हिंदुओं के बाद अब बौद्ध भी निशाने पर? बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर मंडराता खतरा!

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AIN NEWS 1: मुस्लिम-बहुल बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति एक बार फिर गंभीर सवालों के घेरे में है। बीते कुछ महीनों में कथित ईशनिंदा के आरोपों के नाम पर हिंदू समुदाय के कई लोगों की हत्या और उत्पीड़न की घटनाएं सामने आईं। अब हालिया रिपोर्ट्स और दावों में यह कहा जा रहा है कि बांग्लादेश में रहने वाले बौद्ध समुदाय को भी बड़े पैमाने पर निशाना बनाए जाने की साजिश रची जा रही है।

यह पूरा घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आ रहा है जब देश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है और शेख हसीना सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद प्रशासनिक नियंत्रण कमजोर पड़ता दिखाई दे रहा है।

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बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की बदलती तस्वीर

बांग्लादेश की कुल आबादी में मुसलमानों की संख्या लगभग 90 प्रतिशत है। शेष 10 प्रतिशत में हिंदू, बौद्ध, ईसाई और अन्य छोटे समुदाय शामिल हैं। आजादी के बाद से ही देश खुद को एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बताता रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत कई बार इससे अलग दिखती है।

हिंदू समुदाय लंबे समय से हमलों, जमीन कब्जे, जबरन धर्मांतरण और हिंसा की शिकायत करता रहा है। अब जब बौद्ध समुदाय को लेकर भी खतरे की बात सामने आई है, तो यह साफ हो गया है कि मामला केवल किसी एक धर्म तक सीमित नहीं रह गया है।

बौद्ध समुदाय बांग्लादेश में कहां से आया?

बांग्लादेश में बौद्धों की उपस्थिति कोई नई बात नहीं है। यह समुदाय सदियों से यहां मौजूद रहा है, खासतौर पर देश के दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में। चिटगांव हिल ट्रैक्ट्स (CHT), रखाइन राज्य से सटे इलाके और कॉक्स बाजार जैसे क्षेत्रों में बौद्धों की आबादी अधिक है।

इनमें से बड़ी संख्या में लोग चकमा, मारमा और रखाइन जनजातियों से जुड़े हैं। यह समुदाय न सिर्फ धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी बांग्लादेश की पहचान का हिस्सा रहा है। ऐतिहासिक रूप से ये लोग शांतिपूर्ण जीवन और खेती-आधारित आजीविका से जुड़े रहे हैं।

हिंदुओं पर हमले और ईशनिंदा के आरोप

हाल के वर्षों में बांग्लादेश में ईशनिंदा के आरोपों का इस्तेमाल हिंसा के हथियार के रूप में होता दिखा है। सोशल मीडिया पोस्ट, अफवाह या किसी विवाद को आधार बनाकर भीड़ हिंसक हो जाती है।

कई मामलों में बिना किसी ठोस जांच के लोगों को मार दिया गया। हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़, घर जलाने और महिलाओं को निशाना बनाने जैसी घटनाएं अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट में भी दर्ज हैं।

अब बौद्ध समुदाय पर खतरे का दावा

हाल ही में कुछ स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय स्रोतों ने दावा किया है कि बांग्लादेश में लाखों बौद्धों को निशाना बनाने की साजिश रची जा रही है। यह दावा सामने आने के बाद बौद्ध बहुल इलाकों में डर का माहौल है।

हालांकि सरकार या सुरक्षा एजेंसियों की ओर से इस साजिश को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है, लेकिन जिस तरह पहले हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई, उसे देखते हुए इन आशंकाओं को पूरी तरह नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता।

शेख हसीना सरकार के बाद बढ़ी चिंता

शेख हसीना के कार्यकाल में भले ही आलोचनाएं रही हों, लेकिन अल्पसंख्यकों का मानना है कि उनकी सरकार के दौरान स्थिति तुलनात्मक रूप से नियंत्रित थी। सरकार बदलने के बाद कट्टरपंथी ताकतों के सक्रिय होने की आशंका बढ़ी है।

राजनीतिक शून्यता और कमजोर प्रशासनिक ढांचे का फायदा अक्सर उग्र समूह उठाते हैं, और इसका सीधा असर सबसे पहले अल्पसंख्यकों पर पड़ता है।

 

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क्या बांग्लादेश में अल्पसंख्यक सुरक्षित हैं?

यह सवाल आज सबसे अहम बन चुका है। संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है, लेकिन जमीनी स्तर पर कानून का पालन कमजोर नजर आता है। कई मामलों में पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता, जिससे डर और असुरक्षा की भावना और गहरी हो जाती है।

बौद्ध समुदाय, जो अब तक अपेक्षाकृत शांत रहा, अगर खुद को खतरे में महसूस करने लगे, तो यह बांग्लादेश की सामाजिक संरचना के लिए बड़ा झटका होगा।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और मानवाधिकार चिंता

भारत समेत कई देश और अंतरराष्ट्रीय संगठन बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर चिंता जता चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संस्थाएं बार-बार निष्पक्ष जांच और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करती रही हैं।

अगर बौद्ध समुदाय के खिलाफ हिंसा या साजिश के दावे सही साबित होते हैं, तो यह बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय छवि को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।

आगे का रास्ता क्या?

बांग्लादेश के लिए यह समय आत्ममंथन का है। धार्मिक पहचान के आधार पर हिंसा न सिर्फ देश की एकता को तोड़ती है, बल्कि विकास की राह में भी बड़ी बाधा बनती है।

सरकार को चाहिए कि वह सभी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दे, अफवाहों पर सख्ती से लगाम लगाए और कानून का राज सुनिश्चित करे।

Bangladesh is facing a growing minority safety crisis as reports of violence against Hindus are now followed by alleged threats to Buddhists. In this Muslim-majority country, religious violence, political instability after Sheikh Hasina’s exit, and weak law enforcement have raised serious concerns about the protection of minorities. Buddhists in Bangladesh, mainly living in the Chittagong Hill Tracts and Cox’s Bazar region, fear they could become the next target of communal attacks, making minority safety and human rights a critical issue for Bangladesh today.

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