AIN NEWS 1: मद्रास हाई कोर्ट ने शरिया कानून के तहत पुरुषों द्वारा अपनी पहली बीवी के रहते हुए दूसरा निकाह करने को क्रूरता करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार का व्यवहार पहली बीवी के लिए मानसिक और शारीरिक तनाव का कारण बनता है, जो कि एक तरह की क्रूरता है। इस फैसले ने शरिया के हवाले से किए जा रहे दूसरे निकाहों के संबंध में एक नया सवाल खड़ा कर दिया है।
दूसरा निकाह नहीं हो सकता जायज
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा कि जब एक मुस्लिम पुरुष अपनी पहली बीवी के रहते हुए दूसरा निकाह करता है, तो यह उसके प्रति अन्याय और क्रूरता के समान है। कोर्ट ने यह भी माना कि इस प्रकार के कदम से महिला को शारीरिक और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है, जिससे उसका जीवन मुश्किल हो जाता है।
शारीरिक और मानसिक तनाव
मद्रास हाई कोर्ट ने कहा कि एक महिला को यह जानकर कि उसका पति दूसरी महिला से शादी कर रहा है, मानसिक शारीरिक तनाव का सामना करना पड़ता है। इस तनाव से वह डिप्रेशन, चिंता और अन्य मानसिक समस्याओं का शिकार हो सकती है। कोर्ट ने इसे महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन भी माना है।
शरिया का सही मतलब
यह फैसला मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के महत्व को भी उजागर करता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि शरिया का असल उद्देश्य महिलाओं के साथ न्याय करना और उन्हें उनके अधिकार देना है, न कि उन्हें मानसिक और शारीरिक पीड़ा में डालना। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दूसरे निकाह को केवल शरिया का हवाला देकर जायज नहीं ठहराया जा सकता।
फैसला के प्रभाव
मद्रास हाई कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश भेजता है। इससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि मुस्लिम समुदाय में महिलाओं के अधिकारों को लेकर और अधिक संवेदनशीलता बढ़ेगी और महिलाएं अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो सकेंगी। इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि कोर्ट महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों के प्रति गंभीर है, और किसी भी तरह की क्रूरता को सहन नहीं करेगा।
इस फैसले के बाद, यह देखा जाएगा कि मुस्लिम समुदाय में इसके प्रभाव क्या होंगे और क्या यह अन्य कोर्टों के फैसलों को प्रभावित करेगा।