AIN NEWS 1: दिल्ली की हवा दिनों-दिन जहरीली होती जा रही है, जिसमें वाहनों से निकलने वाला धुआं सबसे अधिक योगदान दे रहा है। राजधानी में सुबह और दोपहर के मुकाबले शाम के समय वाहनों का प्रदूषण दोगुना हो जाता है। विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) की एक ताजा रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ है, जिसमें यातायात और प्रदूषण के बीच संबंध का विश्लेषण किया गया है।
शाम को क्यों बढ़ता है वाहनों का प्रदूषण?
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में दोपहर 12 से 4 बजे के बीच वाहनों की गति औसतन 21 किलोमीटर प्रति घंटा रहती है, जिससे इस दौरान प्रदूषण का स्तर अपेक्षाकृत कम रहता है। लेकिन, शाम 5 बजे से रात 9 बजे के पीक समय में सड़कों पर भारी भीड़ के कारण वाहनों की गति घटकर 15 किलोमीटर प्रति घंटे तक आ जाती है। कम रफ्तार और जगह-जगह जाम के कारण वाहनों से निकलने वाला नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) का स्तर तेजी से बढ़ जाता है, जो हवा में जहर घोलने का काम करता है।
सीएसई की सिफारिशें: प्रदूषण नियंत्रण के लिए सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण और कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधुरी ने बताया कि वाहनों का धुआं दिल्ली के प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है, जो साल भर सक्रिय रहता है। उन्होंने जोर दिया कि पराली जलाने और पटाखों के अलावा वाहन प्रदूषण भी एक बड़ी समस्या है, जिसके लिए दिल्ली को अन्य जिलों पर दोष मढ़ने के बजाय खुद ठोस कदम उठाने होंगे।
रिपोर्ट में निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
1. सार्वजनिक परिवहन का विस्तार: दिल्ली में बसों की संख्या और उनकी उपलब्धता में वृद्धि होनी चाहिए, ताकि लोगों को निजी वाहनों के बजाय सार्वजनिक परिवहन की सुविधा मिले।
2. लास्ट माइल कनेक्टिविटी में सुधार: मेट्रो या बस स्टेशन से घर तक की सुविधा के लिए लास्ट माइल कनेक्टिविटी को प्राथमिकता देनी होगी, ताकि निजी वाहनों की आवश्यकता कम हो सके।
3. निजी वाहनों की संख्या घटाने के प्रयास: निजी वाहनों के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए सख्त नियम लागू किए जाने चाहिए, जिससे वाहनों से होने वाला प्रदूषण घटाया जा सके।
समाधान की ओर कदम बढ़ाना जरूरी
सुनीता नारायण ने कहा कि दिल्ली के प्रदूषण में अन्य कारकों का योगदान जरूर है, लेकिन वाहनों से निकलने वाला धुआं प्रमुख रूप से जिम्मेदार है, जो पूरे साल रहता है। ऐसे में केवल पराली जलाने और पटाखों को दोष देने से समाधान नहीं मिलेगा, बल्कि वाहनों के प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी।
यदि सार्वजनिक परिवहन का ढांचा सुदृढ़ किया जाए और निजी वाहनों पर निर्भरता कम की जाए, तो दिल्ली को प्रदूषण संकट से उबारा जा सकता है।