AIN NEWS 1 नई दिल्ली। भारत में हाल के वर्षों में पत्थरबाजी की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि हुई है। ये घटनाएं अक्सर धार्मिक शोभायात्राओं, पुलिस, प्रशासनिक टीमों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ देखी गई हैं। हिंसा के इस खतरनाक चलन को समझने के लिए इसकी धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर नजर डालना जरूरी है।
पत्थरबाजी और इस्लामिक मान्यताएं
इस्लाम में पत्थरबाजी की प्रेरणा हज के दौरान की जाने वाली रस्म रमी अल-जमरात से जुड़ी है। इसमें मक्का में शैतान के प्रतीक तीन दीवारों पर पत्थर फेंकने का रिवाज है। यह रस्म शैतान और इस्लाम विरोधियों के खिलाफ प्रतीकात्मक युद्ध का हिस्सा मानी जाती है।
भारत में कुछ कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों द्वारा पत्थरबाजी को धार्मिक विरोध के प्रतीक के रूप में अपनाया गया है। दारुल हरब (गैर-इस्लामी भूमि) के रूप में भारत को “शैतानी भूमि” के रूप में देखे जाने की सोच ने इसे और बढ़ावा दिया है। कट्टरपंथी सोच के मुताबिक, जो क्षेत्र इस्लामिक कानूनों के अधीन नहीं हैं, वहां संघर्ष करना जायज माना जाता है।
पत्थरबाजी की घटनाओं का विस्तार
भारत में पत्थरबाजी केवल स्थानीय विरोध तक सीमित नहीं है। यह कट्टरपंथी सोच और सांप्रदायिक उन्माद का व्यवस्थित विस्तार है। उदाहरणस्वरूप:
धार्मिक शोभायात्राओं पर हमले: कई बार हिंदू त्योहारों की शोभायात्राओं पर पत्थरबाजी की घटनाएं सामने आईं।
सरकारी और पुलिस कार्रवाई के विरोध: प्रशासनिक टीमों और सर्वे दलों पर हमले किए गए।
अवैध अतिक्रमण हटाने पर विरोध: सरकारी कार्रवाई को सांप्रदायिक रंग देकर हिंसा भड़काई गई।
कुरान और हदीस की भूमिका
इस्लामी कानून और रिवाजों में कुरान के साथ-साथ हदीसों (हदीथ) का भी बड़ा महत्व है। हदीसों की व्याख्या का इस्तेमाल कई बार कट्टरपंथी एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए किया गया है। उदाहरण के तौर पर, कुछ व्याख्याओं में पत्थरबाजी को एक दंड स्वरूप दिखाया गया है।
पत्थरबाजी का प्रभाव
पत्थरबाजी न केवल कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि यह भारत की धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचा रही है। धार्मिक विरोध को हिंसा में बदलने का यह पैटर्न समाज में गहरी दरार पैदा कर रहा है।
सांस्कृतिक संदर्भ
पत्थरबाजी की परंपरा केवल धार्मिक मान्यताओं तक सीमित नहीं है। यह अरब की पुरानी संस्कृति का हिस्सा रही है, जहां विरोधियों पर पत्थर फेंकना, थूकना, या सार्वजनिक तौर पर अपमान करना आम था। भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लाम अपनाने वालों ने भी इस सांस्कृतिक परंपरा को कहीं न कहीं अपनाया।
समाधान की राह
इस खतरनाक प्रवृत्ति को रोकने के लिए कानून का सख्ती से पालन और सामाजिक जागरूकता जरूरी है। धर्म के नाम पर हिंसा को किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष: भारत में पत्थरबाजी की घटनाएं केवल अपराध नहीं हैं, बल्कि यह सांप्रदायिक सोच का खतरनाक विस्तार हैं। ऐसी हिंसा के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना और सामाजिक शांति बनाए रखना समय की मांग है।