Friday, November 22, 2024

प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली: ज्ञान का समृद्ध आधार?

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AIN NEWS 1 जयपुर, राजस्थान: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में एक कार्यक्रम में भारतीय शिक्षा प्रणाली पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमारी प्राचीन शिक्षा प्रणाली ने केवल किताबों के ज्ञान तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह विभिन्न क्षेत्रों में समग्र विकास को बढ़ावा देती थी।

प्राचीन शिक्षा का व्यापक दायरा

राजनाथ सिंह ने कहा कि भारतीय शिक्षा का दायरा बहुत व्यापक था। इसमें न केवल दर्शन, गणित, और वास्तुकला शामिल थे, बल्कि चिकित्सा विज्ञान, नृत्य, संगीत, और मार्शल आर्ट्स जैसे विषयों पर भी ध्यान दिया जाता था। यह दर्शाता है कि प्राचीन भारत एक ज्ञान आधारित समाज था, जिसमें विविधताओं को महत्व दिया जाता था।

ज्ञान आधारित समाज

उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत हमेशा से एक ज्ञान आधारित समाज रहा है और आज भी यह स्थिति बनी हुई है। हमारे पूर्वजों ने ज्ञान को समर्पित जीवन जीने का महत्व समझा और इसे आगे बढ़ाया। इस संदर्भ में उन्होंने विभिन्न शास्त्रों और कलाओं के अध्ययन को महत्व दिया, जो कि हमारे समाज की समृद्धि का आधार रहे हैं।

शिक्षा का समग्र दृष्टिकोण

राजनाथ सिंह ने कहा कि शिक्षा का यह समग्र दृष्टिकोण न केवल बौद्धिक विकास में सहायक था, बल्कि यह व्यक्ति के नैतिक और आध्यात्मिक विकास में भी योगदान देता था। प्राचीन शिक्षा प्रणाली ने विद्यार्थियों को आत्म-ज्ञान और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक किया।

आधुनिक शिक्षा की चुनौती

रक्षा मंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि आज की शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है ताकि यह प्राचीन शिक्षा के मूल सिद्धांतों को समाहित कर सके। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में न केवल तकनीकी विकास की बात की, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक शिक्षा पर भी जोर दिया।

निष्कर्ष

राजनाथ सिंह का यह बयान हमें याद दिलाता है कि हमें अपनी प्राचीन शिक्षा प्रणाली से सीख लेकर आधुनिक शिक्षा को और बेहतर बनाना चाहिए। यह आवश्यक है कि हम ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति करें, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक समृद्ध और ज्ञानपूर्ण समाज का निर्माण करने का अवसर मिल सके।

इस प्रकार, भारतीय शिक्षा प्रणाली की पुनर्स्थापना और विकास के लिए हमें प्राचीन ज्ञान और संस्कृति को अपने जीवन में शामिल करना चाहिए। यह न केवल हमें अपने अतीत से जोड़ता है, बल्कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने में भी मदद करता है।

इस संदर्भ में, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपने सांस्कृतिक मूल्यों को न केवल संरक्षित करें, बल्कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित भी करें।

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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