AIN NEWS 1 : भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत की दीवार का इतिहास बहुत पुराना है। यह दीवार मध्यकाल में बनी, और इसके पीछे कई ऐतिहासिक घटनाएँ और राजनीतिक कारण हैं। इस आलेख में हम जानेंगे कि कैसे इस्लाम का प्रवेश, अंग्रेजों की नीति और बंटवारे ने इस दीवार को मजबूत किया।
इस्लाम का भारत में प्रवेश
इस्लाम का भारत में प्रवेश 11वीं-12वीं शताब्दी के बीच हुआ। इसके पहले कुछ मुस्लिम आक्रांता, जैसे महमूद गजनवी और मुहम्मद गोरी, ने भारत पर हमला किया था, लेकिन उनका उद्देश्य लूटपाट था, शासन स्थापित करना नहीं। मुहम्मद गोरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना की और इस्लाम का प्रभाव बढ़ने लगा। इस दौर में फारस से कई मुसलमान भारत आए और यहां बस गए।
हालांकि कुतुबुद्दीन ऐबक और उसके बाद के शासकों ने अपनी इस्लामी संस्कृति का प्रसार किया, उन्होंने भारतीय हिंदू संस्कृति को नजरअंदाज किया। इस स्थिति के कारण हिंदू समुदाय में असंतोष बढ़ा, और उन्हें यह महसूस हुआ कि उनकी संस्कृति और धर्म खतरे में हैं। यही असंतोष भक्ति आंदोलन के रूप में सामने आया, जो हिंदू धर्म के पुनरुत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण था।
अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति
अंग्रेजों ने भारत में सत्ता स्थापित करने के बाद ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाई। 1905 में बंगाल का विभाजन इसका बड़ा उदाहरण है। धर्म के आधार पर बंगाल के दो हिस्से किए गए, जिससे हिंदू और मुसलमानों के बीच तनाव और विवाद पैदा हुआ। अंग्रेजों ने राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई को बढ़ावा दिया, जिसका परिणाम मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा पाकिस्तान की मांग के रूप में सामने आया।
1947 में ब्रिटिश भारत का विभाजन हुआ, जिससे भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देश बने। इस बंटवारे के दौरान लाखों लोगों की मौत हुई और करोड़ों लोग विस्थापित हुए। यह बंटवारा न केवल धार्मिक विवादों को बढ़ावा देने वाला था, बल्कि इसके परिणामस्वरूप आर्थिक और सामाजिक स्थितियों में भी व्यापक बदलाव आए।
बंटवारे के प्रभाव
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे ने दोनों देशों के बीच नफरत की खाई को गहरा कर दिया। बंटवारे के समय के अनुभव, जैसे हिंसा और विस्थापन, आज भी ताजे हैं। दोनों देशों ने इस खाई को पाटने की कोशिश नहीं की, बल्कि आतंकवाद और युद्ध जैसी घटनाओं ने इसे और बढ़ा दिया।
धर्म की भूमिका और नफरत का कारण
मौलाना तहजीब के अनुसार, इस्लाम में पैगंबर मुहम्मद को मानव जाति पर रहमत देने वाला माना जाता है। इस्लाम में अल्पसंख्यकों का ख्याल रखने की बात कही गई है। बांग्लादेश या पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों को धर्म के नाम पर नहीं देखा जाना चाहिए। ये अत्याचार नफरत और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम हैं, न कि इस्लाम की वजह से।
निष्कर्ष
हिंदू-मुसलमान के बीच की दीवार की जड़ें इतिहास में गहराई से छुपी हैं। इस दीवार की नींव इस्लाम के आगमन, अंग्रेजों की विभाजनकारी नीति और भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के कारण पड़ी। इन ऐतिहासिक घटनाओं के प्रभाव आज भी हमारे समाज में महसूस किए जाते हैं। नफरत की इस दीवार को समझने और उसे पाटने के लिए हमें इतिहास की सही समझ और सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण की आवश्यकता है।