AIN NEWS 1: आयकर विभाग ने हाल ही में पाया है कि बहुत से लोग एचआरए (HRA) क्लेम के लिए फर्जी दस्तावेज़ जमा कर रहे हैं। विभाग को यह भी पता चला है कि कुछ लोग गलत तरीके से दूसरों के पैन कार्ड का उपयोग कर रहे हैं और फर्जी रेंट रिसीप्ट के माध्यम से टैक्स छूट का लाभ उठा रहे हैं। इस लेख में जानें कि एचआरए के माध्यम से फर्जीवाड़ा कैसे होता है और इससे बचने के उपाय क्या हैं।
एचआरए फर्जीवाड़ा कैसे होता है?
1. फर्जी दस्तावेज़: कुछ लोग पैन कार्ड के साथ फर्जी रेंट रिसीप्ट जमा कर देते हैं। आयकर विभाग ने देखा है कि कई मामलों में पैन कार्ड असली मकान मालिक के नहीं होते।
2. गलत जानकारी:उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने एक करोड़ रुपये के किराए की रसीदें जमा की हैं, लेकिन उस व्यक्ति से पूछताछ पर यह पता चला कि उसे इतना किराया नहीं मिलता, तो यह फर्जीवाड़ा है।
आयकर विभाग कैसे पहचानता है फर्जीवाड़ा?
1. पैन और ट्रांजेक्शन लिंक: आजकल वित्तीय लेनदेन पैन कार्ड से जुड़े होते हैं। आयकर विभाग इन लेनदेन की जांच करता है और फर्जीवाड़ा आसानी से पकड़ लेता है।
2. ऑटोमेटेड प्रोसेस:विभाग की लेटेस्ट टेक्नोलॉजी और ऑटोमेटेड प्रोसेस की मदद से फर्जी क्लेम की पहचान की जाती है।
3. नोटिस और जुर्माना:यदि किसी ने फर्जीवाड़ा किया है, तो उसे टैक्स, पेनाल्टी और ब्याज चुकाना पड़ता है।
एचआरए का गणना कैसे करें?
एचआरए क्लेम के लिए तीन आंकड़े होते हैं, जिनमें से सबसे कम राशि पर टैक्स छूट मिलती है:
1. कंपनी द्वारा दिया गया एचआरए: यह आपके सैलरी पैकेज का हिस्सा होता है।
2. बेसिक सैलरी का प्रतिशत:मेट्रो शहर में बेसिक सैलरी का 50% और नॉन-मेट्रो शहर में 40% तक क्लेम किया जा सकता है।
3. किराए का हिसाब:सालाना किराया – बेसिक सैलरी का 10% = एचआरए क्लेम राशि।
उदाहरण से समझें:
मान लीजिए आपकी बेसिक सैलरी 3 लाख रुपये है और आप मेट्रो शहर में रहते हैं। आपका मासिक किराया 15 हजार रुपये है और आपको कंपनी से 1.6 लाख रुपये एचआरए मिलता है।
1. कंपनी से एचआरए:1.60 लाख रुपये।
2. बेसिक सैलरी का 50%: 1.50 लाख रुपये।
3. किराया – बेसिक सैलरी का 10%: (1.80 लाख – 30 हजार) = 1.50 लाख रुपये।
इस उदाहरण में आप 1.50 लाख रुपये तक ही एचआरए क्लेम कर सकते हैं, जबकि कंपनी द्वारा दिया गया एचआरए 1.60 लाख रुपये है।
निष्कर्ष
एचआरए क्लेम करते समय सही दस्तावेज़ और सटीक गणना का ध्यान रखें। फर्जीवाड़े से बचने के लिए सही जानकारी दें और नियोक्ता की पॉलिसी के अनुसार काम करें, ताकि भविष्य में किसी कानूनी कार्रवाई से बच सकें।