AIN NEWS 1 नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चेक बाउंस के एक महत्वपूर्ण मामले में हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए एक नया आदेश जारी किया है। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि चेक बाउंस का मामला केवल एक नियामक अपराध है और इसे समझौते के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।
चेक बाउंस क्या है?
चेक बाउंस तब होता है जब कोई बैंक चेक को इसलिए अस्वीकृत कर देता है क्योंकि उसमें पर्याप्त धनराशि नहीं होती। भारत में, चेक बाउंस को गंभीर अपराध माना जाता है और इसके लिए सजा का प्रावधान है। इसलिए, चेक जारी करते समय सावधानियाँ बरतना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने पी कुमार सामी नामक व्यक्ति की सजा को निरस्त करते हुए यह कहा कि यदि दोनों पक्ष समझौता करने के इच्छुक हैं, तो अदालत को ऐसे मामलों का निपटारा करना चाहिए। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस ए. अमानुल्लाह की पीठ ने यह निर्णय दिया।
मामला क्या था?
इस मामले में, पी कुमार सामी ने सुब्रमण्यम नामक व्यक्ति को 5.25 लाख रुपये का चेक जारी किया था, जो अपर्याप्त धनराशि के कारण बाउंस हो गया। इसके बाद सुब्रमण्यम ने कुमार सामी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। निचली अदालत ने कुमार सामी को दोषी ठहराते हुए एक वर्ष की कारावास की सजा सुनाई।
हालांकि, कुमार सामी ने इस निर्णय के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील की, जहां उसके पक्ष में फैसला हुआ। लेकिन बाद में, हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बहाल कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस के मामलों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताते हुए कहा कि दंडात्मक उपायों के बजाय प्रतिपूरक उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि चेक बाउंस एक नियामक अपराध है और इसे सार्वजनिक हित के लिए महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह आदेश भी दिया कि अगर दोनों पक्ष समझौता कर लेते हैं, तो इस प्रकार के मामलों को अदालत में लंबित नहीं रखा जाना चाहिए। इससे न्यायिक प्रणाली में सुधार आएगा और लंबित मामलों की संख्या में कमी आएगी।
न्यायिक प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों का निपटारा समझौते के आधार पर करना चाहिए, ताकि न्यायिक प्रणाली पर दबाव कम हो सके। अदालत ने यह भी सुझाव दिया कि इस संदर्भ में सख्त नियम बनाए जाने चाहिए, जिससे चेक बाउंस के मामलों में लापरवाही न हो।
निष्कर्ष
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि चेक बाउंस के मामलों में समझौता एक प्रभावी समाधान हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न्यायिक प्रणाली में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। ऐसे मामलों में उचित समाधान के लिए दोनों पक्षों को आपसी सहमति से आगे बढ़ना चाहिए, जिससे कि लंबी न्यायिक प्रक्रियाओं से बचा जा सके।
इस तरह के मामलों में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल पीड़ितों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया को भी सुगम बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।