- आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से ‘जॉम्बी वायरस’ के सक्रिय होने का खतरा है।
- ये प्राचीन वायरस मानव इतिहास की सबसे भयानक महामारी फैला सकते हैं।
- वैज्ञानिक जल्द चेतावनी देने के लिए आर्कटिक में निगरानी प्रणाली स्थापित कर रहे हैं।
- जलवायु परिवर्तन पर काबू पाना और पर्यावरण की रक्षा करना जरूरी है।
AIN NEWS 1 | उत्तर ध्रुव की बर्फ के नीचे सोए खतरनाक ‘जॉम्बी वायरस’ जल्द ही दुनिया पर कहर बरपा सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट (ध्रुवीय जमीन की स्थायी रूप से जमी हुई परत) के पिघलने से ये प्राचीन वायरस फिर जीवित हो रहे हैं, जो लाखों साल से बर्फ में जमे हुए थे। इन वायरसों से एक वैश्विक महामारी का खतरा मंडरा रहा है।
बर्फ में सोए घातक दुश्मन:
आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट में प्राचीन वायरस ‘मेथुसेलह माइक्रोबेस’ के रूप में छिपे हुए हैं। ये वायरस इतने पुराने हैं कि पृथ्वी पर मानव जाति के आने से भी पहले के माने जाते हैं। वैज्ञानिकों को डर है कि अगर वे पिघलते ग्लेशियरों की वजह से बाहर आ गए, तो मानव इतिहास की सबसे भयानक महामारी फैला सकते हैं।
अज्ञात बीमारी का भय:
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन वायरसों के बारे में हमें जानकारी नहीं है, हम नहीं जानते कि ये किस तरह की बीमारी फैलाएंगे, उनके लक्षण क्या होंगे और इलाज क्या होगा। जेनेटिसिस्ट जीन-मिशेल क्लेवरी का कहना है, “हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता इन वायरसों से कभी नहीं लड़ी है, यही सबसे बड़ा डर है। यह ऐसा है जैसे किसी निएंडरथल को संक्रमित करने वाले प्राचीन पोलियो वायरस हमारे सामने लौट आ रहा हो।”
उत्तर से दक्षिण तक महामारी का प्रसार:
वैज्ञानिकों का एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि हम अब तक मुख्य रूप से दक्षिणी क्षेत्रों में फैलने वाली महामारी पर ध्यान देते आ रहे हैं, लेकिन अगर ये वायरस पहले आर्कटिक में फैलते हैं और फिर दक्षिण की ओर बढ़ते हैं, तो हम पूरी तरह से असहाय हो सकते हैं।
जल्द चेतावनी का प्रयास:
विश्वव्यापी खतरे को समझते हुए वैज्ञानिक आर्कटिक में निगरानी प्रणाली स्थापित कर रहे हैं, जो इन ‘जॉम्बी वायरस’ के कारण होने वाली किसी भी बीमारी के शुरुआती संकेतों का पता लगा सकेगा। इस मॉनिटरिंग नेटवर्क से हमें बीमारी फैलने से पहले ही उसका पता लगाकर रोकथाम के उपाय लेने का मौका मिलेगा।
धरती की सुरक्षा, हमारी जिम्मेदारी:
आर्कटिक पर्माफ्रॉस्ट पिघलने से न सिर्फ ‘जॉम्बी वायरस’ का खतरा बढ़ रहा है, बल्कि इससे समुद्र का जलस्तर भी बढ़ रहा है और पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो रहा है। जलवायु परिवर्तन को रोकना और आर्कटिक क्षेत्र की सुरक्षा करना अब हमारी सामूहिक जिम्मेदारी बन चुकी है। तभी हम इन प्राचीन खतरों से खुद को और आने वाली पीढ़ियों को बचा सकते हैं।