AIN NEWS 1: बता दें जब भगवान राम युद्ध करने के लिए लंका पहुंचे थे और उन्होंने रावण की एक मजबूत सेना के खिलाफ युद्ध शुरू किया तो उनकी सेना में हजारों वानर थे. ये उस समय के लिहाज से देखते हुए भी एक नई तरह की ही सेना थी. इससे पहले इस तरह की सेना पहले कभी किसी युद्ध में नहीं देखी गई थी. इस सेना को राम ने ही दीक्षित किया था. और रावण की सेना के खिलाफ यह वानर सेना काफ़ी ज्यादा बहादुरी से लड़ी. लेकीन युद्ध में जीत के बाद आख़िर ये लंबी चौड़ी सेना कहां चली गई. उसका कही कोई जिक्र क्यों नहीं मिलता.वाल्मीकि रामायण के अनुसार तो श्रीराम-रावण युद्ध में वानर सेना की एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी.मगर सवाल यह है कि जब श्रीराम ने यह युद्ध जीत लिया. और वह इसके बाद मे अयोध्या आ गए तो इस वानर सेना का आख़िर क्या हुआ. इस वानर सेना का नेतृत्व करने वाले उस समय के बहुत ही महान योद्धा सुग्रीव और अंगद का युद्ध के बाद क्या हुआ.
रामायण के उत्तर कांड में ही उल्लेख है कि जब भी लंका से सुग्रीव लौटे तो उन्हें भगवान श्रीराम ने किष्किन्धा राज्य का राजा बनाया. बालि के पुत्र अंगद को वहा युवराज. इन दोनों ने मिलकर वहां पर कई सालों तक राज किया. ओर श्रीराम-रावण युद्ध में योगदान देने वाली वानर सेना भी सुग्रीव के साथ मे ही वर्षों तक रही. लेकिन इसके बाद उसने शायद ही कोई बड़ी लड़ाई लड़ी.
जाने वानर सेना के ये काफ़ी अहम वीर बाद में कई अहम पदों पर भी रहे
हालांकि इस वानर सेना में काफ़ी अहम पदों पर रहे सभी लोग किष्किंधा में ही अहम जिम्मेदारियों में जरूर रहे. वानर सेना में भी एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नल-नील कई वर्षों तक ही सुग्रीव के राज्य में मंत्री पद पर भी सुशोभित रहे तो युवराज अंगद और सुग्रीव ने मिलकर किष्किन्धा के राज्य को ओर भी बढ़ाया. गौरतलब है कि यह किष्किंधा आज भी है.
जाने कहां है यह किष्किंधा
यह किष्किंधा कर्नाटक में तुंगभद्रा नदी के किनारे पर स्थित है. ये बेल्लारी जिले में ही आता है जबकि विश्व प्रसिद्ध हम्पी के यह बिल्कुल बगल में ही है. इसके आसपास प्राकृतिक खूबसूरती भी बिखरी हुई है. किष्किंधा के आसपास आज भी ऐसे कई सारी गुफाएं हैं और जगह हैं, जहां पर राम और लक्ष्मण रुके हुए थे. वहीं किष्किंधा में वो गुफाएं भी हैं जहां पर वानर साम्राज्य था. इन गुफाओं में अंदर मे रहने की खूब जगह है.
जाने दंडकारण्य यहीं है
किष्किंधा के ही आसपास काफी बड़े इलाके में ही घना ज्यादा वन फैला हुआ है, जिसे दंडक वन या दंडकारण्य वन भी कहा जाता है. यहां रहने वाली ट्राइब्स को भी वानर कहा जाता था, जिसका अर्थ होता है वन में रहने वाले लोग. रामायण में किष्किंधा के पास जिस ऋष्यमूक पर्वत की बात कही गई है वह आज भी उसी नाम से तुंगभद्रा नदी के किनारे पर स्थित है.यहीं पर हनुमानजी के गुरु मतंग ऋषि जी का भी आश्रम था.
जाने कैसे बनाई गई यह वानरों की विशाल सेना
जब ये बिलकुल पक्का हो गया कि सीता को रावण ने कैद करके लंका में ही रखा हुआ है तो आनन फानन में ही श्रीराम ने हनुमान और सुग्रीव की मदद से एक वानर सेना का गठन किया. और वो लंका की ओर चल पड़े. तमिलनाडु की एक लंबी तटरेखा है, जो कि लगभग 1,000 किमी तक मे विस्तारित है.
यह कोडीकरई समुद्र तट वेलांकनी के दक्षिण में ही स्थित है, जो की पूर्व में बंगाल की खाड़ी और दक्षिण में पाल्क स्ट्रेट से पूरी तरह से घिरा हुआ है. यहां पर श्रीराम की सेना ने भी पड़ाव डाला.श्रीराम ने अपनी इस सेना को कोडीकरई में इकट्ठा करके सलाह और मंत्रणा की.
जाने इसी सेना की मदद से ही लंका तक के लिए पुल बना
बता दें इसी वानर सेना ने फिर से रामेश्वर की ओर कूच किया, क्योंकि पिछली जगह से समुद्र पार होना काफ़ी ज्यादा मुश्किल था. श्रीराम ने रामेश्वरम के आगे समुद्र में वह स्थान भी ढूंढ़ निकाला, जहां से काफ़ी आसानी से श्रीलंका पहुंचा जा सकता हो. इसके बाद विश्वकर्मा के पुत्र नल और नील की मदद से ही वानरों ने समुंद्र पर पुल बनाना शुरू कर दिया.
जाने वानर सेना में कई अलग झुंड थे
इस वानर सेना में इन वानरों के कई अलग अलग झुंड थे. और हर झुंड का ही एक सेनापति था. जिसे यूथपति भी कहा जाता था। यूथ अर्थात झुंड. लंका पर चढ़ाई के लिए सुग्रीव ने इन्ही वानर तथा ऋक्ष सेना का प्रबन्ध किया. बताया जाता है कि ये वानर सेना काफ़ी मेहनत से जुटाई गई थी. और ये संख्या में करीब एक लाख के आसपास थी.
जाने ये कई राज्यों के वानरों से मिलाकर बनी सेना थी
ये सेना राम के एक कुशल प्रबंधन और संगठन का ही परिणाम थी. ये विशाल वानर सेना छोटे -छोटे राज्यों की छोटी-छोटी सेनाओं व संगठनों जैसे किष्किंधा ,कोल ,भील ,रीछ और वनों में रहने वाले रहवासियों आदि का एक बेहद ही संयुक्त रूप थी.
जाने युद्ध के बाद फिर ये सेना अपने अपने राज्यों के अधीन हो गई
माना जाता है कि लंका विजय के बाद ये पूरी विशाल वानर सेना फिर अपने अपने राज्यों के ही अधीन हो गई. क्योंकि अयोध्या की राजसभा में राम ने राज्याभिषेक के बाद लंका और किष्किंधा आदि राज्यों को अयोध्या के अधीन करने के प्रस्ताव को पूरी तरह से ठुकरा दिया था. ये पूरी वानर सेना राम जी के राज्याभिषेक में अयोध्या में भी आई. और फिर वापस लौट गई.