AINNEWS1 : सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए ईशा फाउंडेशन के खिलाफ चल रही पुलिस जांच को स्थगित कर दिया है। मामले में दो महिलाओं ने स्पष्ट किया कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं।
मामले का पृष्ठभूमि: कोयंबटूर के थोंडामुथुर स्थित ईशा फाउंडेशन, जिसके संस्थापक जग्गी वासुदेव (सद्गुरु) हैं, के खिलाफ हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट द्वारा जांच के आदेश दिए गए थे। यह आदेश एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के आधार पर आया, जिसमें एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर, एस. कमराज ने आरोप लगाया कि उनकी दो बेटियों (42 और 39 वर्ष) को ईशा योग केंद्र में रहने के लिए “ब्रेनवॉश” किया गया है और उन्हें उनके परिवार से संपर्क करने की अनुमति नहीं दी गई।
मद्रास हाईकोर्ट का आदेश: मद्रास हाईकोर्ट ने यह देखा कि ईशा फाउंडेशन के खिलाफ कई आपराधिक मामले और शिकायतें लंबित हैं। अदालत ने पुलिस को निर्देश दिया कि वह आश्रम में बंधक बनाए जाने के आरोपों की जांच करे। इसके बाद, मंगलवार को 150 पुलिस अधिकारियों की एक टीम ने आश्रम में तलाशी ली।
सुप्रीम कोर्ट की रोक: इस बीच, ईशा फाउंडेशन ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने 30 सितंबर को मद्रास हाईकोर्ट द्वारा जारी किए गए जांच आदेश पर रोक लगाते हुए मामले को अपने हाथ में ले लिया। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की सुनवाई के दौरान दोनों महिलाओं से सीधे बातचीत की। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि वे अपनी मर्जी से आश्रम में रह रही हैं और कोई भी उन्हें जबरन नहीं रोक रहा।
महिलाओं का बयान: महिलाओं ने अदालत में गवाही दी कि उनका आश्रम में रहना पूरी तरह से स्वैच्छिक है और वे किसी भी समय वहां से जा सकती हैं। उन्होंने अपने पिता द्वारा लगाए गए सभी आरोपों का खंडन किया और कहा कि उन्हें वहां जबरन नहीं रखा गया है। बेंच ने इस पर टिप्पणी की कि महिलाओं की गवाही से स्पष्ट है कि उनके स्वेच्छा से रहने में कोई संदेह नहीं है।
हाईकोर्ट के आदेश का कानूनी आधार: सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मद्रास हाईकोर्ट ने ईशा फाउंडेशन की जांच का निर्देश देने के लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया, जिससे ऐसे आदेश की वैधता पर सवाल उठता है। बेंच ने आगे यह निर्देश दिया कि तमिलनाडु पुलिस इस मामले में कोई आगे की कार्रवाई नहीं करेगी और स्थिति रिपोर्ट शीर्ष अदालत में प्रस्तुत करेगी।
सरकार और वकीलों की राय: राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि पुलिस ने उच्च न्यायालय के आदेश का पालन किया था। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी ईशा फाउंडेशन का समर्थन किया और कहा कि हाईकोर्ट को बेहद सावधानी से काम करना चाहिए था।
अगली सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट ने 18 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई तय की है। इस दौरान, मूल याचिकाकर्ता या तो वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर या अपने वकील के माध्यम से अदालत में उपस्थित हो सकता है।
निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय ईशा फाउंडेशन के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक संस्थानों के खिलाफ उठाए गए आरोपों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी आवश्यक है कि जांच की प्रक्रिया में विधिक मानकों का पालन किया जाए।