Friday, January 3, 2025

सनातन धर्म को किसी के भी सर्टिफिकेट की कोई जरूरत नहीं, भगवा रंग विरासत का रंग: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत!

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AIN NEWS 1 हरिद्वार : हमारा भगवा, केवल रंग मात्र नहीं, यह एक सभ्यता, संस्कृति और विचार है, प्रकाश के सबसे प्रथम विस्तार का रंग भी भगवा है। प्रकाश के आगमन का रंग भगवा है, सुबह-सुबह आकाश में यही दिखता है, जब सूर्य की किरणें ब्रह्मांड में विस्तार लेती हैं तो उसका रंग भगवा ही होता है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मोहन भागवत ने वीरवार को पतंजलि योगपीठ स्थित ऋषिग्राम में आयोजित शताधिक संन्यास दीक्षा महोत्सव को संबोधित करते हुए अपने संबोधन में यह कहा ।उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति प्राचीनतम् संस्कृति है जो विश्व बंधुत्व, आपसी सहयोग, प्रेम और भाईचारे को दर्शाती है, उसे बढ़ावा देती है, जबकि पाश्चात्य संस्कृति में केवल भोग विलास को महत्व दिया जाता है। सभ्यता के विकास का यह जो पश्चिमी मॉडल है, अब पश्चिम के विद्वान ही उस पर पुनर्विचार की आवश्यकता जता रहे हैं। इसके विपरीत भारतीय सनातन संस्कृति ज्ञान-संन्यास, ब्रह्मचर्य को बढ़ाने वाली संस्कृति है, जिसे ऋषिग्राम में योगगुरु बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के साधन-सानिध्य में 500 संन्यासियों को यहां विकसित किया जा रहा है।

उन्होंने संन्यास दीक्षा महोत्सव स्थल पर आयोजित यज्ञ में भी अपना प्रतिभाग किया और अपनी आहुति भी डाली। योगगुरु बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के सानिध्य में आयोजित द्वितीय संन्यास दीक्षा महोत्सव में सम्मिलित होने वीरवार देर शाम को ही हरिद्वार पहुंचे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहाकि सनातन आ रहा है, ऐसा भजन में था, तो ये सनातन कहां से आ रहा है और वह कब गया था, ऐसे कई प्रश्न लोग अब उठा सकते हैं।उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि सनातन आ रहा है, इसका अर्थ यह है कि सनातन कहीं गया नहीं था, वो पहले भी था और आज भी है, कल भी रहेगा। क्योंकि वह सनातन है और यही सनातन है। बस, अब फर्क केवल इतना है की उस सनातन की तरफ हमारा ध्यान जा रहा है। उसके अनेक लक्षण हैं, जो प्रकट हो रहे हैं। आजकल दुनिया में पश्चिम के विकास मॉडल के पुनर्विचार बहुत ही आवश्यकता पश्चिम के बुद्धिजीवी भी बता-जता रहे हैं, क्योंकि वह एक अधूरी दृष्टि पर ही आधारित है, केवल उपभोग पर आधारित है।स्वभाविक है दुनिया सोच रही है, कहां जाना है। भारत के पास कोई तरीका है, सनातन परंपरा है, व्यवस्था है। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आगे अपने संबोधन में कहा कि कोरोना के बाद क्या हुआ पता नहीं, वातावरण अपने-आप बदला। लोगों को काढ़े का महत्व भी समझ आ गया। लोगों को पर्यावरण भी समझ आ गया। नियति ने ऐसा मोड़ लिया, प्रकृति ने ऐसी करवट बदली है कि अब हर कोई, हर किसी को सनातन के प्रति सजग होना पड़ेगा, सनातन की तरफ उन्मुख होना पड़ेगा।

संन्यास दीक्षा महोत्सव को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख ने आगे कहाकि उसी का महत्वपूर्ण लक्षण मैं आज यहां देख रहा हूं। सर्वसंग परित्याग करते हुए देश धर्म समाज मानवता की सेवा के लिए मेरा जीवन है, ऐसी कल्पना करने वाले एक ही जगह पर इतनी बड़ी संख्या में लोग हैं। वो भगवा पहनने के लिए तैयार हैं। कहा, भगवा केवल एक रंग मात्र नहीं है, भगवे का एक अर्थ है। भगवा पहनकर कोई जाता है तो बड़े से बड़ा राज्य सम्मान करता है, वह पूरी तरह झुक नहीं सकता तो कम से कम गर्दन तो झुकाकर उसे नमस्कार करेगा।सूर्योदय होते ही नींद छोड़कर सभी लोग काम में लग जाते हैं, कितने भी आलसी हों, दिन के प्रकाश में आप सो नहीं सकते। यह कर्मशीलता का भी प्रतीक है। उदाहरण देते हुए कहाकि मुदरै में एक मंदिर है, जिसके छोटे से साइंस म्यूजिम में कई वर्ष पहले मैं गया था। उसमें दर्शाया गया है कि विभिन्न रंगों के मानव स्वभाव के क्या प्रभाव पड़ते हैं, वहां भगवा रंग भी है। वहां लिखा है कि इस रंग के प्रकाश में रहो न्यानमयता, कर्मशीलता और कुल मिलाकर सबके प्रति आत्मीयता, यह स्वभाव बनता है।विज्ञान भी यह मानता है कि यह परिणाम होते हैं। संन्यास दीक्षा लेने वाले संन्यासियों से कहाकि मैं आपका मार्गदर्शन करूं, यह उचित नहीं, आप सब ने बड़ा संकल्प लिया है। मैं इसके लिए आपको शुभकामनाएं-शुभेच्छा देता हूं। इतना ही कह सकता हूं कि आपके इस कर्म में कोई कठिनाई आती है, कोई दुश्वारियां आती है तो हमें बताइए, हमारी जितनी हमारी ताकत है, हम आपके सहयोग के लिए हर दम तैयार हैं, हर कठिनाई का उसका निवारण करेंगे।

इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत के ऋषिग्राम पहुंचने पर योगगुरू बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने उनका भव्य स्वागत किया। अपने संबोधन में योगगुरु बाबा रामदेव ने कहा कि संन्यास परम पुरुषार्थ का ही प्रतिबिंब है, संन्यास ग्रहण करना और संन्यास धर्म को निभाना दो अलग बातें हैं और जो इसे पूर्णता के साथ करता है, वह परम संन्यासी-पुरूषार्थी होता है। कहाकि, जिन्हें सनातन का बोध नहीं है, वह ही सनातन पर आरोप मढ़ते हैं। उन्होंने चुनौती दी कि अगर किसी को सनातन समझना है तो वहां यहां आए और देखें कि सनातन आख़िर क्या है और संन्यास किसे कहते हैं। भारत माता का स्तुति गान करते हुए कहा कि तेरा वैभव अमर रहे मां हम रहे या ना रहें।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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