AIN NEWS 1: भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला अरावली एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के कारण चर्चा में है। यह पहाड़ियां केवल पत्थरों का ढेर नहीं हैं, बल्कि उत्तर भारत के पर्यावरण की रीढ़ मानी जाती हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की नई परिभाषा और उससे जुड़े नियमों पर गहरी चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से 6 अहम सवाल पूछे हैं।
कोर्ट ने साफ संकेत दिए हैं कि अगर अरावली के संरक्षण से जुड़े नियमों में लापरवाही हुई, तो इसके परिणाम सिर्फ पर्यावरण तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि पानी, हवा, जैव विविधता और मानव जीवन पर भी गहरा असर पड़ेगा।
🌿 अरावली क्यों इतनी महत्वपूर्ण है?
अरावली पर्वत श्रृंखला राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात तक फैली हुई है। इसकी भूमिका कई स्तरों पर बेहद अहम है:
यह रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकती है
भूजल को रिचार्ज करने में मदद करती है
दिल्ली-NCR और आसपास के इलाकों में हवा की गुणवत्ता बनाए रखती है
वन्यजीवों और जैव विविधता का सुरक्षित आश्रय है
तापमान संतुलन में अहम भूमिका निभाती है
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अरावली कमजोर होती है, तो दिल्ली और NCR क्षेत्र रहने लायक नहीं रहेगा।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को दिए गए एक आदेश को 21 जनवरी तक लागू करने पर रोक लगा दी है। यह आदेश अरावली की नई परिभाषा और उसके तहत संरक्षण क्षेत्र तय करने से जुड़ा था।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से सीधे और स्पष्ट शब्दों में पूछा है कि—
“क्या नियमों में बदलाव से अरावली का संरक्षण क्षेत्र कम नहीं हो जाएगा?”
❓ सुप्रीम कोर्ट के 6 बड़े सवाल
1️⃣ 500 मीटर गैप वाली परिभाषा क्यों?
नई परिभाषा में कहा गया है कि अगर दो पहाड़ियों के बीच 500 मीटर का अंतर है, तो उसे अरावली का हिस्सा नहीं माना जाएगा।
कोर्ट ने पूछा—
क्या इससे बड़े हिस्से को संरक्षण से बाहर नहीं कर दिया जाएगा?
क्या यह नियम जानबूझकर खनन और निर्माण के रास्ते खोलने के लिए लाया गया है?
2️⃣ क्या संरक्षित क्षेत्र घट जाएगा?
कोर्ट की चिंता है कि नई परिभाषा से अरावली का वह हिस्सा जो अभी तक सुरक्षित था, कानूनी रूप से असुरक्षित हो सकता है।
इसका मतलब—
जंगल क्षेत्र कम होगा
अवैध निर्माण और खनन को बढ़ावा मिल सकता है
3️⃣ खनन से इकोलॉजिकल कनेक्टिविटी कैसे बचेगी?
अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं, बल्कि एक जुड़ा हुआ इको-सिस्टम है।
कोर्ट ने पूछा—
अगर अलग-अलग हिस्सों को अलग मान लिया गया, तो जानवरों का प्राकृतिक मूवमेंट कैसे होगा?
वन्यजीवों की सुरक्षा कौन सुनिश्चित करेगा?
4️⃣ क्या यह पर्यावरणीय कानूनों के खिलाफ नहीं?
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि—
क्या नई परिभाषा वन संरक्षण कानून और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की भावना के खिलाफ नहीं है?
क्या यह संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन नहीं?
5️⃣ विशेषज्ञों की राय क्यों नहीं ली गई?
कोर्ट ने पूछा कि—
क्या नियम बदलने से पहले स्वतंत्र पर्यावरण विशेषज्ञों से सलाह ली गई?
क्या जनता और प्रभावित क्षेत्रों की राय शामिल की गई?
6️⃣ क्या नई हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी बनेगी?
सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि वह एक नई हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी के गठन पर विचार कर सकता है, जो—
अरावली की वैज्ञानिक परिभाषा तय करेगी
संरक्षण और विकास के बीच संतुलन सुझाएगी
🚨 नियम बदलने से क्या खतरे हैं?
अगर अरावली के नियम कमजोर किए गए, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं:
दिल्ली-NCR में हवा और भी जहरीली
भूजल स्तर में भारी गिरावट
बाढ़ और सूखे की समस्या
वन्यजीवों का विस्थापन
जलवायु परिवर्तन का असर तेज
विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अरावली का नुकसान अपूरणीय होगा।
🛑 सरकार की जिम्मेदारी क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि—
विकास जरूरी है, लेकिन पर्यावरण की कीमत पर नहीं
सरकार को पारदर्शिता के साथ जवाब देना होगा
संरक्षण से जुड़े फैसलों में जल्दबाजी नहीं चलेगी
🌱 आगे क्या?
अब सभी की नजरें 21 जनवरी पर टिकी हैं, जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगला फैसला दे सकता है।
यह सिर्फ एक कानूनी मामला नहीं, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों का सवाल है।
अरावली को बचाना कोई विकल्प नहीं, बल्कि जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट के सवाल यह साफ करते हैं कि अगर आज अरावली नहीं बची, तो कल हवा, पानी और जीवन भी संकट में पड़ जाएगा।
अब देखना यह है कि सरकार पर्यावरण को प्राथमिकता देती है या विकास के नाम पर प्रकृति से समझौता।
The Aravalli Hills are one of the oldest mountain ranges in the world and play a critical role in environmental balance in northern India. The Supreme Court of India has raised serious concerns over the revised definition of the Aravalli forest area, questioning whether it may reduce protected land, allow mining activities, and damage ecological connectivity. The Aravalli case highlights the importance of forest protection, biodiversity conservation, and sustainable development amid growing environmental challenges.



















