Supreme Court to Hear Plea for President’s Rule in West Bengal Over Murshidabad Violence and Waqf Law Tensions
पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग पर सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई, मुर्शिदाबाद हिंसा और वक्फ कानून का मामला केंद्र में
AIN NEWS 1: पश्चिम बंगाल में हाल ही में बढ़ती हिंसा और वक्फ कानून को लेकर उपजे विवादों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग करती है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को सूचीबद्ध कर लिया है और जल्द ही इस पर सुनवाई शुरू होगी।
याचिका का मुख्य बिंदु
यह याचिका मुख्य रूप से मुर्शिदाबाद जिले सहित अन्य हिस्सों में हिंदू समुदाय के लोगों के खिलाफ हुई कथित हिंसक घटनाओं और राज्य सरकार द्वारा कानून व्यवस्था बनाए रखने में विफलता को लेकर है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य में वक्फ अधिनियम के विरोध के बाद हालात और भी बिगड़ गए हैं और राज्य सरकार इन घटनाओं को रोकने में असमर्थ रही है।
क्या है याचिकाकर्ताओं की मांग?
याचिका में याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार से अनुच्छेद 355 के तहत हस्तक्षेप करने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि केंद्र को राज्य की स्थिति पर रिपोर्ट देनी चाहिए और एक स्वतंत्र जांच समिति गठित करनी चाहिए जो हिंसा की घटनाओं की निष्पक्ष जांच कर सके।
अनुच्छेद 355 क्या है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार को यह जिम्मेदारी देता है कि वह प्रत्येक राज्य में सरकार को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाए। अगर कोई राज्य अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने में विफल होता है, तो केंद्र को हस्तक्षेप करने का अधिकार होता है। यही आधार याचिका में प्रस्तुत किया गया है।
वक्फ कानून का विरोध और उसका प्रभाव
हाल ही में वक्फ अधिनियम को लेकर सोशल मीडिया और सड़कों पर विरोध देखने को मिला है। आरोप है कि वक्फ बोर्ड को दी गई कानूनी शक्तियां अन्य समुदायों के संपत्ति अधिकारों पर असर डाल रही हैं। इस विरोध के बाद मुर्शिदाबाद और कुछ अन्य जिलों में तनाव की स्थिति बन गई थी, जिसे बाद में सांप्रदायिक हिंसा का रूप भी दिया गया।
मुर्शिदाबाद में क्या हुआ?
मुर्शिदाबाद जिले में याचिका के अनुसार, हिंदू समुदाय को निशाना बनाकर कई हमले किए गए। संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया और कई लोगों को शारीरिक नुकसान हुआ। राज्य पुलिस पर आरोप है कि वह निष्पक्ष कार्रवाई करने में विफल रही। हालांकि राज्य सरकार ने इन आरोपों को खारिज किया है।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
इस मुद्दे पर राजनीति भी गर्म हो गई है। विपक्षी दलों ने ममता बनर्जी सरकार पर आरोप लगाया है कि वह तुष्टिकरण की राजनीति कर रही है और बहुसंख्यक समुदाय की सुरक्षा को नजरअंदाज कर रही है। वहीं, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने इस याचिका को “राजनीतिक षड्यंत्र” करार दिया है और कहा है कि यह राज्य सरकार को बदनाम करने की साजिश है।
क्या हो सकता है सुप्रीम कोर्ट का रुख?
अब सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। अगर अदालत को यह लगता है कि राज्य में संविधान का उल्लंघन हो रहा है और राज्य सरकार अपने कर्तव्यों को निभाने में असफल हो रही है, तो वह केंद्र से रिपोर्ट मंगवा सकती है और आगे की कार्यवाही तय कर सकती है। हालांकि राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार केवल केंद्र सरकार और राष्ट्रपति के पास होता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और निर्देश इस दिशा में बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
पश्चिम बंगाल की राजनीति और कानून-व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है। सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका की सुनवाई से यह साफ हो जाएगा कि क्या राज्य में हालात इतने गंभीर हैं कि केंद्र को हस्तक्षेप करना चाहिए। यह मामला न केवल संवैधानिक दृष्टिकोण से अहम है, बल्कि यह राज्य की सामाजिक और सांप्रदायिक स्थिति पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है।
The Supreme Court of India is set to hear a petition seeking the imposition of President’s Rule in West Bengal, focusing on recent incidents of violence against Hindus in Murshidabad and other districts. The petition highlights the aftermath of public opposition to the Waqf Act, citing a breakdown in law and order. The petitioners have invoked Article 355, urging the central government to submit a report and form a high-level inquiry committee. This case brings into focus the rising political and communal tensions in West Bengal.