AIN NEWS 1 लखनऊ: उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव का माहौल गरमा रहा है, लेकिन इस बार बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं लेंगे। बसपा की इस चौंकाने वाली रणनीति ने राजनीतिक जानकारों को हैरान किया है, जो मानते हैं कि यह चुनाव अब मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच सिमट सकता है।
बसपा की गिरती जमीन और वापसी की चुनौती
बसपा की राजनीतिक स्थिति पिछले एक दशक में यूपी में कमजोर हुई है। 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी, और 2019 में बसपा के 10 सांसद जीतकर आए थे, लेकिन ये परिणाम गठबंधन के कारण मुमकिन हुए। 2024 में बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन उसे एक भी सीट हासिल नहीं हुई। विधानसभा चुनाव 2022 में भी बसपा सिर्फ एक सीट पर जीत दर्ज कर सकी।
कोर वोटबैंक की वापसी की उम्मीद में उपचुनाव की तैयारी
उपचुनाव में बसपा ने अपनी खोई जमीन हासिल करने की कोशिश में उतरने का फैसला किया और अपने उम्मीदवार भी घोषित किए। मायावती ने विभिन्न राजनीतिक मुद्दों पर कड़े तेवर भी दिखाए, जिससे उम्मीद थी कि वह और आकाश आनंद इस बार प्रचार की कमान संभालेंगे। लेकिन अब स्पष्ट है कि पार्टी अपने काडर और जिला इकाइयों के भरोसे चुनाव लड़ेगी।
मायावती और आकाश का प्रचार से दूर रहना क्या है संकेत?
मायावती और आकाश आनंद के प्रचार में भाग नहीं लेने से विशेषज्ञों का मानना है कि यह उपचुनाव भी भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला बन सकता है। साल 2022 में भी चुनाव ऐसा ही दिखा था, जहां भाजपा और सपा मुख्य प्रतिस्पर्धी थे, जबकि कांग्रेस और बसपा ने सीमित सफलता पाई थी।
बसपा के इस कदम के पीछे कारण यह माना जा रहा है कि पार्टी प्रमुख मायावती और आकाश की साख को सुरक्षित रखने का प्रयास है। वर्ष 2024 में आकाश को चुनावी हार से बचाने के लिए प्रचार से दूर रखने की रणनीति अपनाई गई थी, और यह फैसला भी उसी दिशा में है। बसपा चाहती है कि जब तक राजनीतिक हालात पार्टी के अनुकूल न हो जाएं, तब तक दोनों नेताओं को किसी प्रतिकूल परिणाम से जोड़कर न देखा जाए।
क्या बसपा के कोर वोटरों की वापसी हो पाएगी?
विश्लेषकों का मानना है कि मायावती और आकाश के प्रचार से दूर रहने से सपा और भाजपा के बीच का मुकाबला ही जोर पकड़ेगा। हालांकि, कांग्रेस के ग्राउंड लेवल पर न दिखने वाले गठबंधन का लाभ बसपा को जरूर मिल सकता है, जिससे कुछ कोर वोटर पार्टी की ओर लौट सकते हैं। मगर इन वोटरों की वापसी भी बसपा उम्मीदवारों के लिए जीत सुनिश्चित नहीं कर पाएगी।
निष्कर्ष
मायावती और आकाश का इस उपचुनाव से दूरी बनाना पार्टी की रणनीतिक चाल है, जो उनकी साख और भविष्य की योजनाओं को सुरक्षित रखने की कोशिश है। अब देखना होगा कि यह फैसला बसपा के लिए लाभदायक सिद्ध होता है या नहीं, लेकिन इस उपचुनाव में एक बार फिर मुकाबला भाजपा और सपा के बीच ही सिमटता दिख रहा है।