AIN NEWS 1 नई दिल्ली: महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं, और अब 23 नवंबर को चुनाव नतीजों का बेसब्री से इंतजार है। हालांकि, इससे पहले आए एग्जिट पोल ने राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है। एग्जिट पोल के नतीजे जहां भाजपा के लिए डबल खुशखबरी लेकर आए हैं, वहीं हरियाणा चुनाव के अनुभवों को देखते हुए पार्टियां अब लड्डू और जलेबी ऑर्डर करने से भी डर रही हैं।
एग्जिट पोल: किसके पक्ष में?
ज्यादातर एग्जिट पोल में महाराष्ट्र में महायुति (भाजपा-शिवसेना) और झारखंड में भाजपा गठबंधन की सरकार बनने की भविष्यवाणी की गई है। हालांकि, कुछ सर्वेक्षण करीबी मुकाबले का भी इशारा कर रहे हैं। लेकिन असल सवाल ये है कि नतीजे आने से पहले कोई भी पार्टी जश्न मनाने की हिम्मत क्यों नहीं कर रही? इसका जवाब हरियाणा चुनाव के अनुभव में छिपा है।
हरियाणा में कांग्रेस के लड्डुओं की कहानी
हरियाणा चुनाव के समय एग्जिट पोल ने कांग्रेस की जीत का दावा किया था। नतीजों से पहले ही कांग्रेस ने जमकर जश्न की तैयारी की। हलवाइयों को बड़े पैमाने पर लड्डू और जलेबी के ऑर्डर दिए गए थे। राहुल गांधी से लेकर कांग्रेस कार्यकर्ता, सबको लग रहा था कि सत्ता उनके हाथ में है।
लेकिन जब असली नतीजे आए, तो कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया। भाजपा ने सरकार बना ली, और कांग्रेस को अपने सारे लड्डू ऑर्डर कैंसल करने पड़े। सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर कांग्रेस की काफी खिल्ली भी उड़ी।
हलवाइयों पर एग्जिट पोल की “मार”
हरियाणा में कांग्रेस की हार का असर सिर्फ पार्टी पर ही नहीं, बल्कि हलवाइयों पर भी पड़ा। जिन हलवाइयों ने लड्डू और जलेबी के ऑर्डर तैयार कर लिए थे, उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ा। गोहाना और कैथल जैसे इलाकों में हलवाइयों को कांग्रेस से बड़े ऑर्डर मिले थे, लेकिन आखिरी समय में सब कैंसल हो गए।
महाराष्ट्र और झारखंड: क्या पार्टियां सबक लेंगी?
हरियाणा के अनुभव के बाद, अब महाराष्ट्र और झारखंड की पार्टियां सावधान हैं। एग्जिट पोल के नतीजे चाहे भाजपा के पक्ष में हों, लेकिन कोई भी पार्टी नतीजों से पहले जश्न की तैयारी नहीं कर रही। “दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है” की तर्ज पर, इस बार लड्डू-जलेबी ऑर्डर करने से पहले हर कोई फाइनल नतीजों का इंतजार कर रहा है।
निष्कर्ष
एग्जिट पोल के नतीजे भले ही किसी की जीत का संकेत देते हों, लेकिन पार्टियां अब इन्हें गंभीरता से लेने से बच रही हैं। हरियाणा चुनाव के अनुभव ने राजनीतिक दलों को सिखा दिया है कि जश्न की तैयारी फाइनल नतीजों के बाद ही करनी चाहिए। इसलिए, इस बार न तो हेमंत सोरेन, न उद्धव ठाकरे और न ही एकनाथ शिंदे जल्दबाजी में लड्डू ऑर्डर करने का जोखिम उठाएंगे।