AIN NEWS 1: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने हाल ही में दिए गए अपने बयान में देश और समाज की चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि व्यक्ति और समाज दोनों स्तरों पर संघर्ष जारी है। उन्होंने आत्म-सुधार और बाहरी विरोधों से निपटने की आवश्यकता पर जोर दिया।
आत्मसंघर्ष और बाहरी चुनौतियां
डॉ. भागवत ने कहा,
“अंदर हमें अपने से लड़ना है और बाहर दुनिया से। हमारा कार्य ऐसा ही दो धारा का है।”
इसका मतलब यह है कि हर व्यक्ति को अपनी कमजोरियों से लड़कर खुद को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए, साथ ही समाज में फैली बुराइयों और चुनौतियों का सामना भी करना चाहिए।
विरोध का सामना करने की रणनीति
भागवत ने बताया कि बाहरी सवालों और आलोचनाओं के प्रति संघ की सोच स्पष्ट और स्थिर है। उन्होंने कहा,
“बाहर से प्रश्न आएंगे और उसका उत्तर हम देंगे, यह खेल हमें नहीं खेलना है।”
उनके अनुसार, संघ अपने सिद्धांतों और विचारधारा के प्रति दृढ़ है और विरोधों के बावजूद संघ को व्यवहारिक और तात्विक धरातल पर सफलता मिल चुकी है।
आलोचना और समाज की भूमिका
संघ प्रमुख ने यह भी कहा कि हारने के बाद भी कुछ लोग हार को स्वीकार नहीं करते और आलोचनाओं के जरिए अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं। उन्होंने कहा,
“हारने के बाद भी हार दिखाना नहीं है, इसलिए गाली बहुत होती है।”
उन्होंने इसे समाज में हालिया घटनाओं और आगामी चुनावों से जोड़ा। उनका मानना है कि ऐसी घटनाएं चुनावों के बाद और अधिक सामने आती हैं।
धैर्य और सकारात्मक दृष्टिकोण का संदेश
डॉ. भागवत ने संघ कार्यकर्ताओं और समाज के लोगों से धैर्य रखने और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया। उन्होंने आंतरिक और बाहरी संघर्षों को आत्मविश्वास और धैर्य से संभालने पर जोर दिया।
संघ प्रमुख के विचार समाज को आत्मनिर्भरता और धैर्य की शिक्षा देते हैं। उन्होंने यह संदेश दिया कि विरोधों से घबराने के बजाय, अपने मूल्यों और आदर्शों पर अडिग रहना चाहिए। यह दृष्टिकोण व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर सफलता का आधार बन सकता है।