AIN NEWS 1 लखनऊ: जान ले भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह (Brij Bhushan singh) की मुश्किलें अब लगातार बढ़ रही हैं। महिला कुश्ती पहलवानों के यौन शोषण (Women wrestler protest) मामले में अब दिल्ली पुलिस उन पर एक एफआईआर दर्ज करने जा रही है। भारत के ही सॉलिसिटर जनरल ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में यह जानकारी दी। बृजभूषण सिंह के खिलाफ विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक जैसे पहलवान जंतर-मंतर पर पिछले 6 दिनों से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इन्हीं पहलवानों ने बृजभूषण शरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल की है। और खुद कपिल सिब्बल इन पहलवानों के वकील हैं। वैसे तो यह मुद्दा इस साल जनवरी से ही उठा था, तब भी यही सब पहलवान धरने पर बैठे थे। इससे पहले इन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ सीधे-सीधे ही आरोप लगाए थे। पहलवानों के समर्थन में और भी आवाजें उठने लगीं तो सरकार ने इसकी एक जांच समिति गठित करके कार्रवाई का आश्वासन उस समय दिया था। तो उस समय ये पहलवान शांत हो गए। तय समय से काफी देर के बाद भी जब जांच समिति की रिपोर्ट आई तो पहलवान उससे पूरी तरह से संतुष्ट नहीं दिखे। इसके बाद से ही ये खिलाड़ी फिर से धरने पर बैठ गए हैं।ऐसे में सवाल तो यह उठता है कि आखिर बीजेपी की ऐसी कौन सी मजबूरी है कि वह बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोई कठौर कार्रवाई नहीं कर रही है। जो भी लोग बृजभूषण शरण सिंह के राजनीतिक रसूख को अच्छे से समझते हैं वे जानते हैं कि इसके पीछे पार्टी की क्या मजबूरियां हो सकती हैं।
जान ले साल 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से वापस बीजेपी में लौटे। फिर 2014 और 2019 में बीजेपी से ही कैसरगंज सीट से जीत दर्ज की। यानी बृजभूषण शरण सिंह का कुल मिलाकर श्रावस्ती, बहराइच, गोंडा और कैसरगंज सीट पर सीधा सीधा असर है। बीजेपी के लिए 2024 के लोक सभा चुनाव में एक- एक सीट की बहुत ज्यादा अहमियत है। ऐसे में वह बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ कोई भी कठौर कदम उठाने में हिचक रही है।
जाने क्या है वो 5 कारण
1. चार संसदीय सीटों पर है गहरा असर
बृजभूषण शरण सिंह कैसरगंज सीट से सांसद हैं। वह तीन अलग-अलग संसदीय सीटों से भी जीत चुके हैं। अब 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है। बृजभूषण साल 1991, 1998, 1999 में गोंडा से जीत कर आए। इसके बाद साल 2004 में बलरामपुर (अब श्रावस्ती) से जीते। हालांकि, साल 2008 में न्यूक्लियर डील के वक्त बीजेपी छोड़कर वो सपा के पाले में गए और मनमोहन सिंह सरकार को बचाने में उनकी भूमिका रही। पार्टी बदलने के बाद भी उनके जनसमर्थन में कोई कमी नहीं आई, और 2009 में सपा में रहकर भी कैसरगंज सीट से वो जीते।
2. इस से सपा को टक्कर देने की तैयारी पर पड़ सकता है असर
2024 के चुनाव में बीजेपी उन सीटों को जीतने की पूरी तैयारी कर रही है, जहां सपा का दबदबा रहा है। जैसे- मैनपुरी, रामपुर, आजमगढ़, रायबरेली। ऐसे में अगर बृजभूषण सिंह पर कोई भी सख्त ऐक्शन होता है या पार्टी से बाहर होते हैं तो बीजेपी के लिए अवध क्षेत्र की कई सीटों पर काफ़ी मुश्किल आ सकती है। ऐसे में सपा को टक्कर देना तो दूर ये सीटें भी उनके हाथ से निकल सकती हैं।
3. वो दागी तो हैं लेकिन पुर्ण रूप से दोषी नहीं
बृजभूषण सिंह का राम मंदिर आंदोलन से काफ़ी जुड़ाव रहा है। बाबरी विध्वंस मामले में वह आडवाणी, जोशी, कल्याण और उमा भारती समेत 40 आरोपियों में से एक थे। इस मामले में सीबीआई कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया था। अभी बृजभूषण सिंह दागी तो हैं लेकिन किसी भी केस में दोषी नहीं हैं।
4. वो राम मंदिर आंदोलन से बहुत लंबे समय तक जुडे़ रहे हैं
राम मंदिर आंदोलन के दौरान आडवाणी की रथयात्रा में अयोध्या और आसपास के इलाकों में वो काफ़ी सक्रिय रहे थे। 1991 में जब पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था तो उन पर भी 34 केस दर्ज थे। उस वक्त बीजेपी ने उन्हें गोंडा का रॉबिनहुड कहकर इनको प्रचारित किया था।
5. विपक्ष दूसरे और भी दागी नेताओं पर एक्शन की कर सकता है मांग
बृजभूषण शरण सिंह पर बीजेपी अगर कोई एक्शन लेती है तो उसके ऊपर राजनीति के अपराधीकरण को लेकर भी सवाल उठने लगेंगे। ऐसे में उन सांसदों पर भी विपक्ष काफ़ी आक्रामक होगा, जो दागी हैं और जिनके ऊपर छोटी या बड़ी अदालतों में कोइ केस चल रहे हैं। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2019 में ही जीत कर संसद में आए सांसदों में से कुल 233 पर अपराधिक मुकदमे हैं। बीजेपी के 303 सांसदों में से कुल 116 सांसदों पर क्रिमिनल केस हैं। ऐसे में फिर पार्टी को एक नए नैरेटिव का जवाब देना पड़ सकता है। इस समय आनंद मोहन सिंह का मुद्दा ही चर्चा में है ही।