AIN NEWS 1 दिल्ली: 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकवादी हमलों के प्रमुख साजिशकर्ता मोहम्मद अता ने अपनी वसीयत में कई निर्देश दिए थे, जिनमें एक चौंकाने वाला आदेश भी था। अता ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उसके मरने के बाद उसकी शव-धात्री को उसके गुप्तांगों को न छूने की हिदायत दी जाए।
मोहम्मद अता की वसीयत के मुताबिक, यदि किसी को उसके शव को स्नान कराना हो, तो उसे दस्ताने पहनने की अनिवार्यता थी और गुप्तांगों को छूने की अनुमति नहीं थी। अता ने इस आदेश को अपनी धार्मिक और व्यक्तिगत मान्यताओं के आधार पर शामिल किया था।
हालांकि, अता की वसीयत के अनुसार दिए गए निर्देशों में से कोई भी पूरी तरह से पालन नहीं किया जा सका। अता की मृत्यु के बाद, उसके शव को जब अमेरिका की सुरक्षा एजेंसियों द्वारा बरामद किया गया, तो उसकी वसीयत के आदेशों के पालन की स्थिति पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
अता का यह निर्देश उसकी आतंकी गतिविधियों और 9/11 हमलों की योजना में उसकी भूमिका के संदर्भ में ध्यान आकर्षित करता है। उसकी वसीयत के इस भाग ने उसकी विचारधारा और चरित्र के एक अलग पहलू को उजागर किया है।
अता ने अपनी वसीयत में अन्य कई मामलों में भी निर्देश दिए थे, जिनमें उसके शव की देखभाल और अंतिम संस्कार की विधियों के बारे में विशिष्ट दिशानिर्देश शामिल थे। उसकी वसीयत से स्पष्ट होता है कि उसने अपने मृत्यु के बाद की व्यवस्था को लेकर गहन विचार किया था।
इस वसीयत के दस्तावेज़ सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन विभिन्न रिपोर्ट्स और जांचकर्ताओं के अनुसार, अता के शव के साथ किए गए कार्यों में उसकी वसीयत के अधिकांश निर्देशों की अनदेखी की गई थी।
यह मामला इस बात का भी उदाहरण है कि कैसे कुछ व्यक्तियों के व्यक्तिगत निर्देश और उनकी अंतिम इच्छाएं उनके जीवन के घटनाक्रम से असंबंधित हो सकती हैं, विशेषकर जब वे व्यक्तित्व की अत्यधिक भिन्नता और विवादित विषयों से संबंधित होते हैं।
मोहम्मद अता की वसीयत और उसके आदेश एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है, जो आतंकी घटनाओं और उनसे जुड़े व्यक्तियों के मानसिकता की झलक प्रस्तुत करता है। हालांकि, अता की वसीयत के निर्देशों के अनुपालन की स्थिति यह दर्शाती है कि आतंकवाद के संदर्भ में व्यक्ति की अंतिम इच्छाओं और हिदायतों का महत्व कितना कम होता है।