AIN NEWS 1: चुनावी नतीजों के बाद ये साफ हो गया है कि देश में एक बार फिर से NDA सरकार बनने की पुरजोर संभावना है। इसकी कमान भी पहले की तरह नरेंद्र मोदी के हाथ में ही रहने का अनुमान है। लेकिन इस सरकार को बड़े फैसलों के लिए नीतीश कुमार की जनता दल युनाइटेड और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी के भरोसे रहना होगा। यानी किसी भी बड़े आर्थिक सुधार के लिए भाजपा को गठबंधन दलों के फैसले पर ही निर्भर रहना होगा। हालांकि आर्थिक जानकारों का मानना है कि बीते दस बरसों के दौरान केंद्र NDA सरकार ने जो आर्थिक नीतियां अपनाई हैं वो आगे भी जारी रहनी चाहिएं। इसी से अगले तीन साल में अर्थव्यवस्था के आकार को पांच ट्रिलियन डालर तक ले जाना मुमकिन हो पाएगा। लेकिन ये भी तय है कि सरकार के तीसरे कार्यकाल में जमीन, कृषि, लेबर जैसे क्षेत्रों में नए कानून की जो उम्मीद की जा रही थीं अब उसे लाने के लिए जनता दल युनाइटेड और तेलुगु देशम जैसी पार्टियों पर निर्भर रहना होगा।
सहयोगी दलों का बढ़ेगा दबदबा!
आर्थिक जानकारों के मुताबिक NDA सरकार में जदयू और तेदेपा जैसे क्षेत्रीय दलों की बड़ी भूमिका होगी क्योंकि भाजपा बहुमत से दूर रह गई है। सरकार अभी तक अगले 100 दिनों में लेबर, भूमि रिकार्ड और कारोबार को आसान करने से जुड़े कई नए कानून लाने की तैयारी कर रही थी। तेदेपा और जदयू जैसी पार्टियों पर निर्भर रहने से अब ये आसान नहीं होगा क्योंकि दोनों ही पार्टियां उन्हीं कानून को बनाने के लिए आसानी से हामी भरेंगी जिससे उनकी राज्य की राजनीति पर कोई असर नहीं होगा। इसके साथ ही वो उन नीतियों का ज्यादा समर्थन करेंगी जिससे उन्हें अपने-अपने राज्यों में राजनीतिक फायदा मिले।
मजबूत अर्थव्यवस्था का नई सरकार को फायदा
अगली सरकार के लिए अगर बेरोजगारी और महंगाई जैसी बड़ी चुनौतियां सामने खड़ी हैं तो 8 फीसदी से ज्यादा विकास दर भी अगली सरकार को मजबूत ग्रोथ का बेस मुहैया कराने का काम करेगी। ऐसे में जानकारों का सुझाव है कि गठबंधन की सरकार में भी इन्फ्रास्ट्रक्चर और सामाजिक कल्याण से जुड़ी योजनाओं पर सरकारी खर्च जारी रहना चाहिए। इसी के दम पर 2024-25 में जीडीपी विकास दर सात परसेंट रह सकती है। गठबंधन की सरकार में मंत्रालय का बंटवारा भी काफी हद तक सहयोगी दलों के मनमुताबिक तय होगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़े रेल, सड़क जैसे कई महत्वपूर्ण विभाग सहयोगी दलों की झोली में जा सकते हैं। इनका इस्तेमाल वो अपने-अपने राज्यों में अपनी पैठ बढ़ाने के लिए कर सकते हैं। निवर्तमान सरकार में भाजपा के पास 303 सीटें थी, इसलिए राजग की सरकार होने के बावजूद किसी भी नीति को लागू करने के मामले में सहयोगी दलों के सामने झुकना नहीं पड़ता था।