AIN NEWS 1: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि पति और पत्नी के बीच कोई सेक्सुअल एक्ट आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के तहत दंडनीय नहीं है, तो उसे आईपीसी की धारा 377 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
निर्णय का आधार
हाईकोर्ट की बेंच, जस्टिस रवींद्र मैथानी की अध्यक्षता में, ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के अनुसार, पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है। इसी आधार पर, यदि कोई सेक्सुअल एक्ट धारा 375 के तहत दंडनीय नहीं है, तो वही एक्ट धारा 377 के तहत भी अपराध नहीं हो सकता।
मामला क्या था?
पत्नी ने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी जिसमें आरोप था कि पति ने उसे बार-बार अप्राकृतिक सेक्स (गुदा मैथुन) के लिए मजबूर किया, जिससे उसे गंभीर चोटें आईं। इसके अलावा, पति पर यह भी आरोप था कि उसने अपने छोटे बच्चे के सामने अश्लील हरकतें कीं और पत्नी को शारीरिक चोटें पहुंचाईं।
कानूनी तर्क
पतिद्वारा प्रस्तुत तर्क:
1. बलात्कार की परिभाषा आईपीसी की धारा 375 के तहत दी गई है, जिसमें कहा गया है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी के साथ बलात्कार के अपराध से मुक्त है।
2. यौन सहमति को विवाह के दौरान माना जाता है, इसलिए पति को धारा 377 के तहत दंडित नहीं किया जा सकता।
3. यह भी दावा किया गया कि पत्नी ने पॉक्सो एक्ट का आरोप दबाव डालने के लिए लगाया था।
पत्नी के वकील द्वारा पेश किए गए तर्क:
1. विवाह के समय दी गई सहमति अप्राकृतिक सेक्स के लिए मान्य नहीं हो सकती।
2. आईपीसी की धारा 377 एक स्वतंत्र प्रावधान है और इसमें कोई अपवाद नहीं है।
हाईकोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आईपीसी की धारा 375 के तहत यदि कोई यौन कृत्य अपराध नहीं है, तो वही कृत्य धारा 377 के तहत भी अपराध नहीं हो सकता। यह निर्णय इस पर आधारित था कि आईपीसी की धारा 375 और 377 को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने हरिद्वार के एडिशनल सेशन जज के आदेश में बदलाव करते हुए आईपीसी की धारा 377 के तहत पति के खिलाफ समन जारी करने के आदेश को रद्द कर दिया, लेकिन पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपों को बरकरार रखा।