Sunday, November 24, 2024

धर्मनिरपेक्षता पर पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक की राय: सेक्युलरिज्म का सफर और विवाद

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AIN NEWS 1 | तमिलनाडु के गवर्नर आर.एन. रवि के हालिया बयान ने धर्मनिरपेक्षता (सेक्युलरिज्म) पर एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा कि भारत को सेक्युलरिज्म की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह एक यूरोपियन विचार है और भारतीय अवधारणा नहीं है। उनके इस बयान पर विपक्षी दलों ने कड़ी आलोचना की। सीपीएम नेता वृंदा करात ने कहा कि यह संविधान का अनादर है और गवर्नर का बयान ‘चिंताजनक’ है।

संविधान में कैसे जुड़ा सेक्युलरिज्म?

भारतीय संविधान के प्रारंभिक संस्करण में सेक्युलरिज्म शब्द शामिल नहीं था। 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के 42वें संशोधन के जरिए इसे जोड़ा। संशोधन के बाद प्रस्तावना में भारत को “संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य” घोषित किया गया। इस बदलाव के पीछे इंदिरा गांधी की राजनीतिक मंशा को लेकर भी सवाल उठे थे, जिसमें उन्हें राजनीतिक लाभ लेने का आरोप लगाया गया।

क्या नेहरू सेक्युलरिज्म शब्द के खिलाफ थे?

भारतीय संविधान का निर्माण करते समय संविधान सभा में सेक्युलरिज्म शब्द को लेकर व्यापक बहस हुई। संविधान सभा के सदस्य प्रोफेसर केटी शाह ने 15 नवंबर 1948 को यह सुझाव दिया था कि संविधान में सेक्युलर, फेडरलिस्ट और सोशलिस्ट शब्द शामिल किए जाएं।

हालांकि, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डॉ. भीमराव आंबेडकर सेक्युलरिज्म के समर्थक होने के बावजूद इसे संविधान की प्रस्तावना में जोड़ने के खिलाफ थे। उनका मानना था कि भारत की धर्मनिरपेक्षता संविधान के हर अनुच्छेद में प्रतिबिंबित होती है और इसे सीधे शब्दों में जोड़ना आवश्यक नहीं है।

नेहरू की धर्मनिरपेक्षता की सोच

पंडित नेहरू धर्मनिरपेक्षता के कट्टर समर्थक थे, लेकिन उनका दृष्टिकोण था कि भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को संवैधानिक शब्दों में सीमित नहीं करना चाहिए। उनका विचार था कि धर्मनिरपेक्षता एक व्यवहारिक सिद्धांत है, जो सामाजिक और राजनीतिक जीवन का हिस्सा होना चाहिए, न कि सिर्फ एक संवैधानिक शब्द। नेहरू के लिए धर्मनिरपेक्षता का अर्थ था कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा, और सभी धर्मों का सम्मान किया जाएगा।

इंदिरा गांधी की धर्मनिरपेक्षता की सोच

इंदिरा गांधी ने सेक्युलरिज्म को संविधान में जोड़कर इसे एक संवैधानिक मूल्य बना दिया। उनकी सरकार ने 42वें संशोधन के तहत “धर्मनिरपेक्ष” शब्द को प्रस्तावना में जोड़ा। उनके इस कदम की आलोचना भी हुई, क्योंकि इसे आपातकाल के दौरान राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किया गया माना गया।

वर्तमान विवाद और सेक्युलरिज्म का महत्व

आज भी सेक्युलरिज्म भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है। तमिलनाडु के गवर्नर के बयान और इस पर उठे विवाद ने एक बार फिर दिखाया है कि सेक्युलरिज्म केवल एक संवैधानिक शब्द नहीं, बल्कि भारत की मूलभूत पहचान का हिस्सा है।

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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