केंद्र सरकार ने 15 नवंबर 2024 को दिल्ली के सराय काले खां आईएसबीटी चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक कर दिया है। इस नाम परिवर्तन की घोषणा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने की। यह निर्णय महान स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी नेता भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के अवसर पर लिया गया। इस बदलाव का उद्देश्य बिरसा मुंडा की विरासत को सम्मानित करना और उनकी प्रेरणा को जन-जन तक पहुंचाना है।
कौन थे काले खां?
सराय काले खां नाम की पहचान काले खां नामक सूफी संत से जुड़ी है।
- सूफी संत काले खां:
- काले खां 14वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध सूफी संत थे, जो शेर शाह सूरी के दौर में सक्रिय थे।
- उनकी मजार दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के क्षेत्र में स्थित है।
- सराय काले खां का नाम इन्हीं के नाम पर रखा गया था। “सराय” उस समय उन जगहों को कहा जाता था, जहां लोग यात्रा के दौरान रुककर आराम करते थे।
- औरंगजेब के समय के काले खां:
- इसके अलावा, औरंगजेब के समय में भी एक प्रमुख सेनापति काले खां थे। उन्होंने कई महत्वपूर्ण युद्धों में औरंगजेब के साथ भाग लिया था।
कौन थे बिरसा मुंडा?
बिरसा मुंडा 19वीं सदी के एक महान आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जो झारखंड के मुंडा जनजाति से ताल्लुक रखते थे।
- जन्म: 15 नवंबर 1875, खूंटी, झारखंड।
- कार्यक्षेत्र: उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आदिवासी अधिकारों और जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
- विद्रोह का नेतृत्व: बिरसा मुंडा ने आदिवासी समुदाय के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई और उलगुलान (महान विद्रोह) का नेतृत्व किया।
- मृत्यु: ब्रिटिश हिरासत में रहस्यमय परिस्थितियों में 9 जून 1900 को मात्र 25 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।
उनकी जयंती को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उन्होंने मातृभूमि के सम्मान के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया।
मनोहर लाल खट्टर का बयान
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस अवसर पर कहा, “दिल्ली के ISBT बस स्टैंड के पास जो बड़ा चौक है, उसका नाम भगवान बिरसा मुंडा के नाम पर रखा जा रहा है। इससे दिल्ली ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लोग उनसे प्रेरणा ले सकेंगे।”
नाम बदलने का महत्व
सराय काले खां चौक का नाम बदलकर बिरसा मुंडा चौक करना सरकार का एक कदम है, जिससे आदिवासी नायकों की विरासत को सम्मानित किया जा सके। इससे नई पीढ़ी बिरसा मुंडा जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान से परिचित हो सकेगी।