AIN NEWS 1 | तिरुपति बालाजी मंदिर के लड्डुओं में पशु चर्बी (एनिमल फैट) वाले घी के इस्तेमाल के आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की भूमिका पर सवाल उठाए और इस मुद्दे पर सार्वजनिक बयानबाजी को लेकर नाराजगी जताई। जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि जब इस मामले की जांच SIT (विशेष जांच दल) के द्वारा की जा रही है, तो मुख्यमंत्री ने मीडिया में बयान देने की आवश्यकता क्यों महसूस की। उन्होंने कहा, “कम से कम भगवान को राजनीति से दूर रखें”। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को इतनी जल्दी सार्वजनिक मंच पर बयान नहीं देना चाहिए, खासकर तब जब जांच अभी तक पूरी नहीं हुई हो।
बयानबाजी पर कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि जब मुख्यमंत्री नायडू ने SIT को मामले की जांच सौंपी थी, तो उन्हें मीडिया में जाकर बयान देने की क्या जरूरत थी। जस्टिस गवई ने टिप्पणी की, “भगवान से जुड़े मसलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इससे धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं।” कोर्ट ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि मुख्यमंत्री ने मामले में जांच के नतीजे आने से पहले ही सार्वजनिक बयान दे दिया। जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, “जब तक पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो जाता कि प्रसाद में कोई मिलावट थी या नहीं, तब तक इस तरह के बयान जांच प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।”
लैब रिपोर्ट और मीडिया बयान पर सवाल
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जुलाई में आई लैब रिपोर्ट ने घी की शुद्धता को स्पष्ट रूप से प्रमाणित नहीं किया था, और इसके बावजूद मुख्यमंत्री नायडू ने सितंबर में मीडिया में बयान दिया। बेंच ने कहा कि “अगर रिपोर्ट स्पष्ट नहीं थी और जांच अभी भी जारी है, तो मुख्यमंत्री को ऐसा बयान देने की क्या जरूरत थी? इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है, और इससे जांच प्रक्रिया भी प्रभावित हो सकती है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से यह उम्मीद की जाती है कि वह जिम्मेदार तरीके से व्यवहार करें और किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सभी तथ्यों की पुष्टि करें।
TTD की भूमिका और SIT जांच पर चर्चा
तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम (TTD) की ओर से पेश वकील सिद्धार्थ लूथरा से कोर्ट ने पूछा कि क्या इस बात के ठोस सबूत हैं कि लड्डू बनाने में दूषित घी का उपयोग किया गया था। लूथरा ने कहा कि अभी इस मामले की जांच चल रही है और यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि भविष्य में इस प्रकार की कोई मिलावट न हो। कोर्ट ने टिप्पणी की कि अगर अभी जांच चल रही है, तो फिर मुख्यमंत्री को मीडिया में बयान देने की इतनी जल्दी क्यों थी।
जस्टिस गवई ने कहा, “धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। अगर घी की गुणवत्ता को लेकर कोई शिकायत थी, तो उसकी ठीक तरह से जांच होनी चाहिए थी। अगर TTD को लड्डू का स्वाद सही नहीं लग रहा था, तो उसे तुरंत एक सेकंड ओपिनियन लेना चाहिए था।” कोर्ट ने TTD को भी निर्देश दिया कि वे मामले की पूरी जांच करें और सुनिश्चित करें कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
स्वतंत्र एजेंसी से जांच की संभावना पर विचार
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि मामले की जांच SIT से कराई जाए या फिर इसे किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी को सौंपा जाए। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के सुझावों पर भी विचार करेगी। सभी याचिकाओं पर अब 3 अक्टूबर को दोपहर 3:30 बजे सुनवाई की जाएगी, जिसमें मामले के आगे के पहलुओं पर चर्चा होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच निष्पक्ष और पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि किसी भी तरह के विवाद से बचा जा सके।
प्रसादम की पवित्रता और घी की शुद्धता पर बहस
तिरुपति मंदिर के लड्डू न केवल इस मंदिर का प्रसाद हैं, बल्कि यह लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक भी हैं। हर दिन करीब 70 हजार श्रद्धालु तिरुपति मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं और इन लड्डुओं को प्रसाद के रूप में प्राप्त करते हैं। इस पवित्र प्रसाद में जानवरों की चर्बी का उपयोग होने का आरोप न केवल श्रद्धालुओं की भावनाओं को आहत कर रहा है, बल्कि मंदिर की पवित्रता पर भी सवाल खड़े कर रहा है।
इस विवाद के चलते तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम (TTD) ने घी की शुद्धता की जांच के लिए नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) से सैंपल की जांच कराई। हालांकि, रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं हो सका कि जो घी प्रसाद में इस्तेमाल हुआ, उसमें मिलावट थी या नहीं। फिर भी, TTD ने तमिलनाडु के डिंडीगुल स्थित एआर डेयरी फूड्स को ब्लैकलिस्ट कर दिया और कर्नाटक मिल्क फेडरेशन से घी की नई सप्लाई शुरू कर दी।
सियासी रंग लेता विवाद
तिरुपति लड्डू विवाद धीरे-धीरे सियासी रंग भी ले रहा है। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी पर भी आरोप लगाए गए हैं कि उनकी सरकार के दौरान लड्डू में मिलावट वाले घी का इस्तेमाल हुआ। मौजूदा मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने इस मामले में जगन मोहन रेड्डी की सरकार पर भी निशाना साधा और कहा कि उनके कार्यकाल में मंदिर की पवित्रता के साथ खिलवाड़ हुआ।
नायडू ने आरोप लगाया कि जब बाजार में घी की कीमत 500 रुपये प्रति किलो थी, तो जगन सरकार ने 320 रुपये प्रति किलो की दर से घी खरीदा, जिससे मिलावट की संभावना बढ़ गई। उन्होंने यह भी दावा किया कि “जगन सरकार ने मंदिर के लड्डू में इस्तेमाल होने वाले घी में जानवरों की चर्बी और मछली का तेल मिलाया था, जिससे मंदिर की पवित्रता पर दाग लगा है।”
मंदिर की परंपरा और प्रसाद का महत्व
तिरुपति बालाजी मंदिर का लड्डू प्रसाद न केवल एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि इसकी पवित्रता और गुणवत्ता पर मंदिर प्रशासन सदियों से ध्यान देता आ रहा है। तिरुपति के मंदिर परिसर में स्थित 300 साल पुराने किचन ‘पोटू’ में रोजाना करीब 3.50 लाख लड्डू बनाए जाते हैं। यह लड्डू शुद्ध घी, बेसन, बूंदी, चीनी और काजू से बनाया जाता है और इसे ब्राह्मणों द्वारा पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार तैयार किया जाता है।
इस पवित्र प्रसाद को लेकर किसी भी तरह का विवाद श्रद्धालुओं के विश्वास को ठेस पहुंचा सकता है। इसलिए, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्ती से न केवल मंदिर प्रशासन को बल्कि पूरे देश के धार्मिक समुदाय को यह संकेत मिलता है कि आस्था और विश्वास से जुड़े मुद्दों को राजनीति से दूर रखना चाहिए।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी के बाद अब यह देखना होगा कि आंध्र प्रदेश की सरकार और TTD इस मामले में क्या कदम उठाते हैं। SIT की जांच का नतीजा आने के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि लड्डुओं में घी की मिलावट का मामला कितनी सच्चाई रखता है।