Monday, December 23, 2024

जानवर के अंगों को इंसानों में ट्रांसप्लांट करना: कितना मुश्किल?

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AIN NEWS 1 | जानवरों के अंगों को इंसानों में ट्रांसप्लांट करने की कोशिशें बहुत पुरानी हैं। 1920 के दशक में फ्रेंच सर्जन वोरोनॉफ ने बंदरों के अंडकोष के ऊतकों को इंसानों में ट्रांसप्लांट करने का दावा किया था, लेकिन अब यह तकनीक काफी आगे बढ़ चुकी है। हाल ही में एक इंसान को सूअर की किडनी ट्रांसप्लांट की गई। इसे ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation) कहा जाता है। हालांकि, ट्रांसप्लांट के करीब दो महीने बाद उस व्यक्ति की मौत हो गई, लेकिन यह मौत ट्रांसप्लांट की वजह से नहीं बल्कि दूसरी कारणों से हुई थी।

person who underwent pig kidney transplant died, operation was done only a  few months ago | Jansatta

अंगों की कमी और ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन

भारत में हर रोज़ कम से कम 20 लोग अंगों के इंतजार में मर जाते हैं। साल 2022 तक अंग दान करने वाले लोगों की संख्या सिर्फ 16,041 थी, जबकि वेटिंग लिस्ट में करीब 3 लाख मरीज हैं। इसी कमी को पूरा करने के लिए वैज्ञानिक दूसरे जानवरों के अंगों का ट्रांसप्लांट करने की कोशिश कर रहे हैं।

सूअर के अंग क्यों?

सूअर को बाकी जानवरों के मुकाबले बेहतर डोनर माना जाता है क्योंकि:

  • वे बड़ी संख्या में उपलब्ध होते हैं।
  • उनके अंगों का आकार इंसानों जैसा होता है।
  • उनसे बीमारियों का खतरा कम होता है।

ट्रांसप्लांट की समस्याएं

दूसरे प्रजाति के अंगों को इंसानों में ट्रांसप्लांट करना कई समस्याओं के साथ आता है। सबसे बड़ी समस्या है इंसानी इम्यून सिस्टम का प्रतिक्रिया करना। इम्यून सिस्टम बाहरी अंगों पर हमला कर सकता है और उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है। इसे रोकने के लिए सूअरों के अंगों में जेनेटिक बदलाव किए जाते हैं और मरीजों को एंटी रिजेक्शन दवाएं दी जाती हैं।

ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन से सीख

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के सर्जन रॉबर्ट मॉन्टगोमेट्री बताते हैं कि सूअर के अंगों का ट्रांसप्लांट बंदरों के मुकाबले कम सफल रहा है। तीन मरीज जिनमें सूअर के अंग ट्रांसप्लांट किए गए थे, वे दो महीनों के अंदर मर गए। हालांकि, ये मरीज पहले से ही गंभीर रूप से बीमार थे और यह उनकी आखिरी उम्मीद थी।

पिग हार्ट ट्रांसप्लांट के अनुभव

अमेरिका की मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के सर्जन मोहम्मद मोहिद्दीन ने बताया कि पहले पिग हार्ट ट्रांसप्लांट के मरीज डेविड बेनेट को एक इनफेक्शन हुआ था, जो उनके ट्रांसप्लांटेड दिल के लिए खतरनाक साबित हुआ। यह इनफेक्शन पोर्काइन साइटोमेगलोवायरस की वजह से हुआ था, जो ट्रांसप्लांट के समय नहीं दिखा था लेकिन बाद में हार्ट में मौजूद था।

पिग किडनी ट्रांसप्लांट का अनुभव

मैसेच्यूसेट जनरल हॉस्पिटल के डॉ. तत्सो कवाई ने बताया कि पिग किडनी ट्रांसप्लांट के मरीज रिचर्ड स्लेमैन की किडनी ट्रांसप्लांट के बाद ठीक से काम कर रही थी। उनकी मौत ट्रांसप्लांट के अलावा दूसरी वजहों से हुई थी।

भविष्य की उम्मीदें

ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन अभी आम लोगों तक पहुंचने में वक्त लगेगा, लेकिन यह अंगों की कमी से निपटने का एक अहम तरीका बन सकता है। सूअर के अंगों को इंसानों के लिए और बेहतर बनाने के लिए इनमें जेनेटिक बदलाव किए जा रहे हैं। स्लेमैन की सर्जरी में इस्तेमाल किए गए सूअर की किडनी में रिकार्ड 69 जेनेटिक एडिट्स किए गए थे।

ज़ीनोट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में हम काफी दूर तक पहुंच चुके हैं और यह उन लोगों के लिए एक बड़ी उम्मीद हो सकती है जिन्हें अंगों की सख्त जरूरत है। जीन एडिटिंग और पिग ऑर्गन को इंसानों के लिए और बेहतर बनाने के प्रयास लगातार जारी हैं।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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