआ, तो संबंधित अफसर जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते नजर आए। वाराणसी पुलिस का कहना है कि यह प्रिजन वैन देवरिया से लाई गई थी और उसे वहीं की पुलिस लाइन से उपलब्ध कराया गया था। वाराणसी पुलिस के अनुसार, अमिताभ ठाकुर को उनकी किसी गाड़ी से नहीं ले जाया गया।
एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“इस वाहन की जिम्मेदारी देवरिया पुलिस की है। हमें इसकी बीमा और फिटनेस स्थिति की जानकारी नहीं थी।”
क्या ‘जानकारी न होना’ ही जवाबदेही से मुक्ति है?
प्रशासनिक हलकों में यह तर्क कई सवाल खड़े करता है। क्या किसी वाहन को इस्तेमाल करने से पहले उसकी वैधता जांचना जिम्मेदार अधिकारियों का कर्तव्य नहीं है? क्या सिर्फ “हमें पता नहीं था” कहकर इतनी बड़ी लापरवाही से पल्ला झाड़ा जा सकता है?
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में संबंधित अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई होनी चाहिए, क्योंकि यह सीधे तौर पर एक व्यक्ति की जान को खतरे में डालने का मामला है।
मानवाधिकार और कानून-व्यवस्था पर असर
यह घटना केवल एक व्यक्ति से जुड़ा मामला नहीं है, बल्कि यह पूरे सिस्टम की कार्यशैली पर सवाल उठाती है। अगर पुलिस हिरासत में किसी व्यक्ति को असुरक्षित वाहन में ले जाया जाता है, तो यह संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन और सुरक्षा के अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा।
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इस तरह की घटनाएं भविष्य में किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकती हैं।
जांच और कार्रवाई की मांग तेज
मामले के सामने आने के बाद सामाजिक संगठनों और कानूनी विशेषज्ञों ने निष्पक्ष जांच की मांग की है। यह भी मांग उठ रही है कि यह पता लगाया जाए कि आखिर किस स्तर पर चूक हुई और कौन इसके लिए जिम्मेदार है।
पूर्व आईपीएस अमिताभ ठाकुर से जुड़े इस मामले ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या नियम सिर्फ आम जनता के लिए हैं, या प्रशासन भी उनके पालन के लिए जवाबदेह है।
Former IPS officer Amitabh Thakur’s court production in Varanasi has exposed a serious security lapse by Uttar Pradesh Police. Deoria police allegedly transported him over a 450 km distance in an uninsured and unfit prison van with expired fitness and insurance, raising major concerns about safety, accountability, and police negligence in high-profile cases.



















