AIN NEWS 1 दिल्ली: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने गवर्नर द्वारा उनके खिलाफ आरोपों की जांच के लिए दी गई मंजूरी को चुनौती दी थी। इस संदर्भ में राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कुछ महत्वपूर्ण बातें साझा की हैं।
सिब्बल ने कहा, “संविधान में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि गवर्नर अभियोजन के लिए मंजूरी दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई मामला है, तो गवर्नर ही वह सक्षम प्राधिकरण है जो मंजूरी दे सकता है। हालांकि, यह न्यायालयों का कार्य है कि वे यह तय करें कि क्या कोई उल्लंघन हुआ है या नहीं।”
उन्होंने सवाल उठाया, “गवर्नर बिना किसी मजिस्ट्रियल जांच के कैसे यह तय कर सकता है कि आरोप सत्य हैं या नहीं? गवर्नर को यह अधिकार नहीं है कि वह न्यायाधीश बनकर यह निर्णय ले कि कोई आपराधिक offense हुआ है या नहीं।”
सिब्बल ने आगे कहा, “पहले एक जांच होनी चाहिए, फिर मंजूरी दी जानी चाहिए।” यह टिप्पणी उस संदर्भ में की गई जब गवर्नर की भूमिका पर सवाल उठाए जा रहे हैं और राजनीतिक वातावरण गर्म है।
मुख्य बिंदु
1. कर्नाटक HC का फैसला: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने गवर्नर द्वारा उनके खिलाफ अभियोजन की मंजूरी को चुनौती दी थी।
2. कपिल सिब्बल की आलोचना: सांसद कपिल सिब्बल ने कहा है कि गवर्नर के पास अभियोजन के लिए मंजूरी देने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है।
3. सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण: सुप्रीम कोर्ट ने पहले यह स्पष्ट किया है कि गवर्नर को इस मामले में सक्षम प्राधिकरण माना गया है, लेकिन इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि अदालत ही यह तय करे कि क्या आरोप सही हैं।
4. जांच की आवश्यकता: सिब्बल ने कहा कि बिना मजिस्ट्रियल जांच के आरोपों के सत्यापन का अधिकार गवर्नर को नहीं है।
5. राजनीतिक वातावरण: यह मुद्दा राजनीतिक हलचल को बढ़ा रहा है और कई लोग गवर्नर की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं।
कुल मिलाकर, कपिल सिब्बल का बयान इस विवादास्पद मामले में गवर्नर की भूमिका को सीमित करने और एक निष्पक्ष जांच की आवश्यकता की ओर इशारा करता है।