AIN NEWS 1: सिंगरौली-प्रयागराज नेशनल हाईवे के निर्माण के लिए जिन गांवों की जमीन को चिह्नित किया गया है, वहां पिछले एक महीने में एक अजीबोगरीब स्थिति उभर कर सामने आई है। इन गांवों में किसान अपनी जमीन पर घर बना रहे हैं, लेकिन ये मकान ‘मुआवजा’ के नाम पर बने हैं। भास्कर की टीम ने 7 दिनों तक यहां रहकर जो स्थिति देखी, वह चौकाने वाली है।
मुआवजा घरों की तस्वीर
निर्माण की विशेषताएं:
ये मकान चार फीट ऊंची ईंट की दीवार और टिन शेड से बने हैं। बाहरी तौर पर ये स्थायी लगते हैं, लेकिन इनमें कोई नहीं रहता।
तुलना:
पिछले महीने तक यहां केवल खेत ही खेत थे, लेकिन अब पक्के मकानों की कतारें लग गई हैं।
मुआवजा के लिए फॉर्मूला:
मुआवजे के नाम पर मकान बनाने का यह फॉर्मूला अब आम हो गया है। दलाल और अफसरों की मिलीभगत से यह काम चल रहा है। किसानों को मुआवजे का 80 फीसदी हिस्सा और 20 फीसदी हिस्सा घर बनवाने वाले को दिया जाता है।
घोटाले का विस्तार
अधिग्रहण और मुआवजा:
सिंगरौली-प्रयागराज नेशनल हाईवे के लिए चितरंगी और दुधमनिया तहसील के 33 गांवों की जमीन की अधिसूचना मार्च में जारी की गई थी। इसके बाद से जमीन की खरीद-फरोख्त और नामांतरण पर रोक है। बावजूद इसके, पिछले महीने में 2000 से अधिक ‘मुआवजा घर’ बन चुके हैं।
दलालों का नेटवर्क:
दलाल किसानों से स्टाम्प पेपर पर इकरारनामा करवा रहे हैं, जिसमें लिखा जाता है कि निर्माण के मुआवजे में 80% राशि घर बनवाने वाले को मिलेगी और 20% किसान को। इस काम के लिए दलालों का एक पूरा नेटवर्क सक्रिय है।
पटवारी की भूमिका:
कुछ पटवारी अपने रिश्तेदारों के नाम पर भी मकान बनवा रहे हैं और इन मकानों को पुराना बताकर मुआवजा हासिल कर रहे हैं।
स्थानीय अधिकारी और मुआवजा प्रक्रिया
एनएचएआई के अधिकारी:
एनएचएआई के पीडब्ल्यूडी विंग के ईई शंकर लाल का कहना है कि मुआवजा प्रक्रिया के दौरान निर्माण की शिकायतें मिली हैं। वे इन निर्माणों को चिह्नित करेंगे।
अधिकारी की मिलीभगत:
वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि मुआवजे की प्रक्रिया में स्थानीय प्रशासन और राजस्व अमले की मिलीभगत के बिना यह सब संभव नहीं है। पटवारी यदि पांच दिन पुराने मकान को पांच साल पुराना लिख दे, तो मुआवजा उसी आधार पर दिया जाता है।
अंततः
चितरंगी एसडीएम सुरेश जाधव का कहना है कि केवल नोटिफिकेशन के पहले बने मकानों को ही मुआवजा मिलेगा। यदि कोई मुआवजे के लिए मकान बना रहा है, तो यह उचित नहीं है और इसे सैटेलाइट मैप से देखा जाएगा।
इस प्रकार, मुआवजे के नाम पर बन रहे इन फर्जी मकानों ने एक बड़ा घोटाला उजागर कर दिया है, जिसमें अधिकारियों और दलालों की मिलीभगत से किसान और बाहरी लोग दोनों ही लाभ उठा रहे हैं।