संघ को BJP की नजर से देखना क्यों है एक बड़ी भूल: मोहन भागवत का साफ संदेश!

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AIN NEWS 1: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को लेकर देश में अक्सर एक ही तरह की बहस सुनने को मिलती है। बहुत से लोग संघ को केवल भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जोड़कर देखते हैं और उसी चश्मे से उसकी भूमिका, उद्देश्य और विचारधारा को समझने की कोशिश करते हैं। लेकिन संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत का कहना है कि यह सोच न सिर्फ अधूरी है, बल्कि पूरी तरह भ्रामक भी है।

डॉ. मोहन भागवत ने साफ शब्दों में कहा है कि संघ को BJP की नजर से समझना एक बड़ी गलती होगी। अगर वास्तव में संघ को समझना है, तो उसके लिए संघ को अलग दृष्टि से देखना होगा। और उससे भी आगे जाकर, संघ को केवल देखकर नहीं, बल्कि अनुभव करके समझना पड़ेगा।

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संघ और BJP: समानता नहीं, स्वतंत्रता

देश की राजनीति में BJP और संघ का नाम अक्सर एक साथ लिया जाता है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि BJP से जुड़े कई नेता कभी न कभी संघ से जुड़े रहे हैं। लेकिन संघ खुद को कभी भी राजनीतिक संगठन नहीं मानता। संघ का काम सत्ता पाना नहीं, बल्कि समाज निर्माण करना है।

संघ की स्थापना 1925 में डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। उस समय न तो BJP थी और न ही कोई मौजूदा राजनीतिक ढांचा। संघ का उद्देश्य था—

समाज को संगठित करना

राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी की भावना जगाना

व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण

यही कारण है कि संघ का काम राजनीति से कहीं आगे और गहरा है।

संघ को “देखने” से नहीं, “जीने” से समझा जा सकता है

डॉ. मोहन भागवत का यह कथन बेहद महत्वपूर्ण है कि संघ को देखकर समझ में नहीं आता। बाहर से देखने पर संघ केवल शाखाएं, अनुशासन, गणवेश और कार्यक्रमों तक सीमित दिख सकता है। लेकिन संघ की असली पहचान इनसे कहीं आगे है।

संघ की शाखा में आने वाला स्वयंसेवक केवल व्यायाम नहीं करता, बल्कि वह—

समाज के लिए सोचता है

अपने आचरण को सुधारता है

राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को समझता है

संघ का काम किसी प्रचार अभियान की तरह नहीं होता, बल्कि यह एक धीमी, लगातार और मौन प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के चरित्र को गढ़ती है।

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अनुभव क्यों जरूरी है?

संघ को समझने के लिए अनुभव इसलिए जरूरी है क्योंकि संघ किसी किताब या भाषण से नहीं, बल्कि व्यवहार से सिखाता है। यहां विचारधारा थोपे नहीं जाती, बल्कि उदाहरण के जरिए दिखाई जाती है।

संघ से जुड़े लोग आम तौर पर—

प्राकृतिक आपदाओं में बिना नाम-यश के काम करते हैं

शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के क्षेत्रों में चुपचाप योगदान देते हैं

समाज में जाति, भाषा और क्षेत्र से ऊपर उठकर काम करते हैं

ये सारे पहलू टीवी डिबेट या सोशल मीडिया पोस्ट में नहीं दिखते।

संघ का राष्ट्रवाद: राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक

संघ का राष्ट्रवाद सत्ता केंद्रित नहीं है। यह राष्ट्रवाद भारतीय संस्कृति, परंपरा और समाज की जड़ों से जुड़ा हुआ है। संघ के लिए राष्ट्र कोई केवल भौगोलिक सीमा नहीं, बल्कि साझा जीवन मूल्य है।

डॉ. मोहन भागवत कई बार कह चुके हैं कि—

“राष्ट्र पहले है, संगठन बाद में।”

यही सोच संघ को बाकी संगठनों से अलग बनाती है।

आलोचना और गलतफहमियां

संघ को लेकर आलोचनाएं नई नहीं हैं। कुछ लोग इसे बंद संगठन कहते हैं, कुछ इसे राजनीतिक एजेंडा से जोड़ते हैं। लेकिन डॉ. मोहन भागवत का कहना है कि संघ किसी से छिपता नहीं है। संघ का काम खुला है, उसकी शाखाएं खुली हैं और उसके कार्यक्रम सार्वजनिक हैं।

असल समस्या यह है कि लोग संघ को समझने के बजाय, अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर राय बना लेते हैं।

संघ का संदेश: आओ, देखो, समझो

संघ किसी को जबरदस्ती अपने साथ जोड़ने की कोशिश नहीं करता। उसका संदेश सीधा है—

अगर समझना है, तो पास आकर देखो।

अगर जानना है, तो अनुभव करो।

संघ न तो किसी राजनीतिक दल का विकल्प है और न ही उसका विस्तार। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन है, जिसकी सोच दीर्घकालिक है।

डॉ. मोहन भागवत का बयान दरअसल एक आम नागरिक के लिए खुला निमंत्रण है—

संघ को अफवाहों, राजनीतिक बहसों या टीवी डिबेट के चश्मे से न देखें।

उसे उसके काम, उसकी सोच और उसके स्वयंसेवकों के आचरण से समझने की कोशिश करें।

संघ को BJP तक सीमित करना, उसके सौ साल पुराने सामाजिक योगदान को नजरअंदाज करने जैसा है।

संघ को समझना है, तो उसे महसूस करना होगा—

यही उसका मूल संदेश है।

The Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS), as explained by Chief Mohan Bhagwat, is often misunderstood when viewed solely through the lens of the Bharatiya Janata Party (BJP). RSS ideology focuses on nation-building, cultural nationalism, and social service rather than political power. Understanding RSS requires direct experience with its grassroots activities, volunteer network, and philosophy that goes beyond electoral politics. This distinction between RSS and BJP is crucial to understanding India’s socio-cultural landscape.

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