AIN NEWS 1 | पिछले एक दशक में भारतीयों द्वारा विदेशों में किए गए खर्च में जबरदस्त बढ़ोतरी देखी गई है। जहां वित्त वर्ष 2014 में भारतीयों ने विदेशों में केवल 1.1 अरब डॉलर खर्च किए थे, वहीं वित्त वर्ष 2024 में यह राशि लगभग 29 गुना बढ़कर 31.7 अरब डॉलर हो गई।
इस बढ़ोतरी की सबसे बड़ी वजह यह है कि बड़ी संख्या में भारतीय विदेश यात्रा पर जा रहे हैं। इसके विपरीत, फॉरेन रेमिटेंस में इतनी तेजी से वृद्धि नहीं हुई है। रेमिटेंस का मतलब उन पैसों से है जो विदेश में काम करने वाले भारतीय कामगर स्वदेश भेजते हैं। वित्त वर्ष 2014 में भारतीयों द्वारा भेजे गए रेमिटेंस की राशि 70 अरब डॉलर थी जो वित्त वर्ष 2024 में बढ़कर 120 अरब डॉलर हो गई। यह मात्र 71% की बढ़ोतरी है।
फिर भी, विदेशी रेमिटेंस हासिल करने के मामले में भारत अब भी नंबर 1 बना हुआ है। इस मामले में दूर-दूर तक कोई भारत के आसपास नहीं है। मेक्सिको 66 अरब डॉलर के साथ सबसे ज्यादा विदेशी रेमिटेंस पाने वाले देशों में दूसरे नंबर पर है।
अध्ययन के अनुसार
बैंक ऑफ बड़ौदा के एक अध्ययन के अनुसार, पिछले दशक में भारत में आने वाले रेमिटेंस में 5.5% की CAGR (Compound Annual Growth Rate) की दर से वृद्धि हुई है। इसका ग्लोबल ग्रोथ रेट 4% है। केवल मेक्सिको में यह दर 10% रही है, जिससे वह फॉरेन रेमिटेंस हासिल करने के मामले में चीन को पछाड़कर दूसरे नंबर पर पहुंच गया है।
बीओबी की इकनॉमिस्ट अदिति गुप्ता के अनुसार, वित्त वर्ष 2014 में रेमिटेंस आउटफ्लो केवल 1.1 अरब डॉलर से वित्त वर्ष 2024 में 31.7 अरब डॉलर हो गया है। यह 40% से अधिक की CAGR से बढ़ा है। उन्होंने कहा कि मिडिल क्लास के उभार से लोगों की इनकम बढ़ी है और विदेशी यात्राओं में ज्यादा खर्च से यह बात साबित होती है।
ग्लोबल ग्रोथ के संकेत
ग्लोबल ग्रोथ में धीरे-धीरे सुधार होने की उम्मीद है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोजोन में लेबर मार्केट मजबूत बने हुए हैं जबकि बेरोजगारी दर रिकॉर्ड निचले स्तर पर है। यह रेमिटेंस के लिए अच्छा संकेत है। खाड़ी देशों से रेमिटेंस में कुछ मंदी दिख रही है। स्थिर तेल की कीमतों से इस क्षेत्र से रेमिटेंस को रिवाइव करने में मदद मिलेगी।
वैश्विक स्तर पर रेमिटेंस के स्रोतों के संदर्भ में अमेरिका दुनिया में पहले नंबर पर है। साल 2021 में दुनिया में कुल रेमिटेंस में इसकी हिस्सेदारी 25% से अधिक है। इसके बाद खाड़ी देश 17% के साथ दूसरे स्थान पर हैं। इनके अलावा जर्मनी, यूके और रूस भी ग्लोबल रेमिटेंस फ्लो में अहम कंट्रीब्यूटर्स हैं।